संपादकीय : कनेक्शन के साथ जल की गुणवत्ता भी जरूरी
इक्कीसवीं सदी में भारत नित नई ऊंचाइयां छू रहा है। अंतरिक्ष से लेकर सागर की गहराइयों तक भारत नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। सूचना क्रांति की बदौलत आज आम आदमी भी मोबाइल के जरिए कहीं भी संपर्क स्थापित कर सकता है। लेकिन विडंबना यह है कि आज भी देश के करोड़ों लोगों कीस्वच्छ पानी […]


इक्कीसवीं सदी में भारत नित नई ऊंचाइयां छू रहा है। अंतरिक्ष से लेकर सागर की गहराइयों तक भारत नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। सूचना क्रांति की बदौलत आज आम आदमी भी मोबाइल के जरिए कहीं भी संपर्क स्थापित कर सकता है। लेकिन विडंबना यह है कि आज भी देश के करोड़ों लोगों कीस्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है। आजादी के करीब आठ दशक बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में तो पानी के लिए दूर-दूर तक भटकना पड़ रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए जल जीवन मिशन जैसी सरकारी योजना भी बनी, लेकिन कई राज्यों में इस योजना पर ठीक तरह से अमल नहीं होने से अब तक लक्ष्य नहीं पाया जा सका है। इस योजना के तहत 2024 तक ग्रामीण क्षेत्र के सभी घरों तक नलों से जल पहुंचाने का लक्ष्य बनाया गया था, लेकिन राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और केरल तो अब भी इस मामले में बहुत पीछे चल रहे हैं। जल संसाधन से जुड़ी स्थाई समिति ने लोकसभा में इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट पेश की है। जल स्रोतों की कमी, भौगोलिक स्थिति, तकनीकी क्षमता-संसाधनों की कमी, कनेक्शन प्रक्रिया की जटिलता जैसे कारण भी लक्ष्य पूरा करने में बाधक माने गए हैं।
सवाल यह है कि जब केंद्र सरकार बड़े स्तर पर ऐसी योजना चला रही है तो संसाधनों की कमी तो आनी ही नहीं चाहिए। पेयजल आपूर्ति से जुड़ी किसी भी योजना पर किसी भी स्तर लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ऐसी योजनाओं को प्राथमिकता से पूरा करना चाहिए और कनेक्शन से जुड़ी जटिलताओं को तो तुरंत दूर किया ही जाना चाहिए। पानी हर प्राणी की बुनियादी आवश्यकता है। इसके बावजूद जनता को स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाने का मुद्दा हाशिए पर ही नजर आता है। सरकार भी घरों तक नल कनेक्शन पर ही ध्यान दे रही है। इस बात की परवाह नहीं की जा रही है कि नलों से घर तक स्वच्छ पानी पहुंच रहा है या नहीं। यही वजह है कि हाल ही पुणे और कुछ दूसरे शहरों में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के मामले सामने आए। यह एक अस्थायी न्यूरोलॉजिकल विकार है। इसमें तंत्रिकाओं में सूजन आ जाती है, जिससे मांसपेशियों में कमजोरी या पक्षाघात हो सकता है। दूषित जल आपूर्ति के कारण लोगों की मौत के मामले भी सामने आते ही रहते हैं। खराब बुनियादी ढांचे, पानी को ठीक तरह से उपचारित नहीं करने और अनियंत्रित जल प्रदूषण के कारण ऐसे हादसे होते हैं। इसलिए जल जीवन मिशन महज नल कनेक्शनों की संख्या बढ़ाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। पानी की गुणवत्ता और पर्याप्त आपूर्ति पर भी ध्यान दिया जाए।
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