ऐसे संभव हुआ
इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए वैज्ञानिकों ने डायर वुल्फ के दो जीवाश्म नमूनों से डीएनए लिए जिसमें एक 13,000 साल पुराने दांत और दूसरा 72,000 साल पुरानी खोपड़ी से लिया गया। इसके बाद वैज्ञानिकों ने जीन-एडिटिंग तकनीक की मदद से डायर वुल्फ के सबसे करीबी जीवित रिश्तेदार, ग्रे वुल्फ के भ्रूणों के उन जीनोम में बदलाव किए, जो खोपड़ी के आकार, जबड़े, फर और मांसपेशियों के द्रव्यमान जैसे विशेषताओं के लिए जिम्मेदार होते हैं और डायर वुल्फ को पुनर्जीवित किया। जन्म के कुछ दिन बाद तक इन भेड़ियों ने सरोगेट मां का दूध पिया और फिर यह बोतल से दूध पीने लगे।
गुप्त स्थान पर रहते है यह भेड़िये
कंपनी के अनुसार, यह दोनों भेडिये अब एक स्वस्थ युवा डायर वुल्फ का जीवन जी रहे है। इन्हें 2,000 एकड़ की एक जमीन पर रखा जा रहा है, जो कि एक गुप्त स्थान पर है। इस जगह की सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर 10 फुट ऊंची बाड़ बनाई गई है। सुरक्षा कर्मचारी, ड्रोन और लाइव कैमरा फीड के जरिए इन भेड़ियो की लगातार निगरानी की जाती है।
क्यों खास है ये काम?
कोलोसल ने पहले भी हाथी जैसे वूली मैमथ, डोडो और तस्मानियन टाइगर को दोबारा लाने की योजना बनाई थी, लेकिन डायर वुल्फ पर काम गोपनीय था। हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि ये बच्चे पूरी तरह से डायर वुल्फ नहीं, बल्कि उनके जैसे दिखने वाले हाइब्रिड हैं। इनका जीनोम 99.9 प्रतिशत ग्रे वुल्फ जैसा है। लेकिन इनका लुक, फर और बनावट पुराने डायर वुल्फ जैसी ही है, जिससे इन्हें ‘डायर वुल्फ फिनोटाइप’ कहा जा रहा है।
प्रयोग पर विवाद क्यों ?
कुछ विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं कि क्या इतना पैसा (कंपनी अब तक 435 मिलियन डॉलर जुटा चुकी है) विलुप्त प्रजातियां जिंदा करने पर लगाना सही है? क्या येे सिर्फ विज्ञान का शो-पीस बनकर रह जाएंगे? मोंटाना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्रिस्टोफर प्रेस्टन कहते हैं, हम तो अभी मौजूदा ग्रे वुल्फ की जनसंख्या नहीं बचा पा रहे हैं, तो डायर वुल्फ को जंगल में छोड़ना फिलहाल कल्पना ही है। हिमयुग में पाए जाते थे डायर वुल्फ
डायर वुल्फ हिमयुग की एक प्रजाति है जो मैमथ और सेबर-टूथ बिल्लियों जैसे बड़े जानवरों के समय धरती पर पाए जाते थे। उत्तरी अमरीका में पाए जाने वाले यह भेडिय़े मौजूदा भेड़ियों से बड़े और ताकतवर थे। इनकी कंधे तक की ऊंचाई एक मीटर से भी ज्यादा होती थी और यह बाइसन और ग्राउंड स्लॉथ जैसे जानवरों का शिकार करते थे।