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मेडिकल टूरिज्म से विकास के साथ वैश्विक प्रतिष्ठा भी

डॉ. पंकज कुमार जैन, प्रोफेसर, मेडिकल कॉलेज, कोटा

जयपुरJul 17, 2025 / 05:53 pm

Neeru Yadav

भारत अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक पर्यटन के लिए तो बरसों से जाना जाता रहा हैं किन्तु पिछले कुछ वर्षों से मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में भी विकास की ओर अग्रसर है। मेडिकल टूरिज्म यानी कि लोगों का देश से बाहर अपने इलाज के लिए भ्रमण करना जो कि कोविड के बाद से लगातार बढ़ रहा है। विकसित देशों में बीमारियों के इलाज का बोझ मुख्य रूप से गैर संक्रामक रोगों जैसे हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और मानसिक रोगों के चलते है, जिनका चिकित्सा व्यय बहुत ज्यादा होता है, जो हर किसी आम इंसान के बजट के अनुकूल नहीं होता है। एक मामूली से डेंटल इम्प्लांट की लागत भारत में जहां हजारो में होती है, वहीं अमरीका, सिंगापुर एवं अन्य देशों में लाखों रुपए तक जाती है। ऐसे में अन्य बड़ी बीमारियों के इलाज की लागत का अनुमान लगाना तो सोच से भी परे है।
कई देशों में इलाज की कीमतें विकसित देशों की तुलना में काफी सस्ती होती है, जिसके चलते मेडिकल टूरिज्म का ट्रेंड पिछले कुछ सालों से तेजी से बढ़ा है। वैश्विक स्तर पर मेडिकल टूरिज्म का बाजार 60-80 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच चुका है एवं लगभग 14 मिलियन लोग मेडिकल टूरिज्म के लिए विभिन्न देशों की यात्राएं करते है। थाइलैंड, मैक्सिको, सिंगापुर, भारत, ब्राजील, तुर्की और ताइवान मेडिकल टूरिज्म के लिए मरीजों की संख्या के लिहाज से शीर्ष स्थानों पर है। ज्यादातर लोग कॉस्मेटिक सर्जरी, आर्थोपेडिक सर्जरी, हृदय शल्य चिकित्सा एवं दंत चिकित्सा के लिए मेडिकल टूरिज्म का उपयोग करते हैं।
मेडिकल टूरिज्म के लिए मरीजों द्वारा किसी देश को वरीयता कई कारकों पर निर्भर करती है। उनमें सहज, सुलभ व सस्ती चिकित्सा, बेहतर गुणवत्ता, मरीज व उसके परिवार के देखभाल की उपलब्धता प्रमुख है। ऐसे में किसी देश के मेडिकल टूरिज्म की सफलता उस देश के व्यापक चिकित्सा क्षेत्र की उपलब्धता, लचीली व सुगम सरकारी नीतियां, रोगी सुरक्षा की सुनिश्चितता, चिकित्सा कर्मियों के बेहतर प्रशिक्षण मानकों, स्वास्थ्य बीमा नीतियों, यात्रा व वीजा नियमों की सुलभता, नवीनतम चिकित्सकीय विधाओं की उपलब्धता, न्यूनतम वेटिंग टाइम द्वारा ही तय हो पाती है जो अंतत: रोगी व उसके परिजनों के अनुभव और उपचार परिणामों को प्रभावित करती है।
कोविड-19 के बाद भारत को मेडिकल क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर बड़ी पहचान मिली है, ऐसे में हमारा देश भी मेडिकल टूरिज्म का हब बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है क्योंकि आज भारत भी उन्नत चिकित्सा एवं रोगी देखभाल की गुणवता को निर्धारित करने वाले घटकों पर उच्च स्कोर करता है। भारत की उच्च स्तरीय स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवा प्रणाली दुनिया के कई देशों से बेहतर एवं अतुलनीय है। जटिल से जटिल चिकित्सा प्रक्रियाएं हमारे देश में उपलब्ध विश्वस्तरीय अस्पतालों में योग्य व कुशल चिकित्सकों द्वारा बहुत ही कम लागत में की जा रही है। आयुष के माध्यम से भारत अपनी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों जैसे आयुर्वेद, होम्योपेथी, यूनानी, नेचुरोपैथी व सिद्धा के लिए भी दुनिया का पसंदीदा स्थान बनता जा रहा है। पर्यटन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अंतरराष्ट्रीय रोगियों की संख्या 2016 में 4.3 लाख से बढक़र 2019 में 7 लाख हो गई जिसका अनुमानित बाजार वर्ष 2019 में 5-6 बिलियन डॉलर के बीच है। दिनोंदिन मेडिकल कॉलेजों की संख्या में इजाफा हो रहा है एवं वहां से निकलने वाले प्रशिक्षित चिकित्सकों एवं नर्सिंगकर्मियों की भी कोई कमी नहीं है। सरकार द्वारा 167 देशों के नागरिकों के लिए ई मेडिकल वीजा और ई मेडिकल अटेंडेंट वीजा शुरू किया गया है। हील इन इंडिया पहल द्वारा देश में मेडिकल वैल्यू ट्रैवल को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्ष 2020-21 में मेडिकल टूरिज्म संगठन द्वारा मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स में पूरे विश्व के 46 गंतव्यों में भारत को 10 वी रैंक दी गई है।
इतना कुछ होने के बावजूद भी भारत में मेडिकल टूरिज्म को लेकर कुछ चुनौतियां अब भी मुंह बाये खड़ी हैं, जिनमें पहुंच एवं पूंजी की कमी, सामुदायिक भागीदारी एवं जागरूकता की कमी, ग्रामीण क्षेत्र की गैर भागीदारी, अस्पतालों में विभिन्न चिकित्सा प्रक्रियाओं के इलाज खर्च की एकरूप मूल्य निर्धारण नीतियों का अभाव, जटिल वीजा प्रक्रिया, पूर्ण चिकित्सा बीमा कवरेज का अभाव व बीमा पोर्टेबिलिटी की अनुपलब्धता, मलेशिया, सिंगापुर और थाइलैंड से कड़ी प्रतिस्पर्धा, विदेशियों के बीच भारत की अनहाइजीनिक देश की छवि, भारत को मेडिकल टूरिज्म के ब्रांड के रूप में स्थापित करने एवं प्रचार के लिए प्रभावी अभियान की कमी, अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाप्रदाताओं के लिए एक मजबूत राष्ट्रीय मान्यता प्रणाली (एनएबीएच) का होने के बावजूद विदेशों में इसके प्रति जागरूकता का न होना, भाषा की समस्या प्रमुख है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई स्तर पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। लागत को ओर प्रभावी कर, वेंटिंग टाइम कम कर समय पर स्वास्थ्य सेवा देकर विकसित देशों से मरीजों को आकर्षित करना होगा। मरीजो के हितों की रक्षा के लिए नियामक निगरानी को सुदृढ़ करना होगा। चिकित्सा क्षेत्र में पूर्ण डिजिटलीकरण कर एक व्यापक ऑनलाइन प्लेटफार्म स्थापित करना होगा, साथ ही टेलीमेडिसिन का उपयोग बढ़ाकर रोगी परामर्श व फॉलोअप सेवाओं को मजबूत कर रोगी पहुंच का विस्तार करना होगा।
जिस गति से भारत मेडिकल टूरिज्म में प्रगति कर रहा है, आगामी वर्षों में यह मेडिकल टूरिज्म का विश्वगुरु बन सकता है जो सम्पूर्ण विश्व को उन्नत चिकित्सा उपचार, लागत प्रभावी देखभाल व समग्र स्वास्थ्य की संकल्पना प्रदान कर सकता है। यह न केवल भारतीय अर्थ व्यवस्था में योगदान देगा अपितु वैश्विक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के रूप में देश की प्रतिष्ठा भी बढ़ाएगा।

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