केंद्र सरकार ने दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए ग्रैप-4 जैसा कड़ा कदम उठाया है। संभव है इससे प्रदूषण में कुछ कमी आए लेकिन एक तथ्य यह भी है कि ऐसी सख्ती से राजस्थान का औद्योगिक विकास भी प्रभावित होगा। एमएसएमई किसी भी प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन पर लगे प्रतिबंधों का सीधा असर रोजगार पर पड़ना तय है। सीधे तौर पर रोजगार के अवसर कम हुए तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ेगा।
पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले उद्योगों पर रोक लगनी भी चाहिए। हाल ही में एनसीआर क्षेत्र से प्रदूषण फैलाने वाले कई उद्योगों को वहां से खदेड़ा गया है। फिर भी यह सवाल तो उठता ही है कि क्या हम औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक संतुलन बना सकते हैं?
जवाब है हां, यह संतुलन संभव है। जरूरत इस बात की है कि ऐसे उद्योगों को स्थापित करने की अनुमति देने से पहले उनके पर्यावरणीय प्रभाव का गहन अध्ययन कराया जाए। सीधे शब्दों में विकास को पर्यावरण के अनुकूल बनाना होगा। साथ ही एमएसएमई क्षेत्र को भी प्रदूषण कम करने वाली तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। इसके लिए सब्सिडी और अन्य सुविधाएं भी देनी पड़ें तो पीछे नहीं हटना चाहिए। क्योंकि मामला राज्य की अर्थव्यवस्था के साथ ही लोगों के स्वास्थ्य से भी जुड़ा है।
राजस्थान की बात करें तो उन उद्योगों पर कड़ी नजर रखनी पड़ेगी जो पर्यावरण नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। लोगों को प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक करने के साथ ही इस मुद्दे से जोड़ने की भी जरूरत है। सभी को मिलकर इस समस्या का समाधान ढूंढना होगा।
यह सच है कि प्रदूषण नियंत्रण सबकी प्राथमिकता है लेकिन उतना ही बड़ा सच यह भी है कि किसी भी प्रदेश में औदृयोगिक विकास की दर का भी लगातार बढ़ना जरूरी है। यह काम चुनौतीपूर्ण जरूर हो सकता है लेकिन असंभव कतई नहीं। सरकार और ब्यूरोक्रेसी को ऐसे समाधान की तलाश करनी होगी जो पर्यावरण और विकास दोनों को संतुलित करे। इस दोहरे संकट का मुकाबला करने के लिए यही एक ऐसा समाधान है जो न केवल राजस्थान के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है।
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