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Ambedkar Jayanti: राष्ट्र और सामाजिक प्रतिमानों के जीवंत निर्माता हैं डॉ. बी. आर. अंबेडकर – संदीप कुमार वर्मा

बी. आर. अंबेडकर ने अपने जीवन के झंझावतों से निकलकर युगांतकारी सुजन की नींव रखी। हमारा दायित्व है कि हम उनकी कर्तव्यनिष्ठ भारतीयता को अवश्य समझे। उनके विचारों को रेखांकित करें और प्रेरणापुंज के रूप में उनके व्यक्तिव को आत्मसात करें।

भोपालApr 14, 2025 / 01:28 am

Mahendra Pratap

Dr. Baba Saheb Bhim Rao Ambedkar (Pic: Social Media)

Ambedkar Jayanti 2025: डॉ. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जैसा विद्वान और महान व्यक्तित्व संघर्ष की रणभूमि में विश्वव्यापी योद्धा हैं। वे देश दुनिया के सामने नैतिक और कर्तव्यनिष्ठ देशभक्ति के पर्याय हैं। स्वतंत्रतापूर्व के भारत में सामाजिक विभेद और सामुदायिक अवरोध के प्रति उनका संघर्ष अविस्मरणीय है। बी. आर. अंबेडकर ने अपने जीवन के झंझावतों से निकलकर युगांतकारी सुजन की नींव रखी। हमारा दायित्व है कि हम उनकी कर्तव्यनिष्ठ भारतीयता को अवश्य समझे। उनके विचारों को रेखांकित करें और प्रेरणापुंज के रूप में उनके व्यक्तिव को आत्मसात करें। उनके जीवन संघर्ष और जीवटता का संगम किसी भी संघर्षरत समुदाय के लिए प्रेरक है।
सामाजिक भेद के कारण जिन्हें निम्नवर्ग की भावना से देखता रहा। उन्होंने ऐसी चुनौती को भी अपने महानतम कार्यों से शीर्षस्थ बनाकर दिखला डाला। आज उनके जीवन को शौर्य के शिखर के रूप में देखा जाता है। उनकी सामाजिक दृष्टि और विचारधारा जाति, वर्ग, असमानता और भेदभाव के परे समरसता और विश्व नागरिक बनने का रास्ता दिखलाती है। उनके जन्मदिवस पर सामाजिक परिवर्तन के महत्वपूर्ण सूत्र जिनमें तर्कशील ज्ञान, वैज्ञानिकता और व्यापक विचार के आचरण का स्मरण करना हमारे लिए आवश्यक है। वर्तमान समय और भावी पीढ़ी को उनके द्वारा दी गयी प्रेरणा अर्थात शिक्षित, संगठित और संघर्ष के मायने को गहरे अर्थ में आत्मसात करना होगा। एक समाजसुधारक, विद्वान और उद्धारक के रूप में उनके विमर्श से प्रेरणा लेना ही उनकी जयंती का पर्याय है।
डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक असमानता के अपरिवर्तनीय कारणों को गहरायी से विश्लेषित किया। उन्होंने असमानता को मात्र एक सामुदायिक या वर्गीय समस्या के रूप में नहीं देखा। वे इसे समूचे देश की सामाजिक समस्या के रूप में देखते हैं। जाति व्यवस्था, भेद-भाव और असमानता के विरुद्ध मानवीय मूल्यों को स्थापित करने के लिए डॉ. अंबेडकर की ऐतिहासिक भूमिका रही है। उनका चिंतन और विमर्श मानवीय दृष्टि से ओतप्रोत है। वे समाज में साहचर्य के पतन को देश की प्रगति का बाधक मानते हैं।
उनका मानना है कि सामाजिक समस्याओं के प्रति लोगों को सुरक्षा और समाधान देने के लिए एक विद्वान की भूमिका क्या होनी चाहिए? सामाजिक अन्याय के मूल कारणों में प्राषः जातिगत भेदभाव, छुआछूत, सामाजिक अलगाव, अपमान व घृणा आदि विखायी देती है। ऐसे में डॉ. अंबेडकर के विचार तीक्ष्ण और संवेदनशील उत्तर प्रस्तुत करते हैं। वे न्याय और अवसर के प्रति सभी की समानता पर बल दते हैं। विधिवेत्ता के रूप में उन्होंने सदैव स्वतंत्र विचारों और तर्क से समाजिक प्रगति स्थापित की।
राष्ट्र में प्रजातंत्र का अस्तित्व आवश्य है। इसके लिए समाज को स्वतंत्र और सामाजिक उत्तरदायित्वों से परिपूर्ण बनाना उनकी प्रतिबद्धता रही। सामाजिक चुनौतियों और संघर्ष पर उनकी वैचारिकी आज भी अनेक विधियों, प्रावधानों और योजनाओं में स्थापित हैं। उन्होंने स्त्रियों, श्रमिक वर्ग सहित राष्ट्रीय विकास के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं पर सैद्धांतिक चिंतन दिया। एक उद्धारक के रूप में उनके व्यक्तित्व की अनेक बातों को इस प्रकार देखा जा सकता है-
  • डॉ. बाबासाहब अंबेडकर को महामानव कहा जाता है। हमें ऐसे महापुरुष के वैचारिक स्रोतों, निष्ठा, स्वतंत्र निर्णय और ओजस्वी क्षमता को अवश्य देखना चाहिए।
  • उनके समर्पित भाव, नवाचार और सामाजिक परिवर्तन ने सामाजिक प्रगति का नया आयाम दिया। इन्हीं प्रतिमानों को विश्वभर ने अपनाया है।
  • वे अपने अनुकरण में समेकित भाव से गौतम बुद्ध, संत कबीर और महात्मा ज्योतिबा फुले जैसे सक्रिय विचारकों से प्रभावित रहे।
  • देश-दुनिया के लिए आधारभूत अधिकार, न्याय और समाता के स्थापत्य में उनका विशष्ट योगदान है।
  • सामाजिक समन्वय और समस्याओं के प्रति निदानात्मक आचरण के कारण समूचा विश्व उनको ज्ञान के प्रेरणापुज के रूप मानता है।
  • उनका जीवन स्मरण कराता है कि सामाजिक अव्यवस्थाओं से लड़ने के साथ सशक्त रूप से नवनिर्माण के लिए बढ़ने से ही प्रगति का मार्ग निकलता है।
समूचा विश्व डी. अंबेडकर की 134वीं जयंती मनाते हुए उन्हें सामाजिक समरसता के उगते सूर्च के रूप में देखता है।
सामाजिक भेदभाव, दलितों के प्रति अपमान व अन्यायपूर्ण कृत्यों सहित सामाजिक इतिहास की विषमता है। समाज में स्थापित क्रूर और दारूण जीवन संघर्ष डॉ. अंबेडकर के लिए बेहद भयानक और चुनौतीपूर्ण था। बावजूद इसके बचपन से ही डॉ. अंबेडकर ने स्थिर मन से गैरमामूली जीवन संघर्ष को स्वीकारा। उनका जीवन संघर्ष किसी साधारण व्यक्ति को भीतर से तोड़ सकता है। फिर भी उन्होंने सामाजिक कठिनाई से प्रगति का मार्ग बनाने की परिपक्व रूपरेखा तैयार की। यह उनके असाधारण व्यक्तित्व को बयां करता है।
पाठशाला में भेदभाव और अस्पृश्यता जैसी अनेक प्रताड़नाओं का सामना करने वाले बालक भीमराव ने कड़ी मेहनत कर बत्तीस डिग्रियां प्राप्त की। वे अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र और विधि जैसे अनेक विषयों में स्नातक और परास्नातक करने वाले वनिया के सबसे अधिक पढ़े-लिखे विद्वान हैं। एक साधारण ग्रामीण भारत के स्कूल से शिक्षा आरंभ करने वाले डॉ. अंबेडकर ने बॉम्बे से लेकर अमेरिका के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की। उनकी उत्कृष्टता का प्रमाण इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय में एक विद्वान विद्यार्थी के रूप में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा भी अमेरिका में स्थापित है। यह बड़ा असाधारण है कि वे विश्व की ग्यारह भाषाओं में विद्वता रखते थे। बावजूद इसके उन्होंने आने वाले समाज और देश में असमानता, अशिक्षित और गरीबो में जागरुकता लाने के लिए उच्च पदों व नौकरी का त्याग किया।
मात्र पैंसठ वर्ष के जीवनकाल में मानव कल्याण, अधिकार, स्त्री उत्थान, सामाजिक आंदोलन, लेखन, समाचारपत्रों के संपादन और सामाजिक उत्थान सहित उन्होंने अनेक सार्थक प्रयास किए। समूची दुनिया आज सामाजिक समरसता के लिए उनका अमिट योगदान मानती है। उनके विश्वस्तरीय ज्ञान और प्रतिभा के कारण उन्हें स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण की मुख्य भूमिका में शामिल किया गया। वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रिजर्व बैंक और बहुउद्देश्यीय विकास परियोजनाओं में जल संसाधन व प्रबंधन के लिए दामोदर घाटी परियोजना को साकार किया। ऐसे अनेक कार्य और योजनाएं उनकी प्रखरता का प्रमाण है।
डॉ. अंबेडकर ने मानव मूल्य और अधिकार को समानता के साथ लागू करने की सदैव वकालत स्वतंत्रता पूर्व ही की। उनकी बहसों में सामाजिक समस्याओं पर सटीक निराकरण और तर्क देखे जा सकते हैं। श्रमिकों की दुगर्ति और अमानवीय कार्य स्थिति पर चिंता जताते हुए उन्होंने श्रमिकों को दिन में चौदह घंटे कार्य करने के बजाए आठ घंटे कार्य करने की विधि को स्थापित किया। मानवीय मूल्यों पर आधारित ऐसे अनेक कार्य अविस्मणीय है। महिलाओं के हितों और संरक्षण के लिए हिंदू कोड बिल के समय उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र भी दिया था। विधि मंत्री के रूप में महिलाओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता ने सशक्त भारत का निर्माण किया।
महिलाओं के अनेक अधिकार स्थापित करने के लिए डी. अंबेडकर एक स्त्री उद्धारक के रूप में देखे जाते हैं। न्याय, समानता और स्वतंत्रता के लिए उनकी जवाबदेही सदैव प्रमुखत्ता में रहीं। अपने जीवन को राष्ट्र को समर्पित करते हुए उन्होंने ईमानदारी से उत्कृष्ट नेतृत्व किया और असमानता के विरुद्ध दनिया के अनेक मंचों पर मुक्त होकर विचार रखे। किसी राष्ट्र के उत्कृष्ट नागरिक की रूपरेखा बनाने वाले डॉ अंबेडकर ने दुनिया के अनेक विचारकों, धर्म और समाज का अध्ययन किया। सामाजिक कुरीतियों के प्रति आवाज उठायी और संघर्ष में भी तर्कपूर्ण शिष्ट आचरण से समाज को दिशा दी।
भारत के विधि मंत्री, संविधान निर्माता, समाज सुधारक सहित राज्य सभा और लोक सभा के सदस्य के रूप में उन्होंने भारत को बेमिसाल योगदान दिया है। बाबासाहब भीमराव अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य में यह स्मरण करना आनिवार्य हो जाता है कि वे युगांतकारी, कर्तव्यनिष्ठ और सामाजिक समर्पण के शिखरपुरुष हैं। राष्ट्र की उत्कृष्टता के लिए उनका वैचारिक स्मरण करना ही उनकी जयंती का विनम्र स्मरण और अभिवादन है। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की कल्पना के लिए अर्पित्त उनका जीवन विद्वतामय प्रेरणा का महानतम स्रोत है।
(लेखक – संदीप कुमार वर्मा)

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