scriptSC ने रद्द की इमरान प्रतापगढ़ी पर दर्ज FIR, कथित भड़काऊ कविता पर गुजरात पुलिस को याद दिलाई अभिव्यक्ति की आजादी | SC cancels FIR against Imran Pratapgarhi, reminds Gujarat police of freedom of expression over alleged inflammatory poem | Patrika News
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SC ने रद्द की इमरान प्रतापगढ़ी पर दर्ज FIR, कथित भड़काऊ कविता पर गुजरात पुलिस को याद दिलाई अभिव्यक्ति की आजादी

गुजरात पुलिस ने इस कविता को आपत्तिजनक मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए इसे रद्द कर दिया।

भारतMar 28, 2025 / 11:55 am

Anish Shekhar

सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद और मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज की गई एक FIR को खारिज कर दिया। यह FIR उनके द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई एक कविता ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो…’ को लेकर थी। गुजरात पुलिस ने इस कविता को आपत्तिजनक मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए इसे रद्द कर दिया। कोर्ट के इस फैसले ने न केवल इमरान प्रतापगढ़ी को राहत दी, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को भी मजबूत किया।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट का नजरिया

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा, “विचारों और दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत गरिमापूर्ण जीवन जीना असंभव है।” जस्टिस ने इस बात पर बल दिया कि एक स्वस्थ लोकतंत्र में किसी व्यक्ति या समूह द्वारा व्यक्त विचारों का विरोध करने का तरीका दूसरा दृष्टिकोण प्रस्तुत करना होना चाहिए, न कि कानूनी कार्रवाई या दमन। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही बड़ी संख्या में लोग किसी के विचारों से असहमत हों, फिर भी उस व्यक्ति के विचार व्यक्त करने के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए।
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साहित्य और कला की महत्ता

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साहित्य और कला के महत्व को भी रेखांकित किया। कोर्ट ने कहा, “कविता, नाटक, फिल्म, व्यंग्य, कला सहित साहित्य मनुष्य के जीवन को अधिक सार्थक बनाता है।” इस टिप्पणी के जरिए कोर्ट ने यह संदेश दिया कि सृजनात्मक अभिव्यक्ति न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है, बल्कि यह समाज को समृद्ध करने में भी योगदान देती है। इमरान प्रतापगढ़ी की कविता को लेकर उठा विवाद इस बात का उदाहरण था कि कैसे साहित्यिक रचनाएँ समाज में बहस और विवाद का कारण बन सकती हैं, लेकिन कोर्ट ने इसे दबाने के बजाय संरक्षित करने की वकालत की।

कोर्ट ने कहा- लोकतंत्र में होनी चाहिए असहमति की जगह

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल इमरान प्रतापगढ़ी के लिए एक कानूनी जीत है, बल्कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यापक संदर्भ में भी एक मील का पत्थर है। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि लोकतंत्र में असहमति और विविध विचारों के लिए जगह होनी चाहिए, और साहित्यिक अभिव्यक्ति को दंडित करने के बजाय उसका सम्मान किया जाना चाहिए। इस फैसले से यह संदेश भी गया है कि संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका हमेशा तत्पर है, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में हो।

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