मई 1981 में फूलन देवी (Phoolan Devi) ने डाकू लालाराम और श्रीराम से अपने दुष्कर्म का बदला लेने के लिए कानपुर देहात के बेहमई गांव पहुंची थी। यहां 22 लोगों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी। इसके बाद उस समय तक लालाराम और उसकी प्रेमिका बन चुकी कुसमा नाइन ने बदला लेने का सोचा। बेहमई कांड के एक साल बाद फूलन देवी ने सरेंडर कर दिया था। इसके बाद कुसमा नाइन का गैंग बुंदेलखंड में सक्रिय हो गया।
साल 1984 में कुसमा नाइन अपने गैंग के साथ औरैया के अस्ता गांव पहुंची। यहां गांव के 15 मल्लाहों को लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था। इतना ही नहीं गांव के कई घरों को आग के हवाले कर दिया था। 1966 में इटावा के भरेह गांव में दो मल्लाहों की आंखें तक निकाल ली थी। कुसमा के बारे कहा जाता है कि उसका गैंग लोगों का अपहरण करता था फिर लकड़ी से जलाती और हंटर से मारती थी। इन्हीं कारणों से कुसमा नाइन को यमुना-चंबल की शेरनी तक कहा जाने लगा। इटावा जिला जेल के अधीक्षक के मुताबिक, कुसमा नाइन लंबे समय से टीवी से ग्रसित थी।
चुर्खी थाना क्षेत्र के एक गांव में 1982 में लालाराम व कुसुमा का गैंग रुका हुआ था। इस गांव में अक्सर डकैत रहा करते थे। इसकी जानकारी जब तत्कालीन चुर्खी थानाध्यक्ष केलीराम को हुई, तो वह दबिश देने गांव पहुंच गए। उस समय कुसुमा शीशा लेकर अपनी मांग में सिंदूर भर रही थी। जैसे ही उसे शीशे में पुलिस दिखी तो उसने पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी थी। इस घटना में थानाध्यक्ष केलीराम और सिपाही भूरेलाल की मौत हो गई थी। कुसमा पुलिस की दो थ्री नाट थ्री रायफल लूट ले गई थी।
सिरसाकलार थाने के टिकरी गांव निवासी डरू नाई की पुत्री कुसमा का जन्म 1964 में हुआ था। उसके पिता गांव के ग्राम प्रधान थे, जबकि चाचा गांव में सरकारी राशन के कोटे की दुकान चलाते थे। वह इकलौती संतान होने के चलते परिवार उसे बड़े लाड़ प्यार से पाल रहे थे। लेकिन जब वह 13 साल की हुई तो उसे पड़ोसी माधव मल्लाह से प्रेम प्रसंग हो गया और वह उसके साथ चली गई। दो साल तक उसका कोई पता नहीं चला। दिल्ली से एक बार उसने पिता को चि_ी लिखी। इसके बाद उसके पिता घर ले आए और कुरौली गांव के केदार नाई के साथ कर दी। चूंकि माधव कुसमा से प्रेम करता था, तो उसने यह बात अपने रिश्तेदार दस्यु विक्रम मल्लाह को बताई। इस पर विक्रम अपनी गैंग के साथ कुसमा के ससुराल पहुंचा और कुसुमा को अगवा कर ले गया। इसके बाद वह माधव के साथ विक्रम के गैंग में शामिल हो गई। विक्रम और फूलन देवी एक ही गैंग में काम करते थे, लेकिन कुसमा के आने से उनमें विवाद होने लगा। इस पर कुसमा को दस्यु लालाराम को मारने को कहा गया। लालाराम को मारने की बजाय वह उसके गैंग में ही शामिल हो गई।