हमारे देश में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 194-ई के तहत एम्बुलेंस को रास्ता न देने पर सजा का प्रावधान है। जुर्माने के साथ-साथ ड्राइविंग लाइसेंस को अस्थायी रूप से निलंबित भी किया जा सकता है। हाल ही में केरल के त्रिशूर की घटना में एक कार चालक की उस हरकत का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह एम्बुलेंस को जान-बूझ कर पीछे रोके नजर आता है। इतना ही नहीं, एम्बुलेंस चालक के लगातार हॉर्न बजाने और कई बार ओवरटेक करने की कोशिश के बावजूद कार चालक ने उसे आगे नहीं आने दिया। परिवहन अधिकारियों ने इसे गंभीरता से लेते हुए कार चालक पर न केवल जुर्माना लगाया बल्कि चालक का लाइसेंस रद्द ही कर दिया। ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने का निर्णय यों तो एक कठोर कदम प्रतीत हो सकता है, लेकिन इस कार्रवाई को आपातकालीन सेवाओं की प्राथमिकता सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावी उपाय माना जाना चाहिए। ऐसे कदम न केवल वाहन चालकों के लिए सडक़ पर अनुशासन बनाए रखने को पाबंद करने वाले होते हैं, बल्कि इससे यह भी जाहिर होता है कि जीवन रक्षा से जुड़ी एम्बुलेंस जैसी सेवाओं का कितना महत्त्व है। हालांकि, कठोरता से ऐसे प्रावधान भले ही लागू किए जाएं लेकिन निष्पक्षता का ध्यान भी रखना होगा। ट्रैफिक कैमरों और अन्य तकनीकी साधनों का उपयोग कर यह प्रमाणित करना होगा कि गलती चालक की ही थी।
सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि यातायात शिक्षा के कार्यक्रमों को सतत रूप से जारी रखा जाए। आम नागरिकों को इस बात को लेकर सावचेत रहना ही चाहिए कि ट्रैफिक कैमरों और जीपीएस ट्रैकिंग के माध्यम से नियमों का उल्लंघन करने वाला आसानी से पकड़ में आ जाता है। लोग यातायात नियमों की पालना जिम्मेदारी से करें, यह न केवल कानूनी रूप से बल्कि तार्किक रूप से भी आवश्यक है।