scriptJustice Yashwant Verma: जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका; CJI की इन-हाउस जांच को दी गई चुनौती | Plea in Supreme Court FIR against Justice Yashwant Verma Challenges CJI in-house investigation Committee Constituted | Patrika News
नई दिल्ली

Justice Yashwant Verma: जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका; CJI की इन-हाउस जांच को दी गई चुनौती

Justice Yashwant Verma: दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा पर केस दर्ज करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें मांग की गई है कि पुलिस को जस्टिस वर्मा के खिलाफ केस दर्ज करने का निर्देश दिया जाए।

नई दिल्लीMar 24, 2025 / 08:05 pm

Vishnu Bajpai

Justice Yashwant Verma: जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका; CJI की इन-हाउस जांच को दी गई चुनौती
Justice Yashwant Verma: दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने के दौरान भारी मात्रा में कथित कैश मिलने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। इस मामले में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा, हेमाली सुरेश कुर्ने, राजेश विष्णु आद्रेकर और चार्टर्ड अकाउंटेंट मंशा निमेश मेहता ने संयुक्त रूप से दायर की है। इस याचिका में जस्टिस वर्मा, सीबीआई, ईडी, आयकर और जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच करने वाली न्यायाधीशों की समिति के सदस्यों को मामले में पक्ष बनाया गया है।

दिल्ली पुलिस को मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया जाए

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा गया है कि इस मामले में दिल्ली पुलिस को मुकदमा दर्ज करने और प्रभावी तथा सार्थक जांच करने का निर्देश दिया जाए। इसके साथ ही याचिका में कहा गया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की ओर से 22 मार्च को गठित तीन सदस्यीय न्यायाधीशों की समिति को जस्टिस वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है। वो घटना भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस ) के तहत विभिन्न संज्ञेय अपराधों के दायरे में आती है।
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दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा ने दायर याचिका में के. वीरस्वामी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती दी है। इसमें माना गया था कि किसी मौजूदा हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज पर धारा 154 सीआरपीसी के तहत आपराधिक मामला केवल भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श के बाद ही दायर किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जबकि अधिकांश जज ईमानदारी से काम करते हैं। ऐसे में वर्तमान मामले जैसे मामलों को निर्धारित आपराधिक प्रक्रिया से नहीं छोड़ा जा सकता है।

मामले को दबाने के प्रयास का किया उल्लेख

याचिका में आगे कहा गया है “जनता की धारणा यह है कि इस मामले को दबाने की बहुत कोशिश की जाएगी। यहां तक ​​कि पैसे की वसूली के बारे में शुरुआती बयानों का भी अब खंडन किया जा रहा है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा के स्पष्टीकरण के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट और भारी मात्रा में करेंसी नोटों को बुझाने वाले अग्निशमन दल के वीडियो को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करके जनता का विश्वास बहाल करने में कुछ हद तक मदद की है।”

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ गठित जांच समिति अवैध

जनहित याचिका में बताया गया है कि इस तरह की जांच करने का अधिकार समिति को देने का निर्णय शुरू से ही निरर्थक है, क्योंकि कॉलेजियम (सुप्रीम कोर्ट) खुद को ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं दे सकता। जबकि संसद या संविधान ने ऐसा करने का अधिकार नहीं दिया है। याचिका में कहा गया है “जब अग्निशमन/पुलिस बल ने आग बुझाने के लिए अपनी सेवाएं दीं तो यह बीएनएस के विभिन्न प्रावधानों के तहत दंडनीय संज्ञेय अपराध बन गया और पुलिस का कर्तव्य है कि वह मुकदमा दर्ज करे।”
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याचिका में कहा गया है “यह न्याय बेचकर जमा किए गए काले धन को रखने का मामला है। जस्टिस वर्मा के अपने बयान पर विश्वास करने का प्रयास करने पर भी यह सवाल बना हुआ है कि उन्होंने मुकदमा क्यों नहीं दर्ज कराया। पुलिस को साजिश के पहलू की जांच करने में सक्षम बनाने के लिए देर से भी प्राथमिकी दर्ज करना अत्यावश्यक आवश्यक है। ऐसे में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में याचिकाकर्ताओं की जानकारी में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।”

आख़िर 14 मार्च को FIR क्यों नहीं हुई?

याचिका में आम जनता और मीडिया का हवाला देकर कहा गया है कि जब 14 मार्च को ये घटना हुई, तो उसी दिन FIR क्यों नहीं दर्ज की गई? किसी को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया? जब इतनी बड़ी रकम बरामद हुई तो पैसे जब्त क्यों नहीं किए गए? कोई पंचनामा (मौका मुआयना) क्यों नहीं बना? और आपराधिक प्रक्रिया की शुरुआत क्यों नहीं की गई? यह घोटाला सामने आने में पूरे एक हफ़्ते से ज़्यादा का वक्त क्यों लग गया?

सिर्फ़ आंतरिक जांच से जनता के हित को नुकसान

याचिका में आगे कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की कमेटी बनाकर केवल इन-हाउस (आंतरिक) जांच कराना और FIR दर्ज न करना, आम जनता के हितों के खिलाफ है। इससे न केवल सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका की साख को नुकसान हुआ है, बल्कि अगर न्यायमूर्ति वर्मा के दावे को सही भी मान लिया जाए, तो भी मामला गंभीर है और आंतरिक जांच काफी नहीं है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए सख्त कानून लाया जाए। सरकार को आदेश दिया जाए कि वह न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए Judicial Standards and Accountability Bill, 2010 जैसे कानून को दोबारा लागू करे जो पहले रद्द हो चुका है।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने की वर्मा के इलाहाबाद ट्रांसफर की सिफारिश

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की सिफारिश की है। वह मूल रूप से इलाहाबाद उच्च न्यायालय से संबंधित थे। उन्हें साल 2021 में दिल्ली लाया गया था। सोमवार को सीजेआई संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एएस ओका वाले कॉलेजियम द्वारा जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है “सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 20 और 24 मार्च 2025 को आयोजित अपनी बैठकों में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने की सिफारिश की है।”

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