मस्जिद की देखरेख में हिंदू समुदाय
माड़ी गांव की इस मस्जिद की साफ-सफाई से लेकर इसकी रखरखाव तक, सारा काम हिंदू समुदाय के लोग मिलकर करते हैं। मस्जिद की दीवारों को चमकाने, फर्श को साफ करने और परिसर को सुंदर बनाए रखने में गांव के लोग कोई कसर नहीं छोड़ते। चूंकि गांव में कोई मुस्लिम परिवार नहीं है, इसलिए अजान देने की परंपरा को जीवंत रखने के लिए ग्रामीण मोबाइल फोन का सहारा लेते हैं। अजान की रिकॉर्डिंग बजाकर वे इस धार्मिक परंपरा को निभाते हैं, ताकि मस्जिद की रौनक बरकरार रहे।
शादी के बाद मस्जिद में आशीर्वाद लेने की परंपरा
माड़ी गांव की यह मस्जिद केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि गांव की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का भी अभिन्न हिस्सा है। यहां एक अनोखी परंपरा है, जो इस मस्जिद को और भी खास बनाती है। गांव में जब भी किसी की शादी होती है, तो नवविवाहित जोड़ा सबसे पहले मस्जिद में आकर आशीर्वाद लेता है। यह परंपरा न केवल हिंदू-मुस्लिम एकता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि गांववासी इस मस्जिद को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।
सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक
माड़ी गांव की यह मस्जिद उस दौर में एक मिसाल है, जब देश में कई बार धार्मिक तनाव की खबरें सुर्खियां बनती हैं। इस गांव ने साबित कर दिखाया है कि सच्चा धर्म वही है, जो इंसानियत, प्यार और एकता को बढ़ावा दे। हिंदू समुदाय के लोग न केवल मस्जिद की देखरेख करते हैं, बल्कि इसे गांव की धरोहर के रूप में संजोकर रखते हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह मस्जिद उनके पूर्वजों के समय से ही गांव का गौरव रही है, और इसे बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी है।
देश के लिए प्रेरणा
नालंदा का माड़ी गांव और इसकी मस्जिद देश के हर कोने के लिए एक प्रेरणा है। यह गांव हमें सिखाता है कि धर्म और समुदाय की दीवारें इंसानियत के सामने बौनी हैं। यहां के हिंदू समुदाय ने न केवल मस्जिद को जीवंत रखा, बल्कि इसे एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि भारत की सच्ची ताकत उसकी सांस्कृतिक विविधता और आपसी सम्मान में निहित है। माड़ी गांव की यह मस्जिद और यहां के लोगों का जज्बा हर उस व्यक्ति के लिए एक सबक है, जो धर्म को बांटने का साधन समझता है। यह गांव साबित करता है कि जब दिल में प्यार और समर्पण हो, तो कोई भी धर्म या परंपरा बोझ नहीं बनती, बल्कि वह एकता का पुल बन जाती है।