10 स्थानों पर हुआ गहन अध्ययन
1987 से 2021 के बीच देश के 10 ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच स्टेशनों (श्रीनगर, जोधपुर, प्रयागराज, मोहनबाड़ी, पुणे, नागपुर, विशाखापत्तनम, कोडाईकनाल, मिनिकॉय और पोर्ट ब्लेयर) पर यह अध्ययन किया गया। इन जगहों पर बारिश के पानी में रसायनों की मात्रा और पीएच स्तर की निगरानी की गई। क्या है अम्लीय वर्षा
वर्षा जल का सामान्य पीएच (pH) स्तर लगभग 5.6 होता है। बारिश का
पानी वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के कारण स्वाभाविक रूप से थोड़ा अम्लीय होता है। लेकिन, जब यह स्तर 5.65 से नीचे चला जाए, तो इसे ‘अम्लीय वर्षा’ माना जाता है। अध्ययन के अनुसार, पिछले तीन दशकों में कई शहरों में वर्षा जल का पीएच लगातार गिरता जा रहा है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
- प्रयागराज में बारिश के दौरान पीएच में हर दशक 0.74 यूनिट की गिरावट दर्ज की गई। पुणे में हर दशक 0.15 यूनिट घटा है।
- विशाखापत्तनम की अम्लीयता के पीछे तेल रिफाइनरी, उर्वरक संयंत्र और शिपिंग यार्ड से निकलने वाले प्रदूषक माने जा रहे हैं।
- जोधपुर और श्रीनगर जैसे स्थानों पर आसपास के रेगिस्तानी क्षेत्रों से आने वाली धूल अम्लीय तत्वों को बेअसर करने में सहायक है।
जलवायु परिवर्तन मुख्य कारण
शोध में यह भी सामने आया कि वाहनों, उद्योगों और कृषि गतिविधियों से निकलने वाले नाइट्रेट और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक अम्लीय वर्षा के लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही, प्राकृतिक न्यूट्रलाइज़र जैसे कैल्शियम कणों की मात्रा में गिरावट और अमोनियम की सीमित वृद्धि संतुलन बनाए रखने में असमर्थ रही है।
भविष्य की चेतावनीः खाद्य श्रृंखला पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान पीएच स्तर अभी अत्यधिक खतरनाक नहीं हैं, लेकिन यदि यही रुझान जारी रहा, तो यह अम्लीय वर्षा ऐतिहासिक स्मारकों, इमारतों, कृषि भूमि और जल स्रोतों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। अम्लीय जल भारी धातुओं को मिट्टी से निकालकर भूगर्भीय जल तंत्र में पहुंचा सकता है, जिससे यह खाद्य श्रृंखला और मानव स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है।