मोटे अनाज को सरकार के “मोटे समर्थन” की दरकार
साक्षी यादव, पत्रिका फाउंडेशन में सीनियर एसोसिएट


राजस्थान – जब यह नाम आता है, तो हमारे जेहन में भव्य गढ़, स्वादिष्ट व्यंजन, गर्मजोशी भरी मेहमाननवाजी और भीषण गर्मी साया हो जाती है। यह धरती वीरता और संघर्ष की गवाह रही है, जहां राजाओं ने अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए युद्ध लड़े, वहीं उनका आंतरिक संघर्ष यह था कि उनकी प्रजा भूखी न रहे। राज्य की शुष्क जलवायु विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त नहीं थी। लेकिन राजस्थान की सुनहरी रेत में एक फसल ऐसी होती है जो सदियों से यहां के जनजीवन के गुजर-बसर का सहारा रही, वह है—मोटा अनाज (मिलेट्स)। मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा और रागी मुख्य रूप से शामिल है। ये फसलें विषम जलवायु में कम पानी से भी आसानी पनप जाती है।
मोटा अनाज मानव सभ्यता के इतिहास में पहली बार उगाई गई फसलों में से एक था। भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न पुरातात्विक स्थलों से इनकी खेती और उपयोग के प्रमाण मिले हैं। पूर्व-हड़प्पा काल (2300-2000 ईसा पूर्व) में बनावली और कुनाल में ज्वार (सोरघम) की खेती के प्रमाण मिले हैं। निओलिथिक काल (2000-1200 ईसा पूर्व) में हल्लूर और कन्वर में बाजरा (पर्ल मिलेट) और परिपक्व हड़प्पा काल (2500-2000 ईसा पूर्व) में रोजड़ी और ओरियो टिम्बो में रागी (फिंगर मिलेट) की खेती के प्रमाण मौजूद हैं। भारत के प्राचीन ग्रंथों जैसे अथर्ववेद, यजुर्वेद, चरक संहिता, अर्थशास्त्र और अभिज्ञान शाकुंतलम में भी मोटे अनाज का उल्लेख मिलता है। न केवल भारतीय ग्रंथों में, बल्कि विदेशी यात्रियों के आलेखों में भी इनका उल्लेख मिलता है। मोरक्को के यात्री इब्न बतूता, जो मोहम्मद बिन तुगलक (1325–1351 ई.) के शासनकाल में भारत आया था और डच ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिस्को पेलसार्ट (1621–1627 ई.) ने भी इसे गरीबों का मुख्य भोज्य अनाज लिखा है। हालांकि, बाद के काल में मोटे अनाज के उत्पादन में गिरावट आई क्योंकि उस समय कपास, नील और विभिन्न मसालों जैसी नकदी फसलों चलन शुरू हो गया। भारत में मिलेट्स की फसलों का इतिहास बहुआयामी और संघर्षमय रहा है। हमने इन्हें अपने सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और परंपराओं में गहराई से समाहित किया है। इसलिए, अगली बार जब आप गरमा-गरम मिलेट दलिया या सौंधी खुशबू से भरे मिलेट कुकीज़ का स्वाद लें, तो एक पल के लिए उस संघर्ष और निरंतरता के सफर पर विचार करें, जिसने इन छोटे-छोटे अनाजों को हड़प्पा काल से आज आपकी थाली तक पहुंचाया है।
राजस्थान में मोटा अनाज लंबे समय से पारंपरिक आहार का हिस्सा रहा है। यहां की विविध पाक परंपराओं में इन अनाजों का उपयोग बखूबी देखा जा सकता है। गर्मी की लू से बचाव के लिए छाछ और बाजरे के आटे से बनी राबड़ी एक संजीवनी मानी जाती है, जबकि घी से तर बाजरे की खिचड़ी सर्दियों में आत्मा को तृप्त करने वाला व्यंजन है। राजस्थान भारत का सबसे बड़ा मोटा अनाज उत्पादक राज्य है, जो देश के कुल उत्पादन में लगभग 26% का योगदान देता है। यहां मुख्य रूप से बाजरा और ज्वार की खेती होती है, जो मिलकर देश के कुल उत्पादन का 46% प्रदान करते हैं। उल्लेखनीय है कि राजस्थान अकेले देश में कुल उत्पादित बाजरे का लगभग आधा भाग उपलब्ध कराता है। जोधपुर, जयपुर, बाड़मेर, बीकानेर, अलवर, कोटा, टोंक, पाली और जैसलमेर जैसे जिले बाजरा उत्पादन के प्रमुख केंद्र हैं। राज्य में लगभग 28 लाख टन बाजरा उत्पादन होता है, जिसकी खेती लगभग 46 लाख हेक्टेयर भूमि पर की जाती है और औसत उत्पादकता 400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।
लेकिन कटाई के बाद बाजरा किसानों के लिए विपणन व्यवस्था आज भी संतोषजनक नहीं है। किसान वे सरकारी तंत्र के माध्यम से खरीद को संस्थागत रूप देने के लिए जूंझ रहे हैं, लेकिन सरकारें कोई सकारत्मक कदम नहीं उठाया गया है। राजस्थान में समर्थन मूल्य पर मिलेट्स की सरकारी खरीद लंबे समय से चला आ रहा अहम राजनीतिक मुद्दा है। मिलेट्स के महत्व को पहचानते हुए भारत सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने प्रस्ताव पारित कर वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ घोषित किया। इसके बाद, राजस्थान सरकार ने 2022-23 के लिए ‘मिलेट प्रमोशन मिशन’ शुरू किया। किसानों, उद्यमियों और स्वैच्छिक संगठनों की ओर से 100 प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए 40 करोड़ रुपये का प्रावधान किया। हालांकि, ये उपाय लगभग 25 लाख मिलेट किसानों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए ऊंट के मुंह में जीरा समान हैं।
राज्य सरकार को मिलेट उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने की अपनी नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। वर्तमान में, हम इनके सतत जीवनचक्र को संस्थागत समर्थन प्रदान करने की बजाय इन पोषणयुक्त और जलवायु सहिष्णु फसलों को केवल ‘प्रचारित’ करने भर तक सीमित हैं। समय आ गया है कि फार्मर प्रोड्यसर ऑर्गोनाइजेशन (FPO) नेटवर्क का उपयोग कर मिशन मोड में मिलेट वैल्यू चेन को सशक्त किया जाए। इसमें कटाई के बाद संग्रहण, प्रसंस्करण, ब्रांडिंग और विपणन शामिल है। सरकार को कार्यशील पूंजी, बुनियादी ढांचे और डिजिटल एकीकरण के रूप में संस्थागत सहायता प्रदान करनी चाहिए। एफपीओ के लिए फसल की गुणवत्ता सुधार, कृषि विविधिकरण, निर्यात और मिलेट-आधारित उत्पादों के निर्माण पर क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की सुविधा दी जानी चाहिए, ताकि इस बढ़ते क्षेत्र में उनकी मांग को मजबूत किया जा सके। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), मिड-डे मील योजनाओं और कॉर्पोरेट आपूर्ति श्रृंखलाओं में लक्षित मिलेट खरीद को शामिल करना चाहिए। राजस्थान देश-विदेश से सैलनियों के लिए प्रिय पर्यटन स्थल है जो अपनी समृद्ध पाक परंपराओं के लिए जाना जाता है। होटल और रेस्त्रां श्रृंखलाओं को पारंपरिक और फ्यूजन मिलेट व्यंजनों को अपने मेनू में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सरकार पाक संस्थानों और फूड इंफ्लुएंसर्स के साथ मिलकर अभिनव मिलेट व्यंजनों को बढ़ावा देने में सहयोग कर सकती है, जिससे शहरी उपभोक्ताओं के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़े।
मिलेट्स की उच्च पोषणीयता और उनके स्वास्थ्य लाभों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, हमें इन्हें ‘सुपरफूड’ के रूप में प्रचारित करना चाहिए। इन पोषक तत्वों से भरपूर अनाजों के स्वास्थ्य लाभ पिछली पीढ़ियों की दीर्घायु और कम बीमारियों की दर में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। बाजरा आयरन और बीटा-कैरोटीन से भरपूर होता है, जबकि ज्वार प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत है। इस दिशा में, सरकार को मूल्य संवर्धन तकनीक के विकास में निवेश करना चाहिए, इन तकनीकों के प्रसार के लिए उद्यमियों को प्रशिक्षित करना चाहिए, मीडिया अभियानों के माध्यम से मिलेट्स के स्वास्थ्य लाभों को उजागर करना चाहिए, और रेडी-टू-कुक (RTC) और रेडी-टू-ईट (RTE) मिलेट-आधारित खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिए। मिलेट उत्सवों, खाद्य मेलों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से बाजार कड़ी को मजबूत किया जा सकता है, जिससे उपभोक्ताओं में जागरूकता और स्वीकृति को बढ़ावा मिलेगा। यह न केवल मिलेट किसानों के लिए एक स्थिर मांग उत्पन्न करेगा, बल्कि राजस्थान को मिलेट-आधारित खाद्य उद्योग में अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा।
मिलेट्स को फिर से अपनाकर, राजस्थान को एक स्थायी एवं आत्मनिर्भर भविष्य सुरक्षित करने का अवसर मिला है। आज, जब दुनिया इन जलवायु-स्मार्ट फसलों के मूल्य को फिर से खोज रही है, राजस्थान को इन्हें अपनी मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था और खाद्य संस्कृति में एकीकृत करने की अगुवाई करनी चाहिए। जिस सुनहरी रेत ने सदियों तक इन अनाजों को पोषित किया, वह अब एक स्वस्थ और आत्मनिर्भर कल की संभावना दिखा रही है। अब समय आ गया है कि हम अपने मिलेट्स की विरासत को सिर्फ याद करने तक सीमित न रहें, बल्कि इसे पुनर्स्थापित करने के लिए ठोस कदम उठाएं। हर बाजरे की रोटी का निवाला या राबड़ी की चुस्की हमें राजस्थान की उस अटूट शक्ति की याद दिलाए, जो हमेशा अपनी जड़ों में मजबूती से खड़ी रही है।
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