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सम्पादकीय : अंधविश्वास का खात्मा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही

देवस्थान पर युवक का कटा सिर व धड़ थोड़ी दूरी पर पड़ा मिलने से पुलिस ने इसे नरबलि का मामला मानते हुए हत्या का प्रकरण दर्ज किया है।

जयपुरJul 07, 2025 / 07:56 pm

harish Parashar

आज विज्ञान के दौर में इंसान ने बड़ी से बड़ी समस्याओं के समाधान की राह निकाली है। इसके बावजूद अंधविश्वास की जड़ें समाज से पूरी तरह से उखडऩा बाकी हैं। मध्यप्रदेश के एक गांव में देवस्थान के चबूतरे पर नरबलि देने का मामला बताता है कि तमाम प्रयासों के बावजूद कुरीतियां, पाखण्ड एवं अंधविश्वास से जुड़ीं ऐसी घटनाएं समाज की तरक्की में सबसे बड़ी बाधक बनी हुई हैं। देवस्थान पर युवक का कटा सिर व धड़ थोड़ी दूरी पर पड़ा मिलने से पुलिस ने इसे नरबलि का मामला मानते हुए हत्या का प्रकरण दर्ज किया है। पुलिस की यह आशंका इसलिए भी बलवती हो जाती है क्योंकि कटे सिर के पास ही तांत्रिक उपायों में काम आने वाली सामग्री भी बरामद हुई है।
जादू-टोनों पर भरोसा करते हुए कोई नरबलि जैसे कृत्य पर उतारू हो जाए तो इसे अंधविश्वास की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा। यह बात सही है कि शिक्षा व तकनीक दोनों क्षेत्रों में प्रगति के कारण लोग अंधविश्वास की छाया से निकलने लगे हैं लेकिन अभी काफी-कुछ करना बाकी है। खासतौर से उन लोगों पर लगाम कसने की जरूरत है, जो अनिष्ट होने का डर दिखाकर भोले-भाले लोगों को न केवल मानसिक तनाव देते हैं बल्कि राहत दिलाने के नाम पर तरह-तरह के टोने-टोटकों के जरिए अंधश्रद्धा का बढ़ावा देने का काम करते हैं। मध्यप्रदेश के इस प्रकरण में नरबलि की यह नौबत क्यों आई यह तो पुलिस की जांच में सामने आएगा लेकिन इतना जरूर है कि ऐसा घातक कदम भी किसी तांत्रिक के कहने से ही उठाया गया होगा। चिंता की बात यह है कि हमारे यहां अंधविश्वास की रोकथाम के लिए तमाम दण्डात्मक प्रावधानों के बावजूद लोगों को अनिष्ट व परिवार पर संकट का डर दिखा कमाई करने वाले आज भी सक्रिय हैं। अंधविश्वास सिर्फ एक इंसान को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को खोखला करने वाला होता है। विज्ञान के दौर में तांत्रिक उपायों से अमीर बनाने का झांसा देने, गंभीर बीमारियों को चुटकियों में ठीक करने का दावा करने जैसे काम होते दिखें तो साफ लगता है कि परेशान व दु:खी लोगों को ठगने के काम को रोकने के लिए अभी काफी प्रयासों की जरूरत है। नरबलि के मामले भले ही अब इक्का-दुक्का सामने आ रहे हों लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर इंसान को इंसान नहीं समझने की यह दुष्प्रवृत्ति कब थम पाएगी?आज भी डायन बताकर महिलाओं को प्रताडि़त करने की घटनाएं क्यों सामने आती है? शिक्षित कहे जाने वाले लोग भी तांत्रिकों के चक्कर में क्यों आने लगे हैं। ये तमाम सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब भी विज्ञान के पास ही है।
जाहिर है अंधविश्वास के खात्मे का एक ही तरीका है, हर बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाना। बड़ी बात यह है कि व्यक्ति को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। यह बदलाव शिक्षा के माध्यम से तो आएगा ही, मीडिया की भी भूमिका काफी अहम रहने वाली है। कानून को तो सख्ती करनी ही होगी।

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