scriptसंपादकीय : जड़ता को तोड़कर नवीनता का संदेश देने वाला पर्व | Editorial: A festival that breaks the inertia and gives the message of innovation | Patrika News
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संपादकीय : जड़ता को तोड़कर नवीनता का संदेश देने वाला पर्व

रंगों का पर्व होली हर बार एकरस जीवन में उत्साह भरने, व्यस्त दिनचर्या को बदलने तथा खुद पर और दूसरों पर हंसने के अवसर के रूप में आता है। जिस पर्व में फाल्गुन पूर्णिमा की पवित्रता, आम के बौरों की सुगंध, होलिका की पृष्ठभूमि और मदनोत्सव की परंपरा हो, उसकी विशिष्टता की कल्पना भर ही […]

जयपुरMar 12, 2025 / 09:34 pm

ANUJ SHARMA

Holi 2025

Holi 2025

रंगों का पर्व होली हर बार एकरस जीवन में उत्साह भरने, व्यस्त दिनचर्या को बदलने तथा खुद पर और दूसरों पर हंसने के अवसर के रूप में आता है। जिस पर्व में फाल्गुन पूर्णिमा की पवित्रता, आम के बौरों की सुगंध, होलिका की पृष्ठभूमि और मदनोत्सव की परंपरा हो, उसकी विशिष्टता की कल्पना भर ही की जा सकती है। आपसी प्रेम और सामाजिक सद्भाव के इस मौके पर लोगों में जो उत्साह देखने को मिलता है, वह सहज और स्वाभाविक है। कहा जा सकता है कि यदि हमारी संस्कृति में अगर होली जैसे पर्व न होते तो आज के आत्मकेंद्रित और मशीनी दौर में मौज मस्ती व हंसी-ठिठोली के मौके तलाशने तक दूभर हो जाते। होली का यह पर्व ऐसे समय आता है, जब नई फसलें कटकर घर आती हैं और किसानों का मन खिला-खिला रहता है। प्रकृति भी विभिन्न रंगों के फूलों के परिधान में निखरी-निखरी नजर आती है। फाल्गुनी हवा हर किसी के नवजीवन में प्राण भरती है।
जिस ‘हरी घास पर क्षण भर बैठने’ की बात अज्ञेय ने कही थी, ग्लोबल वार्मिंग के चलते वह बेशक उतनी हरी न रह गई हो, लेकिन दो ऋतुओं की संधि बेला में प्रकृति में हो रहे यह बदलाव बरबस ही आकर्षित करते हैं। इस त्योहार की सबसे बड़ी खासियत है कि यह ऊंच-नीच, छोटे-बड़े, जाति भेद की दीवारों को तोड़कर हमारी बहुलतावादी सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करता है। जीवंतता का यह उत्सव जड़ता को तोड़कर नवीनता का संदेश देता है। इसके अलावा यह खतरे उठाकर की जाने वाली अभिव्यक्ति का त्योहार भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि होली के अवसर पर ऐसे आचरण और अभिव्यक्ति की भी छूट है, जो हमारे नियंत्रित और अनुशासित जीवन में संभव नहीं है। होली के बाद मन निर्मल होकर उत्साहपूर्वक अपने काम में लग जाता है। लेकिन तमाम अच्छाइयों के बीच बुरा पक्ष यह है कि होली की मस्ती के नाम पर उच्छृंखलता भी यदा-कदा चरम पर पहुंच जाती है। कई बार इसके नतीजे आपसी सद्भाव बिगडऩे के खतरे तक पहुंच जाते हैं। इसे रोकने की जरूरत है।
चिंता इस बात की भी है कि आज सोशल मीडिया के युग में सामाजिकता आपसी मेलजोल के नाम पर किसी पोस्ट को लाइक और शेयर करने तक सीमित रह गई है। होली, नवजीवन का संदेश लेकर आए ताकि बहुलतावादी नए विकसित भारत के निर्माण में हम योगदान दे सकें। हर बार की तरह सबके जीवन में खुशियों के रंग भरकर तमाम वर्जनाओं को तोडऩे वाले इस त्योहार की गरिमा इसी में है कि हम इसकी मर्यादा बनाए रखें और पर्व का मौलिक आनंद लें।

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