ग्राहकों की केवाइसी के लिए बैंक बदलें अपने रुख
डॉ. पी.एस वोहरा, आर्थिक मामलों के जानकार


हाल ही यह रिपोर्ट आई है कि देश में 34 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जो अपने ही बैंक खातों को ऑनलाइन एक्सेस नहीं कर पा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह वर्तमान में बैंकिंग व्यवस्था की कुछ जटिल समस्याएं हैं जिसमें मुख्य तौर पर केवाइसी (अपने कस्टमर को जानें) है। इसके कारण बैंकों द्वारा ग्राहकों के खाते ब्लॉक कर दिए जाते हैं और वे बैंकिंग सुविधा का उपयोग करने से वंचित हो जाते हैं। ऑनलाइन बैंकिंग के संबंध में भी कुछ जटिल बैंकिंग नियम तथा ग्राहकों के प्रति बैंकों की कमजोर कार्यकुशलता और उदासीन व्यवहार एक मुख्य कारण है।
इस संबंध में ग्राहकों का कहना है कि बैंकों के द्वारा केवाइसी से संबंधित दस्तावेज बार-बार क्यों मांगे जाते हैं? सरकार ने पिछले वर्ष संसद में बजट प्रस्तुत करते समय देश के सभी वित्तीय संस्थानों के लिए एक ही तरह की केवाइसी की बात को रखा था लेकिन अभी तक उस पर अमल देखने को नहीं मिला है। बैंकिंग नियमों के मुताबिक वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए समय-समय पर ग्राहक की जानकारी प्रमाणित होना अत्यंत आवश्यक है। इससे किसी भी तरह के वित्तीय गबन या घोटाले से बचा जा सकता है। इस संबंध में विभिन्न ग्राहकों के मत हैं कि बैंक केवाइसी से संबंधित दस्तावेजों की मांग एसएमएस या ई-मेल द्वारा करते हैं। साइबर क्राइम के इस दौर में ग्राहक ऐसे मैसेज को गंभीरता से नहीं लेते हैं। इस कारण वे केवाइसी प्रक्रिया समय से नहीं कर पाते हैं। उन्हें इस तरह का एहसास भी रहता है कि वे पहले से ही दस्तावेजों को बैंक में जमा करवा चुके हैं। जबकि बैंकों की तरफ से यह बात सामने आती है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में लोगों के वित्तीय अपराधों की मानसिकता को पूर्व अनुमानित करना बहुत मुश्किल है, इसलिए समय-समय पर ग्राहकों के दस्तावेजों की प्रमाणिकता जांच जरूरी है।
इस संबंध में बैंकों का पक्ष है कि अगर किसी ग्राहक के बैंक खाते में अधिक लेन-देन देखने को मिलता है तो उस पर बैंक को पारदर्शिता से ध्यान रखना होता है। इसी सोच के चलते आजकल बैंकों द्वारा समय-समय पर ग्राहकों के खाते को रिस्क के हिसाब से विभिन्न श्रेणियां में बांट दिया जाता है जिसके अंतर्गत हाई रिस्क एक ऐसी श्रेणी है जिसमें बैंक द्वारा ग्राहक से केवाइसी की तुरंत मांग की जाती है।
भारत में केवाइसी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा वर्ष 2002 में शुरू की गई थी जब तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा मनी लांड्रिंग का नया कानून लाया गया था जिसका मुख्य उद्देश्य वित्तीय गबन तथा आंतकवादियों को वित्तीय सहायता मिलने से रोकना था। इस संबंध में यह बताना भी आवश्यक है कि केवाइसी के संबंध में वर्ष 2012 में आरबीआइ द्वारा एक मास्टर सर्कुलर जारी किया गया था जिसके अंतर्गत यह व्यवस्था थी कि केवाइसी से संबंधित दस्तावेज पेश न करने पर बैंकों द्वारा उचित सूचना देने पर ही ग्राहकों के खातों को बंद किया जा सकता है परंतु आज के दौर में खातों को बंद करने की बजाय बैंकों द्वारा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उन्हें निष्क्रिय कर दिया जाता है और इससे ग्राहक बहुत खिन्न महसूस करते हैं।
वे बैंक की शाखा में जाकर दस्तावेज जमा कराने की बजाय दूसरे बैंक खाते के माध्यम से अपना लेन-देन शुरू कर देते हैं। यह बात भी सामने आती है कि आज भी बुजुर्गों और गृहिणियों में ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग करने के संबंध में आवश्यक जानकारी का अभाव है। हालांकि, एक बड़े भाग ने कोरोना के बाद से तकरीबन सभी खरीदारियां यूपीआइ के माध्यम से करनी शुरू कर दी लेकिन आज भी ऑनलाइन बैंकिंग में वे सब अपने हाथ तंग पाते हैं। दूसरी तरफ यह भी देखने को मिल रहा है कि ज्यादातर ग्राहक मोबाइल के माध्यम से ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग करते हैं और मोबाइल के सॉफ्टवेयर अपडेटेड ना होने के कारण कई दफा बैंकों की ऑनलाइन सुविधा का उपयोग नहीं कर पाते। ज्यादातर ग्राहक नया मोबाइल खरीदने को जरूरी भी नहीं मानते हैं। इस कारण ऑनलाइन एक्सेस से दूरी बन जाती है। बैंकों के संबंध में तो यह एक आम धारणा है कि अगर गलत यूजर आइडी या पासवर्ड लगने से ऑनलाइन बैंकिंग की सुविधा रुक गई है तो उसके लिए उन्हें बैंक की शाखा में जाकर बैंकिंग सुविधा को पुन: शुरू करने के लिए आवेदन देना पड़ता है जो कि उन्हें समय की बर्बादी प्रतीत होता है।
यह काफी पीड़ादायक है कि समाज का एक भाग अपने बैंक खातों का उपयोग नहीं कर पा रहा है, जिसके कारण वे सरकार से मिलने वाली विभिन्न वित्तीय सुविधाओं से वंचित हो जाते हैं। इनमें विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक छात्रवृत्तियां, महिलाओं के लिए वित्तीय सहायताएं, वृद्धजन पेंशन, विधवाओं को आर्थिक सहायता, मनरेगा के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों को सरकारी आर्थिक सहायता आदि शामिल हैं। निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जा सकता है कि बैंकिंग क्षेत्र को इन सुविधाओं पर अपने जटिल नियमों को बदलना चाहिए ताकि अधिक से अधिक जनता इन सुविधाओं का उपयोग करके अर्थव्यवस्था के विकास में अपना योगदान दे सके।
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