न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने कहा “पहले गोखले को संयुक्त राष्ट्र की पूर्व सहायक महासचिव पुरी से माफी मांगने और उन्हें 50 लाख रुपये का हर्जाना देने का निर्देश दिया गया था, लेकिन उन्होंने न तो जुर्माने की राशि जमा की और न ही कोई उचित स्पष्टीकरण दिया।” कोर्ट ने यह भी कहा था कि गोखले माफी अपने X (पहले ट्विटर) हैंडल पर पोस्ट करें और उसे 6 महीने तक वहीं बनाए रखें। साथ ही माफी को एक प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार में भी प्रकाशित करना होगा।
दिल्ली हाईकोर्ट ने गोखले के खिलाफ जारी किया वारंट
गोखले ने इस आदेश के खिलाफ एक याचिका दायर की है और कहा है कि वह माफ़ीनामा प्रकाशित नहीं करेंगे, क्योंकि इससे उनकी याचिका का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। लेकिन जज ने माना कि गोखले के पास 50 लाख रुपये जमा न करने का कोई वाजिब कारण नहीं है। अदालत ने कहा ‘‘इसी के मद्देनजर प्रतिवादी के वेतन के संबंध में धारा 60 (1) के तहत कुर्की का वारंट जारी किया जाता है। उनका वेतन 1.90 लाख रुपये बताया गया है। इसमें एक हिस्सा तब तक जब्त किया जाए। जब तक वह 50 लाख रुपये अदालत में जमा नहीं कर देते। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 60 के अनुसार, निर्णय के निष्पादन के मामलों में ऋणी का वेतन पहले एक हजार रुपये और शेष राशि के दो-तिहाई तक कुर्क किया जा सकता है।” कौन हैं लक्ष्मी पुरी, जिन्होंने गोखले पर किया मानहानि का मुकदमा?
दरअसल, टीएमसी के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले पर मानहानि का मुकदमा करने वाली लक्ष्मी पुरी केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी की पत्नी हैं। वह संयुक्त राष्ट्र की पूर्व सहायक महासचिव भी रह चुकी हैं। लक्ष्मी पुरी ने साल 2021 में TMC सांसद साकेत गोखले पर मानहानि का केस किया था। इसमें आरोप लगाया था कि साकेत गोखले ने जिनेवा स्थित उनके फ्लैट और वित्तीय मामलों को लेकर झूठे और अपमानजनक आरोप लगाए। इसपर दिल्ली हाईकोर्ट ने 1 जुलाई 2024 को गोखले को माफीनामा जारी करने और 50 लाख रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि गोखले भविष्य में पुरी या उनके पति के खिलाफ कोई भी अपमानजनक या भ्रामक पोस्ट न करें।
निर्विरोध उम्मीदवार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिया सुझाव
एक दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों को लेकर बड़ा सवाल उठाया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से पूछा है कि अगर कोई उम्मीदवार निर्विरोध है। तब भी क्या उसे जीतने के लिए न्यूनतम वोट प्रतिशत हासिल करना जरूरी किया जा सकता है? जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह एक लोकतांत्रिक और प्रगतिशील सुधार हो सकता है। उन्होंने कहा, “कम से कम 10% या 15% वोट मिलना जरूरी होना चाहिए, ताकि यह साबित हो सके कि जनता उम्मीदवार को पसंद करती है।” यह बात विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कही गई। याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की उस धारा को चुनौती दी गई है, जो कहती है कि अगर कोई उम्मीदवार अकेला बचता है, तो उसे बिना चुनाव कराए ही विजेता घोषित कर दिया जाएगा। वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने दलील दी कि ऐसी स्थिति में मतदाताओं को NOTA (इनमें से कोई नहीं) चुनने का अधिकार मिलना चाहिए। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में केवल एक ही निर्विरोध चुनाव हुआ है, इसलिए यह कोई गंभीर समस्या नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि यह एक रचनात्मक सुझाव है और अगर भविष्य में ऐसी स्थिति पैदा होती है, तो लोकतंत्र की मजबूती के लिए कानून में बदलाव होना चाहिए। केंद्र सरकार के वकील (अटॉर्नी जनरल) ने कहा कि यह विषय संसद में विचार के लायक है, लेकिन इससे मौजूदा कानून को रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने फिलहाल केंद्र को चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है और सुनवाई अगली सप्ताह फिर होगी।