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एक्टिविज्म भी सीखने का एक तरीका है और बदलाव लाने के लिए बड़ा होना जरूरी नहीं

मणिपुर की इस बालिका ने बहुत कम उम्र में वह कर दिखाया जो बड़े-बड़े नेता भी नहीं कर पाए—जलवायु संकट को लेकर वैश्विक मंचों पर दुनिया का ध्यान खींचा। नेपाल भूकंप से लेकर ओडिशा के चक्रवातों तक, प्रकृति के प्रकोपों ने उनके भीतर संवेदना, जागरूकता और संकल्प को जन्म दिया।

जयपुरJun 19, 2025 / 03:43 pm

Rakhi Hajela

licypriya

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“आपको फर्क डालने के लिए बड़ा होने की ज़रूरत नहीं है।” इस एक पंक्ति में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाने वाली लिसिप्रिया कंगुजम की सोच और साहस झलकता है। मणिपुर की इस बालिका ने बहुत कम उम्र में वह कर दिखाया जो बड़े-बड़े नेता भी नहीं कर पाए—जलवायु संकट को लेकर वैश्विक मंचों पर दुनिया का ध्यान खींचा। नेपाल भूकंप से लेकर ओडिशा के चक्रवातों तक, प्रकृति के प्रकोपों ने उनके भीतर संवेदना, जागरूकता और संकल्प को जन्म दिया। उन्होंने ‘द चाइल्ड मूवमेंट’ की शुरुआत की और आज यह एक वैश्विक मंच बन चुका है।पौधरोपण से लेकर प्लास्टिक के खिलाफ अभियान, स्कूलों में जलवायु शिक्षा की मांग से लेकर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलनों तक—लिसिप्रिया की यात्रा प्रेरणा, नेतृत्व और उम्मीद की मिसाल है। यह सिर्फ एक बच्ची की कहानी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बदलाव की शुरुआत है। पत्रिका संवाददाता राखी हजेला से लिसिप्रिया कंगुजम की खास बातचीत-
प्रश्न- जलवायु परिवर्तन के लिए इतनी कम उम्र में आवाज उठाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली? क्या कोई विशेष घटना थी जिसने आपको इसके लिए कदम उठाने को मजबूर किया?
उत्तर – मैं लिसिप्रिया कंगुजम मेरी जलवायु कार्यकर्ता बनने की यात्रा किसी एक घटना से प्रेरित नहीं थी, बल्कि इसने मेरे शुरुआती वर्षों में देखे गए मानवीय पीड़ा और पर्यावरणीय आपदाओं के अनुभवों से आकार लिया। वर्ष 2015 में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप के बाद मैंने अपने पिता के साथ राहत कार्यों में हिस्सा लिया। उस समय मैं चार साल की थी, टीवी पर जब मैंने रोते-बिलखते बच्चों को देखा तो वहीं से जलवायु परिर्वतन और प्राकृतिक आपदा शब्दों की जानकारी हुई।

वर्ष 2018 और 2019 में जब मैं ओडिशा में रह रही थीं, तब चक्रवात फानी और तितली ने मेरे घर और आसपास के क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया, जिससे मेरे भीतर इस संकट को लेकर गहरी समझ और भावनाएं विकसित हुईं, लेकिन सबसे निर्णायक मोड़ जुलाई 2018 में मंगोलिया के उलानबटोर में आयोजित च्एशिया मंत्री स्तरीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण सम्मेलन में आया। उस समय मात्र छह वर्ष की उम्र में मैंने वैश्विक नेताओं को संबोधित किया। यहीं से मुझे प्रेरणा और दिशा मिली और इसके बाद The Child Movement की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था जलवायु कानूनों की मांग, जलवायु शिक्षा और बड़े पैमाने पर पौधरोपण को बढ़ावा देना।

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प्रश्न- आपने जब महज छह साल की उम्र में एक्टिविज्म की शुरुआत की, तब आपके परिवार और दोस्तों की क्या प्रतिक्रिया थी? उन्होंने आपको किस तरह समर्थन दिया?

उत्तर- जब मैंने छह साल की उम्र में अपनी जलवायु जागरूकता की यात्रा शुरू की, तब मेरे परिवार ने मेरा पूरा साथ दिया। मेरे पिता कनारजीत कंगुजम स्वयं एक मानवीय राहत कार्यकर्ता थे, जिन्होंने मुझे बहुत कम उम्र से ही आपदाओं की वास्तविकता से परिचित कराया। वह मुझे अकसर अपने साथ लेकर जाते थे। उन्होंने मुझे नेपाल भूकंप और ओडिशा के चक्रवातों के दौरान राहत कार्यों में साथ ले जाकर संवेदना और जिम्मेदारी की भावना सिखाई।

हालांकि परिवार के कुछ सदस्य शुरू में आशंकित थे कि इतनी छोटी उम्र में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बोलना और पढ़ाई से समय निकालना ठीक होगा या नहीं, लेकिन मेरे अभिभावकों विशेषकर मेरे पिता ने मुझे हर कदम पर सहारा दिया। उन्होंने कॉन्फ्रेंस में मेरी यात्रा, स्पीच की तैयारी और च्द चाइल्ड मूवमेंटज् की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। मेरे कुछ दोस्त भी मेरी लगन से प्रभावित हुए। स्कूल में कुछ शिक्षकों ने भी मुझे बेहद सपोर्ट किया। हालांकि वह मेरी पढ़ाई को लेकर काफी चिंतित रहते थे लेकिन परिवार की मजबूत भावनात्मक और व्यावहारिक सहायता ने मुझे अपनी आवाज बुलंद रखने की ताकत दी।

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प्रश्न- आपने The Child Movement की स्थापना की। इसका उद्देश्य क्या है और यह कैसे दुनियाभर के बच्चों को जलवायु कार्रवाई के लिए प्रेरित कर रहा है?
उत्तर जब मैं छह साल की थी तब मैंने वर्ष 2018 में द चाइल्ड मूवमेंट की स्थापना की। जो आज एक वैश्विक स्वैच्छिक मंच है, जहां बच्चे जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण न्याय और आपदा लचीलापन जैसे मुद्दों पर अपनी आवाज उठा सकते हैं। इसका उद्देश्य जागरूकता फैलाना, नीतियों पर असर डालना और बच्चों के नेतृत्व में बदलाव लाना है। मुझे लगता है कि इस आंदोलन से मेरी उम्र के बच्चे काफी जागरुक हुए हैं। मैंने मंडे फॉर मदर नेचर जैसे अभियान के तहत पौधरोपण कार्यक्रम की शुरुआत की जिसके तहत स्कूलों में हर सोमवार को पौधरोपण किया जाता है। इसमें बच्चे बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। आज यह दुनियाभर के बच्चों के लिए प्रेरणा बन चुका है।

मैंने सुकिफू (सर्वाइवल किट फॉर द फ्यूचर) नामक एक रचनात्मक उपकरण बनाया है जो वायु शुद्धिकरण बैकपैक है, जो प्लास्टिक कचरे से तैयार किया गया। वहीं प्लास्टिक मनी शॉप’ एक ऐसी पहल है जिसके तहत हम एक किलोग्राम एकल इस्तेमाल प्लास्टिक कचरे के बदले में मुफ्त चावल, पौधे और स्कूल स्टेशनरी चीजों की पेशकश करते हैं। मेरा प्रयास है कि आमजन को प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी मिल सके। मेरा प्रयास रहा है कि जलवायु शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। राजस्थान, गुजरात और सिक्किम में हमें इसमें सफलता भी मिली है।

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प्रश्न- संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में दुनिया के नेताओं को संबोधित करना आपके लिए कैसा अनुभव था? क्या आपको लगता है कि आपकी बातों को गंभीरता से लिया गया?

उत्तर- उस समय मैं केवल 8 साल की थी। उस दौरान इस सम्मेलन में मंच पर कदम रखते हुए मैंने एक संदेश देने की कोशिश की थी कि यह समय है कार्यवाही का है क्योंकि यह एक वास्तविक जलवायु आपातकाल है। मुझे लगता है कि यह मेरे लिए भी एक शिक्षाप्रद अनुभव था। मैं वहां ग्रेटा थनबर्ग से मिलकर प्रेरित हुईं, लेकिन यह भी महसूस किया कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन नतीजों के लिहाज से असफल रहा क्योंकि वहां आश्वासन तो दिए गए, पर ठोस कार्य नहीं हुआ।

हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने मेरी उपस्थिति को भविष्य की पीढिय़ों की याद दिलाने वाला बताया और मीडिया ने भी मेरी बातों को प्रमुखता दी, लेकिन अधिकतर नेता एक.दूसरे को दोष देने तक ही सीमित रहे।

प्रश्न- भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सबसे बड़ी चुनौती क्या है? और आप इससे कैसे निपट रही हैं?
उत्तर- भारत में हमें इस क्षेत्र में कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उसमें शामिल हैं-

जलवायु शिक्षा की कमी- अधिकतर स्कूलों में जलवायु परिवर्तन पर समर्पित शिक्षा नहीं दी जाती। इसके समाधान के रूप में इसे सभी स्कूलों में अनिवार्य विषय बनाए जाने की मांग की है। कुछ राज्यों में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है।
नीतिगत उदासीनता- मैंने जलवायु कानून की मांग को लेकर संसद के बाहर प्रदर्शन किए, लेकिन अभी तक कोई ठोस कानून नहीं बना है। मैं छात्रों के लिए सालाना 10 पेड़ लगाने की अनिवार्यता और जलवायु शिक्षा को कानूनी रूप देने की मांग कर रही हूं।
मीडिया की तुलना और आलोचना- मुझे अक्सर भारत की ग्रेटा थनबर्ग कहा जाता है, जिससे मेरी अलग पहचान दबती है। मेरा मानना है कि मेरी अपनी खुद की कहानी है और उम्र बदलाव की सीमा नहीं है।
कोविड.19 का असर- महामारी ने मेरी गतिविधियों को कुछ थीमा जरूर किया लेकिन सोशल मीडिया कैम्पेन के जरिए हमें 2020 में ही 2.5 लाख से अधिक पौधे लगवाने में कामयाबी हासिल की।

जो चुनौतियां हमारे सामने हैं उनके समाधान के लिए जरूरी है कि शिक्षा में सुधार के साथ कानूनी बदलाव किए जाएं, बच्चों की भागीदारी बढ़े और डिजिटल माध्यम से जन जागरूकता फैलाई जाए।

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प्रश्न- इतनी कम उम्र में स्कूल और एक्टिविज़्म में संतुलन बनाना कितना चुनौतीपूर्ण होता है ? आप समय का प्रबंधन कैसे करती हैं?

उत्तर- स्कूल और एक्टिविज़्म के बीच संतुलन बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसे लगन, अनुशासन और परिवार के सहयोग से संभाला जा सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों, मीडिया इंटरव्यू और अभियानों के लिए स्कूल छोडऩा पड़ता है, जिससे कभी-कभी पढ़ाई पर असर पड़ता है। कई बार स्कूल प्रशासन भी यह कहता है कि बच्चों को सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। फिर भी मैं यात्रा करते समय पढ़ाई करती हूं, खाली समय में असाइनमेंट पूरा करती हूं। सुबह- शाम स्कूल का काम निपटाती हूं। मेरे पेरेंट्स खासतौर पर पिता शेड्यूल मैनेज करने में मदद करते हैं। मेरा मानना है कि एक्टिविज़्म भी सीखने का एक तरीका है और बदलाव लाने के लिए बड़ा होना जरूरी नहीं।

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प्रश्न- आप भारत और दुनिया भर के उन युवाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं जो जलवायु परिवर्तन पर कुछ करना चाहते हैं? लेकिन यह नहीं जानते कि शुरुआत कैसे करें?
उत्तर- आपको फर्क डालने के लिए बड़ा होने की ज़रूरत नहीं है। जो युवा शुरुआत करना चाहते हैं, वे छोटे-छोटे कदमों से शुरुआत करें।
पौधे लगाएं। मेरा मानना है कि एक्टिविज़्म भी सीखने का एक तरीका है और बदलाव लाने के लिए बड़ा होना जरूरी नहीं।
प्लास्टिक का कम उपयोग करें।
पानी बचाएं।
अपने स्कूल या परिवार में जागरूकता फैलाएं।

मेरा कहना है कि जो जहां हैं, वहीं से शुरू करें। सोशल मीडिया, स्कूल क्लब्स या शांतिपूर्ण प्रदर्शन जैसे माध्यमों से भी आप अपनी आवाज उठा सकते हैं। सबसे जरूरी बात उम्मीद न छोड़ें।

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प्रश्न- क्या मणिपुर में बड़े होने ने आपके पर्यावरणीय दृष्टिकोण को प्रभावित किया?
उत्तर- हां, मणिपुर की हरियाली, नदियां और पहाड़ों से घिरा वातावरण बचपन से ही मुझे प्रकृति से जोड़ता रहा। वहां की संस्कृति सादगी और पृथ्वी के प्रति सम्मान पर आधारित है।

बाढ़, भूस्खलन और वनों की कटाई जैसे अनुभवों से मुझमें यह समझ विकसित हुई कि जलवायु परिवर्तन एक सैद्धांतिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक जमीनी सच्चाई है। मणिपुरी परंपराओं ने यह सिखाया कि प्रकृति की रक्षा जीवन का हिस्सा है।

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प्रश्न- क्या आपको लगता है कि वैश्विक मीडिया भारत के जलवायु मुद्दों को सही तरीके से प्रस्तुत करता है?

उत्तर- बिल्कुल नहीं। वैश्विक जलवायु आंदोलन में मीडिया की दोहरी मानसिकता चरम पर है। वे ग्लोबल साउथ की असली आवाज़ को नहीं दिखाते।
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प्रश्न- आप अगले 5-10 वर्षों में जलवायु क्षेत्र में क्या हासिल करना चाहती हैं? क्या कोई बड़ा लक्ष्य है जिस पर आप काम कर रही हैं?
उत्तर- अगले 5-10 वर्षों के लक्ष्य बेहद प्रभावशाली और दूरदर्शी हैं।
  • भारत में एक सशक्त जलवायु कानून बनवाना। जो ग्रीनहाउस गैसों पर नियंत्रण रखे और सरकारों को जवाबदेह बनाए।
  • जलवायु शिक्षा को अनिवार्य बनाना
  • हर स्कूल में जलवायु अध्ययन को शामिल करवाना।
  • बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान
  • मंडे फॉर मदर नेचर के तहत हर छात्र साल में 10 पेड़ लगाए।
  • आने वाले वर्षों में अरबों पेड़ लगाकर भारत के परिदृश्य को बदलना।
  • सुकिफू और प्लास्टिक मनी शॉप जैसे इनोवेशन को बड़े पैमाने पर बढ़ाना।
  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन और यूनाइटेड नेशन जैसे मंचों पर जीवाश्म ईंधन बंदी और युवाओं की भागीदारी की मांग।
  • अंतिम लक्ष्य- एक ऐसा भारत बनाना जहां हर बच्चा जलवायु योद्धा हो, हर स्कूल सतत और पर्यावरण.अनकूल हो और हर नीति में पर्यावरण की जिम्मेदारी झलके।

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