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सम्पादकीय : लापरवाही से वन्यजीवों का शिकार बन रहे इंसान

जंगली जानवरों का जंगल से बाहर निकल आबादी क्षेत्र के आसपास आने की बड़ी वजह भी जंगल व आसपास के इलाकों में इंसानी गतिविधियां बढऩा ही है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।

जयपुरJun 09, 2025 / 08:18 pm

harish Parashar

देश में बाघों की बढ़ती आबादी भले ही वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से सुखद संकेत देने वाली है लेकिन बस्तियों के करीब आ रहे बाघों व दूसरे हिंसक जानवरों से इंसानों के लिए बड़ा खतरा सामने आने लगा है। राजस्थान के रणथम्भौर बाघ अभयारण्य के बाघ तो पिछले दो माह में ही तीन जनों को अपना शिकार बना चुके हैं। सोमवार की सुबह ही शौच के लिए गए रणथम्भौर फोर्ट में जैन मंदिर पुजारी को बाघ ने शिकार बना डाला। इससे पहले इसी परिधि में जोगी महल के पास एक रेंजर व त्रिनेत्र गणेश मंदिर के रास्ते पर एक बालक बाघ का शिकार बन गया था।
जंगली जानवरों का जंगल से बाहर निकल आबादी क्षेत्र के आसपास आने की बड़ी वजह भी जंगल व आसपास के इलाकों में इंसानी गतिविधियां बढऩा ही है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन एक के बाद एक हादसे होने के बाद भी जिम्मेदार अनदेखी करते दिखें तो इसे घोर लापरवाही ही कहा जाएगा। हैरत की बात यह है कि पिछले दिनों में ही बाघ-बाघिनी और शावकों के टाइगर रिजर्व से निकलकर मुख्य सडक़ पर आने की घटनाओं को भी गंभीरता से नहीं लिया गया। रविवार को ही बाघ के मूवमेंट को देखते हुए वन विभाग ने श्रद्धालुओं के त्रिनेत्र गणेश जाने वाले मार्ग को बंद किया था। भारतीय वन्य जीव संस्थान व राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि अभयारण्यों में बाघ के लिए शिकार की प्रजातियां घटने से भी बाघ और इंसानों के बीच संघर्ष का खतरा बढ़़ गया हे। एक बड़ी वजह संपूर्ण अभयारण्य क्षेत्रों में बाघ व दूसरे वन्यजीवों के लिए छाया-पानी की व्यवस्था एक जैसी न होना भी रहती है। ऐसे में जहां छाया-पानी पर्याप्त होता है वहीं बाघ व दूसरे जंगली जानवरों की आवाजाही बढ़ जाती है। शिकार नहीं मिलता तो ये आबादी क्षेत्रों की तरफ भी रुख कर लेते हैं। देश के कई हिस्सों में प्रमुख आराधना स्थलों पर ऐसे जंगलों के बीच ही होकर जाना होता है। ऐसे में संबंधित मार्ग को हिंसक जानवरों से सुरक्षित रखने का काम प्राथमिकता से होना चाहिए। केवल लोगों की मार्ग पर आवाजाही रोकना ही समाधान नहीं हो सकता। रणथम्भौर के मामले में भी यह बात सामने आई है कि कई जगह अभयारण्य की क्षतिग्रस्त चारदीवारी की मरम्मत भी नहीं कराई गई।
अभयारण्यों को सिर्फ कमाई का माध्यम ही बना लेने का सबसे बड़ा खतरा यह भी है कि बाघों को जानबूझ कर ऐसे मार्ग पर लाने का बंदोबस्त किया जाने लगा है जहां से पर्यटक उनका आसानी से दीदार कर सकें। जंगलों में अवैध खनन भी वन्यजीवों के मूवमेंट को प्रभावित करता है। सबसे बड़ी जरूरत इंसानों को हिंसक जानवरों के हमलों से बचाने के उपाय करने की है।

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