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मसाले भी हमारी धरोहर, कभी थे व्यापार की धुरी

विश्व धरोहर दिवसः इतिहास ही नहीं बदला, भारतीय मसालों ने बदली विश्व व्यापार की भी दिशा जयपुर. विश्व विरासत दिवस के अवसर पर, हम उन सांस्कृतिक परंपराओं और धरोहरों को सम्मानित करते हैं जो समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं और आज भी जीवंत हैं। ऐसी ही समृद्ध धरोहर हैं — भारतीय मसाले। ये […]

जयपुरApr 20, 2025 / 12:58 am

Nitin Kumar

विश्व धरोहर दिवसः इतिहास ही नहीं बदला, भारतीय मसालों ने बदली विश्व व्यापार की भी दिशा

जयपुर. विश्व विरासत दिवस के अवसर पर, हम उन सांस्कृतिक परंपराओं और धरोहरों को सम्मानित करते हैं जो समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं और आज भी जीवंत हैं। ऐसी ही समृद्ध धरोहर हैं — भारतीय मसाले। ये न केवल हमारी पाककला से जुड़ी परंपराओं की आत्मा हैं, बल्कि चिकित्सा, धार्मिक अनुष्ठानों और वैश्विक व्यापार की धुरी भी रहे हैं। भारत की विविध जलवायु और उपजाऊ मिट्टी से उपजे मसालों की विरासत केवल स्वाद तक सीमित नहीं रही, बल्कि आयुर्वेद, सांस्कृतिक अनुष्ठान, और वैश्विक खानपान को भी गहराई से प्रभावित करती रही है।
भारत यानी ‘मसालों की भूमि’

इन मसालों ने भारत को ‘मसालों की भूमि’ की उपाधि दिलाई और इसकी सुगंध ने विश्व इतिहास की दिशा तक मोड़ दी।

हल्दी:

-प्राचीन आयुर्वेद में रोगनाशक और त्वचा संरक्षण के लिए प्रसिद्ध।
-धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ अवसरों में अनिवार्य।

काली मिर्च:

-‘काला सोना’ कहलाने वाला यह मसाला कभी भारत से रोम तक के व्यापार का प्रमुख आधार रहा।

-औषधीय रूप से पाचन सुधारक और सर्दी-जुकाम के लिए उपयोगी।
इलायची:

-मुंह की दुर्गंध दूर करने से लेकर मिठाइयों और चाय का स्वाद बढ़ाने तक एक बहुपयोगी मसाला।

-केरल और कर्नाटक में इसकी खेती हजारों सालों से की जाती रही है।

दालचीनी:
-प्राचीन भारत में सुगंध और चिकित्सा के लिए प्रिय रही।

-विदेशी यात्रियों ने इसे मसालों में ‘स्वर्ण’ बताया।

लौंग:

-दांत दर्द और सर्दी में राहत देने वाला मसाला।

-भारत के साथ जंजीबार और मलक्का से भी इसका ऐतिहासिक व्यापार रहा।
जीरा:

-हजारों वर्षों से भारतीय तड़के की आत्मा।

-अपच और गैस संबंधी आयुर्वेदिक नुस्खों में अनिवार्य।

सौंफ:

-भोजन के बाद पाचन हेतु प्रयोग।

-मिठास और शीतलता का प्रतीक।

भारतीय मसालों ने कैसे बदली विश्व इतिहास की दिशा
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समुद्री खोजों का बने मूल कारण

-यूरोप में 15वीं सदी तक काली मिर्च, दालचीनी, लौंग और जायफल की भारी मांग थी।

-जब सिल्क रोड असुरक्षित हो गई, तो यूरोपीय देशों ने समुद्री रास्ते से भारत पहुंचने की कोशिशें तेज कर दीं।-
वास्को द गामा (1498) भारत पहुंचा — सिर्फ मसालों की तलाश में। नतीजा: नए समुद्री मार्गों की खोज और औपनिवेशिक युग की शुरुआत।

उपनिवेशवाद और वैश्विक संघर्षों की वजह

-डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी और ब्रिटिश ताकतें भारत और इंडोनेशिया के मसाला व्यापार पर नियंत्रण पाने के लिए आपस में टकराईं।
-भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना भी मसाला व्यापार के बहाने हुई, जिसने बाद में ब्रिटिश शासन की नींव रखी।

विश्व व्यापार और सांस्कृतिक मिलन के द्वार खुले

-मसालों के व्यापार से अरब, यूरोपीय, अफ्रीकी और एशियाई सभ्यताओं का संपर्क बढ़ा।
-भारतीय व्यंजनों और मसालों का स्वाद विश्व भर में फैला, जिससे कुलीन भोजन से लेकर आम रसोई तक का स्वरूप बदल गया।

प्रस्तुतिः नितिन मित्तल

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