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सम्पादकीय : ई-वोटिंग अपनाने से बढ़ेगा चुनावों में मतदान प्रतिशत

लम्बे समय से यह सवाल उठता रहा है कि जब डिजिटल दौर में सारे काम ऑनलाइन हो रहे हैं तो फिर वोटिंग के लिए यह प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई जा सकती?

जयपुरJul 02, 2025 / 01:27 pm

harish Parashar

मतदान के प्रति बेरुखी हमारे देश में कोई आज की समस्या नही है। यह बात सच है कि पिछले वर्षों में देश में होने वाले विभिन्न स्तर के चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ा ही है फिर भी हम हर मतदाता को मतदान केन्द्रों तक लाने में सफल नहीं हो पाए हैं। लम्बी कतारों में वोट देने का झंझट, मौसम की मार व अशक्तता जैसे कई कारण मतदान से विमुख करने के होते हैं। लम्बे समय से यह सवाल उठता रहा है कि जब डिजिटल दौर में सारे काम ऑनलाइन हो रहे हैं तो फिर वोटिंग के लिए यह प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई जा सकती? बिहार के नगर निकाय उपचुनावों में मोबाइल एप से सफलतापूर्वक हुई ई-वोटिंग ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। देश में पहली बार चुनावों में मोबाइल एप के जरिए हुई वोटिंग में बूथ पर हुए मतदान से ज्यादा मत पड़े।
ई-वोटिंग वैसे तकनीक के दौर में नया नहीं रह गया है। विभिन्न कंपनियां अपने उत्पादों को लेकर जनता की राय जानने के लिए ऐसा करती आई हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में हमने नेताओं की डिजिटल रैलियों तक को देखा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि ई-वोटिंग की दिशा में हम आखिर आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहे? बिहार के प्रयोग को इसकी शुरुआत माना जा सकता है। पिछले आम चुनावों में बुजुर्गों व शारीरिक रूप से अशक्त लोगों को उनके घर जाकर मतदान कराने की सुविधा दी गई थी। हमारे यहां पोस्टल वोटिंग का प्रावधान भी है। ई-वोटिंग को इन सुविधाओं का विस्तारित और आधुनिक रूप ही कहा जा सकता है। आज जब इंटरनेट व बिजली की सुविधा दूर-दराज तक पहुंच गई है। ई-वोटिंग को पूरी तरह नहीं तो चरणबद्ध रूप से लागू किया जा सकता है। इससे मतदाताओं के समय व श्रम की बचत तो होगी ही, लोकतंत्र के महायज्ञ कहे जाने वाले चुनावों में ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी संभव हो सकेगी। वैसे भी भारत जैसे विशाल लोकतंत्र के लिए जरूरी भी है कि प्रत्येक मतदाता को मतदान करने का मौका मिले। यह तर्क जरूर दिया जाता रहा है कि भारत में अभी मतदाता तकनीकी रूप से इतने सक्षम नहीं है कि ई-वोटिंग की प्रक्रिया समझ सके। मोबाइल एप पर पंजीकरण से लेकर पहचान व लॉग -इन तक की प्रक्रिया में भी संदेह इस बात का भी व्यक्त किया जाता है कि दुरुपयोग व फर्जीवाड़ा यहां भी संभव है। लेकिन हर समस्या का समाधान भी तलाशा जा सकता है। ईवीएम के जरिए मतदान शुरू हुआ तब भी कई सवाल उठे थे। ये सवाल अब भी उठ रहे हैं लेकिन ईवीएम के विश्वसनीय न होने को लेकर ठोस प्रमाण आज तक समाने नहीं आए हैं।
मोट तौर पर देश चुनावों को लेकर साल-दर-साल बढऩे वाले खर्च को बचाने व चरणों में होने वाले मतदान की प्रक्रिया को रोकने के लिए ई-वोटिंग बेहतर उपाय हो सकता है। ऑनलाइन वोटिंग असंभव कतई नहीं है। जरूरत सही तकनीक का इस्तेमाल कर सुनियोजित तरीके से लागू करने की है।

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