यूरोप को एकजुट होकर उठाने होंगे निर्णायक कदम
– जोसेफ ई. स्टिग्लिट्ज, विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री और अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता
– एंड्रयू कोसेन्को, मारिस्ट कॉलेज के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर
(प्रोजेक्ट सिंडिकेट से विशेष अनुबंध के तहत)


अब यह स्पष्ट है कि अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप रूसी आक्रमण के खिलाफ लड़ाई में यूक्रेन को धोखा देंगे। ट्रंप स्वयं या तो दुष्प्रचार के शिकार हैं या फिर वह जानबूझकर अमरीकी जनता को इस युद्ध के कारणों और परिणामों के बारे में गुमराह करने में सहभागी हैं। ट्रंप का यह दावा भी झूठ है कि यूक्रेन इस युद्ध के लिए समान रूप से जिम्मेदार है, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के पास युद्ध को अपनी अनुकूल शर्तों पर समाप्त करने की ताकत नहीं है और अमरीकी मदद के बिना यूक्रेन अपनी रक्षा नहीं कर सकता था। लेकिन पूरी दुनिया जानती है कि रूस ने बेवजह आक्रमण किया और हम सभी को वे शुरुआती सप्ताह भी याद हैं, जब यूक्रेनियों ने पश्चिमी तोपखाने, बख्तरबंद वाहन और वायु रक्षा प्रणालियां मिलने से बहुत पहले 1800 मील लंबी अग्रिम पंक्ति पर एक कथित रूप से श्रेष्ठतर सेना के खिलाफ वीरतापूर्वक संघर्ष किया। 28 फरवरी को ओवल ऑफिस में हुई शर्मनाक घटना ने ट्रंप की जेलेंस्की के प्रति शत्रुता और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति उनके लगाव को उजागर कर दिया। क्या यह सिर्फ इसलिए है कि ट्रंप अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने वाले आधिपत्यवादी शासकों से प्रेम करते हैं? या फिर पुतिन के पास ट्रंप को दबाव में लाने वाली कोई गोपनीय जानकारी है जिसका संदेह ट्रंप के पहले कार्यकाल से ही व्यक्त किया जा रहा है। जो भी हो, ट्रंप कानून के शासन की अवधारणा को अस्वीकार करते हैं, क्योंकि वे इसे राजनीतिक हितों के अधीन मानते हैं। जब कानून उनके हित में हो तो उसका पालन किया जाए और जब न हो तो नहीं। देशों के बीच हुए समझौतों (चाहे वे उन्होंने स्वयं किए हों) को वह अपनी इच्छा के अनुसार तोड़ते रहते हैं।
अमरीका, ब्रिटेन और रूस ने 1994 के बुडापेस्ट मेमोरेंडम के तहत यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने का वादा किया था, जिसके बदले में यूक्रेन ने सोवियत संघ से विरासत में मिले विश्व के तीसरे सबसे बड़े परमाणु शस्त्रागार को त्यागने पर सहमति दी थी। रूस ने इस समझौते का उल्लंघन 2014 में क्रीमिया पर अवैध कब्जा करके किया और अब अमरीका और ब्रिटेन भी अपने वचन से पीछे हट रहे हैं। ट्रंप द्वारा अमरीका के वचनों से मुकर जाना निंदनीय है। यूक्रेन ने अपना वादा निभाया और उसे अमरीका से भी यही उम्मीद थी। यह विश्वासघात केवल यूक्रेन के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए घातक साबित हो सकता है। दशकों से यूरोप की सुरक्षा नाटो संधि के अनुच्छेद 5 पर निर्भर रही है, जिसके अनुसार किसी एक सदस्य देश पर हमला सभी सदस्यों पर हमला माना जाता है। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि अमरीका केवल तभी यूरोप की रक्षा करेगा, जब यह ट्रंप के हितों को पूरा करेगा। अंतरराष्ट्रीय कानून और संधियों के प्रति उनकी उपेक्षा वैसी ही है, जैसी पुतिन की। यूरोप इस कठोर वास्तविकता को स्वीकार करने लगा है। अब उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता आत्मनिर्भर रक्षा बल का निर्माण करना और यूरोपीय क्षेत्राधिकार में रखी गई रूस की 220 अरब डॉलर (कुल 300-350 अरब डॉलर में से) की संप्रभु संपत्तियों का उपयोग करना है।
जून 2024 में, जी-7 देशों ने इन संपत्तियों से अर्जित 50 अरब डॉलर के ब्याज को यूक्रेन की सहायता के लिए इस्तेमाल करने का निर्णय लिया और यूरोपीय आयोग ने जनवरी 2025 में पहली किस्त के रूप में 3 अरब डॉलर जारी किए। लेकिन अमरीका द्वारा यूके्रन की वित्तीय सहायता समाप्त करने की आशंका के बीच यह उपाय अब अपर्याप्त है। यूरोप को रूस की सभी संपत्तियों को जब्त करने की दिशा में आगे बढऩा होगा। इन संपत्तियों का उपयोग यूक्रेन के पुनर्निर्माण के लिए किया जाना चाहिए, क्योंकि रूसी आक्रमण से हुए नुकसान की भरपाई के लिए 220 अरब डॉलर से कहीं अधिक राशि की आवश्यकता होगी। लेकिन एक ऐसे देश का पुनर्निर्माण नहीं किया जा सकता, जो अभी भी युद्ध के मैदान में है और जिसका कुछ हिस्सा रूसी कब्जे में है। न्याय और तर्कसंगतता यही कहती है कि इन संसाधनों का उपयोग यूक्रेन की रक्षा के लिए किया जाए। यूरोप को जो भी कानूनी प्रक्रिया अपनानी हो, वह अपनाए। महत्त्वपूर्ण यह है कि यूक्रेन को यह धन तुरंत मिले, ताकि वह सैन्य उपकरण खरीद सके और उस बुनियादी ढांचे की मरम्मत कर सके जिसे रूस लगातार नष्ट कर रहा है। रूस खुद कानून की धज्जियां उड़ा रहा है और अपने अधिकार क्षेत्र में पश्चिमी संपत्तियों को जब्त कर रहा है, इसलिए उसे यह दावा करने का कोई अधिकार नहीं कि उसकी संपत्तियां कानूनन सुरक्षित हैं।
इसके अलावा, यूक्रेन को तुरंत यह धन उपलब्ध कराना यूरोप के हित में होगा। यूक्रेन जो भी अपनी रक्षा के लिए खर्च करेगा, वह अंतत: यूरोप की रक्षा क्षमता को मजबूत करेगा। अब समय नष्ट करने की कोई गुंजाइश नहीं है। आधिपत्यवाद की लहर तेज हो रही है और यूरोप दुनिया में इसके खिलाफ सबसे मजबूत किले के रूप में उभर रहा है। लोकतंत्र, नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए यूरोप को निर्णायक कदम उठाने होंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो ने हाल ही में कहा था, ‘यूरोप को फिर से जोखिम उठाने, महत्वाकांक्षी बनने और शक्ति का उपयोग करने की प्रवृत्ति अपनानी होगी।’ यदि वह और अन्य यूरोपीय नेता वास्तव में यूक्रेन का समर्थन करना चाहते हैं तो उन्हें इस क्षण का उपयोग करना होगा, अर्थात रूस की संपत्तियों को जब्त करना होगा। यूक्रेन केवल अपनी नहीं, बल्कि पूरे यूरोप की रक्षा कर रहा है। यूरोप को कानूनी बहानों के पीछे छिपना बंद करना होगा।
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