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साइबर अपराध: तकनीक की प्रगति में महिलाओं की पीड़ा

प्रो. मनोज कुमार सक्सेना, अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता, शिक्षा स्कूल तथा नितिका शर्मा आई.सी.एस.एस.आर. डॉक्टोरल फेलो, शिक्षा स्कूल, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला

जयपुरJul 06, 2025 / 10:22 pm

Sanjeev Mathur

पिछले डेढ़ दशक में भारत सहित पूरे विश्व में तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिले हैं। इंटरनेट की बढ़ती पहुंच, मोबाइल फोन और डिजिटल सेवाओं के उपयोग ने जीवन के हर क्षेत्र को बदलकर रख दिया है। लेकिन तकनीकी प्रगति के साथ ही महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध भी तेजी से बढ़े हैं। आज महिलाएं डिजिटल दुनिया में कई प्रकार के खतरों का सामना कर रही हैं, जिनमें साइबर स्टॉकिंग, सेक्सटॉर्शन, ट्रोलिंग, निजी जानकारी की चोरी और ऑनलाइन उत्पीडऩ शामिल हैं। नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2024 में महिलाओं द्वारा दर्ज कराए गए साइबर अपराधों की संख्या लगभग 48500 थी, जो वर्ष 2020 में दर्ज लगभग 22000 मामलों से दोगुनी है। अप्रैल 2025 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 50 प्रतिशत से अधिक महिला इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने किसी न किसी रूप में ऑनलाइन उत्पीडऩ का अनुभव किया है। इनमें बदनाम करने के उद्देश्य से मॉर्फ की गई तस्वीरें वायरल करना, धमकी भरे संदेश भेजना और निजी जानकारी के आधार पर ब्लैकमेल करने जैसे अपराध शामिल हैं। वर्ष 2025 में सामने आए कुछ प्रमुख मामले साइबर अपराधों की गंभीरता को उजागर करते हैं। पुणे में एक 64 वर्षीय महिला वैज्ञानिक को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर लगभग पौने दो करोड़ रुपए से अधिक की ठगी का शिकार बनाया गया। गुजरात में एक बड़े साइबर अपराध रैकेट का भंडाफोड़ हुआ, जहां महिलाओं को व्हाट्सएप कॉल्स के जरिए डराया और धमकाया गया। एक अन्य मामला पुणे की महिला का था जिसने ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग घोटाले में लगभग तेरह लाख रुपए गंवा दिए। इन अपराधों का न केवल वित्तीय, बल्कि मानसिक प्रभाव भी गंभीर होता है। ऐसे अनेकों मामले पूरे देश में देखने को मिले हैं, जिसमें विशेष तौर से महिलाओं को साइबर ठगों द्वारा शिकार बनाया गया है। महिलाएं अवसाद, तनाव और सामाजिक अलगाव का शिकार हो जाती हैं। दुर्भाग्यवश, समाज में साइबर पीडि़तों को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति के कारण कई महिलाएं शिकायत दर्ज कराने से हिचकती हैं, जिससे अपराधी आसानी से बच निकलते हैं। हालांकि भारत सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं। महिला और बाल अपराधों की रोकथाम के लिए शुरू की गई महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम (सीसीपीडब्ल्यूसी) योजना के लिए बजट वर्ष 2017-18 में लगभग 93.25 करोड़ रुपए था, जो वर्ष 2023-24 में घटकर मात्र 11 करोड़ रुपए के आसपास रह गया। केंद्र सरकार के अधीन आई फॉर सी (इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर) ने वर्ष 2025 की शुरुआत में ही 3000 से अधिक स्काइप आईडी और 83000 के लगभग व्हाट्सएप खातों को बंद किया, जो डिजिटल अरेस्ट जैसे घोटालों में प्रयुक्त हो रहे थे। अधिकांश महिलाएं अब भी डिजिटल अधिकारों और साइबर सुरक्षा के उपायों से अनभिज्ञ हैं। पुलिस अधिकारियों की प्रशिक्षण की कमी और धीमी न्यायिक प्रक्रिया भी महिलाओं की न्याय प्राप्ति में बाधा बनती है। इस समस्या के समाधान के लिए एक समग्र और लैंगिक-संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है। पहला, भारत के आईटी अधिनियम-2000 में सुधार किया जाना चाहिए, ताकि सेक्सटॉर्शन, रीवेंज पोर्न और साइबर स्टॉकिंग जैसे अपराधों को स्पष्ट परिभाषित किया जा सके। महिलाओं के लिए व्यापक डिजिटल जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए, जिनमें पासवर्ड प्रबंधन, संदिग्ध लिंक की पहचान, और साइबर अपराध की रिपोर्टिंग के बारे में बताया जाए। सार्वजनिक जागरूकता अभियान के माध्यम से साइबर अपराध के प्रति सामाजिक मानसिकता को बदला जाना चाहिए। पीडि़ता को दोष देने के बजाय उसका सहयोग करना समाज का कर्तव्य है। सोशल मीडिया कंपनियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। ऐसे एल्गोरिदम्म विकसित किए जाएं जो अपमानजनक व्यवहार को शुरुआती स्तर पर ही पहचान कर ब्लॉक करें। हेल्पलाइन नंबर और वेबसाइट को अधिक प्रचारित किया जाए और इनकी पहुंच देश के प्रत्येक क्षेत्र तक सुनिश्चित की जाए। डिजिटल समावेशन के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना जरूरी है। डिजिटल भारत के इस युग में महिलाओं की ऑनलाइन सुरक्षा एक राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए। साइबर सुरक्षा केवल तकनीकी मामला नहीं बल्कि मानवीय अधिकारों का विषय है। लैंगिक न्याय के लिए, सरकार, समाज, कानून व्यवस्था और प्रौद्योगिकी कंपनियों को मिलकर एक सुरक्षित डिजिटल वातावरण बनाना होगा। साइबर अपराध केवल आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे महिलाओं की गरिमा, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक पहचान को भी प्रभावित करते हैं। भारत को एक ऐसा डिजिटल राष्ट्र बनाना होगा, जहां महिलाएं निडर होकर इंटरनेट का उपयोग कर सकें। हालांकि इस दिशा में भारत सरकार द्वारा व्यापक जागरूकता कार्यक्रम विभिन्न माध्यमों से चलाए जा रहे हैं, बावजूद साइबर अपराध की घटनाएं भी उतनी गति से ही बढ़ रही है। ऐसे में महिलाओं को किसी भी प्रकार के झांसे में न आने के लिए व्यक्तिगत तौर पर जागरूक होने की सबसे ज्यादा जरूरत है।

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