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SC ने BJP सांसद के खिलाफ दायर अवमानना याचिका खारिज की, दुबे ने लिखा- दिल के अरमां आंसुओं में बह गए

CJI संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि कोर्ट इस याचिका पर विचार नहीं करेगा, लेकिन इस मामले में एक संक्षिप्त आदेश पारित किया जाएगा

भारतMay 05, 2025 / 03:40 pm

Anish Shekhar

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 5 मई 2025 को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। इस याचिका में दुबे पर सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना के खिलाफ की गई टिप्पणियों के लिए अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी। हालांकि, CJI संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने इस मामले में एक संक्षिप्त और तर्कसंगत आदेश पारित करने का फैसला किया, जिसमें याचिका को स्वीकार न करने के कारणों का उल्लेख होगा। इस फैसले के बाद निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट साझा करते हुए लिखा, “दिल के अरमां आंसुओं में बह गए,” जिसने इस मामले को और चर्चा में ला दिया।

याचिका का आधार और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया था कि बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और CJI संजीव खन्ना के खिलाफ आपत्तिजनक और अपमानजनक टिप्पणियां की थीं, जो न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली थीं। तिवारी ने तर्क दिया कि ऐसी टिप्पणियां न केवल अदालत की अवमानना हैं, बल्कि जनता के बीच न्यायपालिका के प्रति अविश्वास को भी बढ़ावा देती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में स्वत: संज्ञान लेने और दुबे के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की मांग की थी।
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सुनवाई के दौरान, CJI संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि कोर्ट इस याचिका पर विचार नहीं करेगा, लेकिन इस मामले में एक संक्षिप्त आदेश पारित किया जाएगा, जिसमें याचिका को खारिज करने के कारणों का उल्लेख होगा। CJI ने कहा, “संस्था की गरिमा की रक्षा होनी चाहिए। यह इस तरह से नहीं चल सकता। पहले भी दिल्ली न्यायिक सेवा मामले में कोर्ट ने संज्ञान लिया था।” उन्होंने यह भी जोड़ा, “हम एक संक्षिप्त आदेश पारित करेंगे। हम कुछ कारण बताएंगे। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन एक संक्षिप्त आदेश देंगे।”
याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने कोर्ट के इस रुख पर निराशा जताई और कहा कि सुप्रीम कोर्ट को न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि सांसद जैसे प्रभावशाली लोग यदि इस तरह की टिप्पणियां करेंगे, तो यह न केवल न्यायपालिका के प्रति अपमान है, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी खतरा है।

निशिकांत दुबे का पक्ष और सोशल मीडिया पोस्ट

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी प्रतिक्रिया साझा की। उन्होंने एक भावुक और काव्यात्मक अंदाज में लिखा, “दिल के अरमां आंसुओं में बह गए,” जिसे उनके समर्थकों और आलोचकों ने अलग-अलग तरीके से व्याख्या किया। कुछ लोगों ने इसे उनकी राहत और खुशी की अभिव्यक्ति माना, जबकि अन्य ने इसे कोर्ट के फैसले पर एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी के रूप में देखा। दुबे ने अपनी पोस्ट में यह भी जोड़ा कि वह हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हैं और उनकी टिप्पणियों का उद्देश्य किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाना नहीं था।
दुबे ने पहले भी अपनी टिप्पणियों का बचाव करते हुए कहा था कि उनकी बातों को गलत संदर्भ में पेश किया गया और उनका इरादा न्यायपालिका का अपमान करना नहीं था। उन्होंने दावा किया कि उनकी टिप्पणियां केवल देश के हित में कुछ मुद्दों को उजागर करने के लिए थीं। हालांकि, याचिकाकर्ता और उनके आलोचकों ने इसे गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी करार दिया था।

पृष्ठभूमि और संदर्भ

निशिकांत दुबे, जो झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद हैं, अपनी बेबाक और विवादास्पद टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। हाल के महीनों में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों और CJI संजीव खन्ना के नेतृत्व में न्यायपालिका के रुख पर टिप्पणियां की थीं, जिन्हें कुछ लोगों ने आपत्तिजनक माना। खास तौर पर, पहलगाम हमले (22 अप्रैल, 2025) के बाद आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में कोर्ट के हस्तक्षेप पर उनकी टिप्पणियों ने विवाद को जन्म दिया था। याचिकाकर्ता ने इन्हीं टिप्पणियों को आधार बनाकर अवमानना कार्यवाही की मांग की थी।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली न्यायिक सेवा मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया था। इस मामले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि दुबे की टिप्पणियां भी उसी तरह की गंभीर प्रकृति की थीं। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले को उससे अलग मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया।

विवाद और व्यापक प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है। एक ओर, यह न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर, यह स्वतंत्र अभिव्यक्ति और अवमानना के बीच की महीन रेखा को भी उजागर करता है। निशिकांत दुबे जैसे प्रभावशाली राजनेता की टिप्पणियां और कोर्ट का उन पर विचार न करने का फैसला समाज में एक बड़े विमर्श को जन्म दे सकता है।
कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट ने इस मामले में संयमित रुख अपनाकर एक संतुलित संदेश देने की कोशिश की है। वे कहते हैं कि हर टिप्पणी को अवमानना का आधार बनाना न्यायपालिका के लिए अनावश्यक बोझ बढ़ा सकता है, लेकिन साथ ही, कोर्ट ने अपने संक्षिप्त आदेश के वादे के जरिए यह भी स्पष्ट किया है कि वह ऐसी टिप्पणियों को पूरी तरह से अनदेखा नहीं करेगा।

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