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New BJP President: होली से पहले भाजपा लाना चाह रही नया अध्यक्ष, चार राज्यों के नेता अटका सकते हैं रोड़ा

BJP President: भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा 15 मार्च, 2025 से पहले हो सकती है।

भारतFeb 28, 2025 / 10:02 am

Anish Shekhar

BJP President: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का तमगा हासिल है, अपने अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा करने की तैयारी में है। सूत्रों के अनुसार, यह घोषणा अगले पखवाड़े के भीतर, यानी 15 मार्च, 2025 से पहले हो सकती है। देश के राजनीतिक पंडित लंबे समय से भाजपा के संगठनात्मक चुनावों पर नजर रखे हुए हैं, क्योंकि मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। नड्डा ने 2019 में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी संभाली थी और जनवरी 2020 में सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे, जब उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पदभार लिया। उनका कार्यकाल पिछले साल समाप्त हो गया था, लेकिन लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए जून 2024 तक बढ़ाया गया। हालांकि, चुनाव संपन्न होने के बाद भी नए अध्यक्ष का चयन टल रहा है, जिसके पीछे पार्टी का संविधान और आंतरिक चुनौतियां कारण हैं।
भाजपा के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तब तक संभव नहीं जब तक 50 प्रतिशत राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे न हो जाएं। वर्तमान में, पार्टी के 38 प्रदेश संगठनों में से केवल 12 राज्यों में ही चुनाव पूरे हुए हैं। कम से कम छह और राज्यों में चुनाव जरूरी हैं, और हिंदू पंचांग के अनुसार मध्य मार्च के बाद शुरू होने वाली अशुभ अवधि के चलते पार्टी इस प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश कर रही है। भाजपा उन राज्यों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं—तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम और गुजरात—जबकि बिहार में, जहां इस साल के अंत में चुनाव हैं, नेतृत्व अपरिवर्तित रहेगा। हालांकि, यह प्रक्रिया कई राज्यों में आंतरिक कलह और असहमति के कारण रुकावटों का शिकार हो रही है।

इन राज्यों में अटक रहा नए प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव

कर्नाटक में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष बी.विजयेंद्र के खिलाफ पार्टी के भीतर विरोध उभर रहा है। तेलंगाना में राज्य नेतृत्व को लेकर असंतोष है, जबकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्षों के चयन पर सहमति नहीं बन पाई है। मध्य प्रदेश में वी.डी. शर्मा के पांच साल पूरे होने के बाद दलित, आदिवासी, ब्राह्मण या राजपूत चेहरों पर विचार चल रहा है। उत्तर प्रदेश में भी नए अध्यक्ष की तलाश जारी है, लेकिन इसे होली के बाद तक टाला जा सकता है। तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों को देखते हुए नेतृत्व परिवर्तन की रणनीति पर अभी फैसला नहीं हुआ। तेलंगाना और गुजरात में “वन मैन, वन पोस्ट” नीति को सख्ती से लागू करने या इसमें ढील देने पर विचार हो रहा है, क्योंकि वहां के प्रदेश अध्यक्ष केंद्रीय मंत्रियों की भूमिका भी निभा रहे हैं।

संघ की पसंद का होगा नया राष्ट्रीय अध्यक्ष

सूत्रों का कहना है कि उम्मीदवार को पार्टी और उसके वैचारिक गुरु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के लिए स्वीकार्य होना चाहिए, संगठनात्मक मूल्यों से जुड़ा होना चाहिए, और जातिगत, क्षेत्रीय व राजनीतिक समीकरणों को संतुलित करना चाहिए। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में मिली नाकामी के बाद वहां समर्थन आधार मजबूत करना प्राथमिकता है। राज्य प्रभारियों से शीर्ष पद के लिए नाम मांगे गए हैं, लेकिन भाजपा के अप्रत्याशित फैसलों का इतिहास—जैसे हरियाणा में नायब सिंह सैनी या मध्य प्रदेश में मोहन यादव की नियुक्ति—नाम तय करना मुश्किल बनाता है।

इन चेहरों की सबसे अधिक चर्चा

  1. धर्मेंद्र प्रधान: ओडिशा से आने वाले केंद्रीय शिक्षा मंत्री प्रधान मजबूत दावेदार हैं। एबीवीपी और आरएसएस से उनका जुड़ाव, मोदी-शाह का भरोसा, और उत्तर प्रदेश (2022) व हरियाणा (2024) में चुनावी सफलता उनकी संगठनात्मक कुशलता दिखाती है। ओबीसी और पूर्वी भारत से होने के कारण वे जाति-क्षेत्रीय संतुलन के लिए उपयुक्त हैं।
  2. शिवराज सिंह चौहान: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री चौहान के पास जमीनी अनुभव और आरएसएस का समर्थन है। उनकी सौम्य शैली ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित कर सकती है, लेकिन राष्ट्रीय भूमिका में अनुकूलन एक सवाल है।
  3. भूपेंद्र यादव: राजस्थान से केंद्रीय पर्यावरण मंत्री यादव, मोदी-शाह के करीबी और ओबीसी नेता हैं। उनकी शांत शैली और चुनावी रणनीति उन्हें मजबूत बनाती है।
  4. मनोहर लाल खट्टर: हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और मोदी के सहयोगी खट्टर की पंजाबी जड़ें और आरएसएस से नाता उनकी दावेदारी को बल देता है, लेकिन राष्ट्रीय पहचान कमजोर है।
  5. अनुराग ठाकुर: हिमाचल से युवा नेता ठाकुर, बीजेवाईएम के पूर्व प्रमुख, ऊर्जावान हैं, लेकिन उनकी ऊंची जाति ओबीसी फोकस को प्रभावित कर सकती है।
  6. विनोद तावड़े: महाराष्ट्र के राष्ट्रीय महासचिव तावड़े की संगठनात्मक विशेषज्ञता मजबूत है, लेकिन क्षेत्रीय फोकस राष्ट्रीय अपील को सीमित कर सकता है।

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