Kailash Gehlot: BJP विधायक बनते ही कैलाश गहलोत ने बदला निर्णय, केंद्र सरकार को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
BJP MLA Kailash Gehlot: दिल्ली चुनाव 2025 में भाजपा के टिकट पर बिजवासन विधानसभा सीट से विधायक बने कैलाश गहलोत ने केंद्र सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर याचिका वापस ले ली है। यह याचिका साल 2022 में दायर की गई थी।
BJP MLA Kailash Gehlot: आम आदमी पार्टी सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने दिल्ली हाईकोर्ट से उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका वापस ले ली। जिसके तहत राज्य सरकार के मंत्रियों और सीएम को विदेश यात्रा के लिए केंद्र सरकार से राजनीतिक अनुमति लेनी अनिवार्य है। यह याचिका साल 2022 में दायर की गई थी। उस समय कैलाश गहलोत दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार में मंत्री थे। दिल्ली चुनाव 2025 में भाजपा के टिकट पर बिजवासन सीट से विधायक बनने के बाद कैलाश गहलोत के वकील ने हाईकोर्ट में याचिका वापस लेने के लिए आवेदन किया। जिसे हाईकोर्ट ने मंजूर करते हुए याचिका खारिज कर दी।
कैलाश गहलोत के वकील के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने क्या कहा?
दरअसल, बिजवासन विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर विधायक बनने के बाद कैलाश गहलोत के वकील ने हाईकोर्ट में जस्टिस सचिन दत्ता की बेंच के सामने याचिका वापस लेने का आवेदन प्रस्तुत किया। इसपर अदालत ने कहा “कैलाश गहलोत की ओर से याचिका वापस लिए जाने के कारण खारिज की जाती है।” दरअसल, साल 2022 में दिल्ली के तत्कालीन सीएम अरविंद केजरीवाल को 8वें विश्व नगर शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए सिंगापुर की यात्रा करने की अनुमति नहीं मिली थी।
कैलाश गहलोत ने याचिका में क्या कहा था?
इसके साथ ही कैलाश गहलोत ने लंदन परिवहन के निमंत्रण पर लंदन जाने के लिए केंद्र की मंजूरी मांगी थी। इसमें केंद्र सरकार के संबंधित अधिकारियों की ओर से तब तक कोई जवाब नहीं मिला। जब तक कि अनुरोध अर्थहीन नहीं हो गया। इसी को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसमें बताया गया था कि केंद्र सरकार का इस तरह के ‘विवेक के दुरुपयोग’ का यह पहला मामला नहीं है।
याचिका में कैबिनेट सचिवालय द्वारा जारी कई ऑफिस मेमोरेंडम के कार्यान्वयन और उनका मार्गदर्शन करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। इसमें कहा गया था कि राज्य सरकार के मंत्रियों को उनकी आधिकारिक क्षमता में विदेश यात्राओं के लिए केंद्र सरकार को अनुमति देने या न देने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
केंद्र के खिलाफ दायर याचिका में एलजी को बनाया गया था प्रतिवादी
याचिका में ये भी कहा गया था कि भारतीय राजनेताओं की यात्रा मंजूरी के लिए केंद्र की ओर से जिस मनमाने तरीके का व्यवहार किया जाता है। वह न केवल अच्छे शहरी शासन बल्कि वैश्विक मंचों पर राष्ट्रीय हितों के लिए भी हानिकारक है। याचिका में एलजी को प्रतिवादी संख्या-1 बनाया गया था। याचिका में कहा गया था कि एलजी ने केजरीवाल की सिंगापुर यात्रा के खिलाफ सलाह देकर न केवल अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर काम किया है। बल्कि ऊपर उल्लिखित ऑफिस मेमोरेंडम द्वारा प्रदत्त शक्तियों का वास्तविक मनमाना प्रयोग किया है। जो प्रतिवादियों की ओर से विवेक के अनियंत्रित उपयोग को दिखाता है। हालांकि कैलाश गहलोत ने नवंबर 2024 में दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था।
कैलाश गहलोत ने क्यों छोड़ी थी आम आदमी पार्टी?
17 नवंबर 2024 को कैलाश गहलोत ने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को अपना इस्तीफा सौंपा था। इस इस्तीफे में कैलाश गहलोत ने पार्टी छोड़ने की वजह भी बताई थी। तत्कालीन कैबिनेट मंत्री कैलाश गहलोत ने केजरीवाल को लिखे पत्र में कहा था। “सबसे पहले मैं आपको एक विधायक और एक मंत्री के रूप में दिल्ली के लोगों की सेवा करने और उनका प्रतिनिधित्व करने का सम्मान देने के लिए ईमानदारी से धन्यवाद देना चाहता हूं, लेकिन साथ ही मैं यह भी बताना चाहता हूं कि आज आम आदमी पार्टी के सामने गंभीर चुनौतियां हैं। ये चुनौतियां पार्टी के भीतर से हैं, उन्हीं मूल्यों से जुड़ी हैं जिनके कारण हम आम आदमी पार्टी में आए हैं।”
आम आदमी पार्टी की कमियों को किया उजागर
कैलाश गहलोत ने अपने इस्तीफे में आगे लिखा था “राजनीतिक महत्वाकांक्षा लोगों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता पर हावी हो गई है। हमने स्वच्छ नदी बनाने का वादा किया था, लेकिन कभी पूरा नहीं कर पाए। गहलोत ने टिप्पणी कि है कि अब यमुना नदी शायद पहले से भी ज्यादा प्रदूषित हो गई है।” इसके अलावा कैलाश गहलोत ने अरविंद केजरीवाल के ‘शीशमहल’ का भी जिक्र किया था। उन्होंने पत्र में लिखा था “अब ‘शीशमहल’ जैसे कई शर्मनाक और अजीबोगरीब विवाद भी सामने आ रहे हैं, जो अब सभी को यह संदेह पैदा कर रहे हैं कि क्या हम (आम आदमी पार्टी) अब भी आम आदमी होने में विश्वास रखते हैं। एक और दुखद बात यह है कि लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने के बजाय हम केवल अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए लड़ रहे हैं। इसने दिल्ली के लोगों को बुनियादी सेवाएं देने की हमारी क्षमता को भी गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है। अब यह स्पष्ट है कि अगर दिल्ली सरकार अपना ज्यादातर समय केंद्र से लड़ने में बिताती है तो दिल्ली की वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती।”
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