भारत यानी ‘मसालों की भूमि’ इन मसालों ने भारत को ‘मसालों की भूमि’ की उपाधि दिलाई और इसकी सुगंध ने विश्व इतिहास की दिशा तक मोड़ दी। हल्दी: -प्राचीन आयुर्वेद में रोगनाशक और त्वचा संरक्षण के लिए प्रसिद्ध।
-धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ अवसरों में अनिवार्य। काली मिर्च: -‘काला सोना’ कहलाने वाला यह मसाला कभी भारत से रोम तक के व्यापार का प्रमुख आधार रहा। -औषधीय रूप से पाचन सुधारक और सर्दी-जुकाम के लिए उपयोगी।
इलायची: -मुंह की दुर्गंध दूर करने से लेकर मिठाइयों और चाय का स्वाद बढ़ाने तक एक बहुपयोगी मसाला। -केरल और कर्नाटक में इसकी खेती हजारों सालों से की जाती रही है। दालचीनी:
-प्राचीन भारत में सुगंध और चिकित्सा के लिए प्रिय रही। -विदेशी यात्रियों ने इसे मसालों में ‘स्वर्ण’ बताया। लौंग: -दांत दर्द और सर्दी में राहत देने वाला मसाला। -भारत के साथ जंजीबार और मलक्का से भी इसका ऐतिहासिक व्यापार रहा।
जीरा: -हजारों वर्षों से भारतीय तड़के की आत्मा। -अपच और गैस संबंधी आयुर्वेदिक नुस्खों में अनिवार्य। सौंफ: -भोजन के बाद पाचन हेतु प्रयोग। -मिठास और शीतलता का प्रतीक। भारतीय मसालों ने कैसे बदली विश्व इतिहास की दिशा
…………………………………………………………………………. समुद्री खोजों का बने मूल कारण -यूरोप में 15वीं सदी तक काली मिर्च, दालचीनी, लौंग और जायफल की भारी मांग थी। -जब सिल्क रोड असुरक्षित हो गई, तो यूरोपीय देशों ने समुद्री रास्ते से भारत पहुंचने की कोशिशें तेज कर दीं।-
वास्को द गामा (1498) भारत पहुंचा — सिर्फ मसालों की तलाश में। नतीजा: नए समुद्री मार्गों की खोज और औपनिवेशिक युग की शुरुआत। उपनिवेशवाद और वैश्विक संघर्षों की वजह -डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी और ब्रिटिश ताकतें भारत और इंडोनेशिया के मसाला व्यापार पर नियंत्रण पाने के लिए आपस में टकराईं।
-भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना भी मसाला व्यापार के बहाने हुई, जिसने बाद में ब्रिटिश शासन की नींव रखी। विश्व व्यापार और सांस्कृतिक मिलन के द्वार खुले -मसालों के व्यापार से अरब, यूरोपीय, अफ्रीकी और एशियाई सभ्यताओं का संपर्क बढ़ा।
-भारतीय व्यंजनों और मसालों का स्वाद विश्व भर में फैला, जिससे कुलीन भोजन से लेकर आम रसोई तक का स्वरूप बदल गया। प्रस्तुतिः नितिन मित्तल