scriptपत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख-हम तो स्वतंत्र हैं! | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article On 21st November 2024 We Are Free | Patrika News
ओपिनियन

पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख-हम तो स्वतंत्र हैं!

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को निर्देश जारी किए कि ‘यदि एक्यूआई,(एयर क्वालिटी इंडेक्स) 450 अंकों से नीचे उतर जाए तब भी सुरक्षा मानक ग्रैप (ग्रेडेड रिस्पॉस एक्शन प्लान)-4 के स्तर से कम नहीं होने चाहिए।

जयपुरNov 21, 2024 / 10:23 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को निर्देश जारी किए कि ‘यदि एक्यूआई,(एयर क्वालिटी इंडेक्स) 450 अंकों से नीचे उतर जाए तब भी सुरक्षा मानक ग्रैप (ग्रेडेड रिस्पॉस एक्शन प्लान)-4 के स्तर से कम नहीं होने चाहिए। कम करने के आदेश भी यही न्यायालय तय करेगा।’ यह आदेश सम्पूर्ण एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र), लगभग 55 हजार वर्ग किलोमीटर, में ही लागू रहेगा। जो भी राज्य इस क्षेत्र का अंग है उन्हें भी तुरन्त ही संचालन एवं इस आदेश की क्रियान्विति के लिए समितियां बना लेनी चाहिएं। सभी ऐसे राज्यों को 12 वीं कक्षा तक के सारे स्कूल भी-प्रत्यक्ष आने-जाने के लिए-बंद कर देने चाहिएं। इसके अतिरिक्त भी स्थानीय आवश्यकता को देखते हुए और नागरिक सुरक्षा के हित में दायित्वों का वहन करना चाहिएं।’
इस आदेश को सुनकर लगता है कि स्थिति आपातकाल जैसी हो गई है। यह सच भी है। दिल्ली में हवा मानक सीमा से 60 गुणा विषाक्त हो गई है। जनजीवन प्रभावित होना ही था। इसके मुख्य कारण हैं-विकास की अंधाधुंध होड़, कानून की अनदेखी और अनुशासनहीनता। दिल्ली शहर वैसे भी सर्दी के दिनों में धुंध से ढंका रहता है क्योंकि पंजाब-हरियाणा में खेती के लिए आवश्यकता से अधिक जल काम में लिया जाता है। नए रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग ने खेती में पानी की मांग को और बढ़ा दिया। खेतों में ओस की मात्रा बढ़ गई। किसानों में कैंसर फैल गया वो अलग बात है। खेती अच्छे अन्न के स्थान पर अधिक धन के लिए की जाने लगी है। आदमी कितने भी मरें, कोई बात नहीं।

यह भी पढ़ें

पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख-जल से सृष्टि की निरन्तरता

पराली पहले भी जलती होगी। आज फसल काटकर खेत में आग लगा देना श्राप बन गया। जो कड़बी आज जल रही है, वह विषाक्त है। अत्यधिक जल ने पहले ही पंजाब-गंगानगर की जमीनों को सदा के लिए बंजर बना दिया। अब विषाक्त पराली में जो कीटनाशक जलते हैं, वे ही वायु को जहरीली बना रहे हैं। वाहनों के धुंए से वायु दूषित तो होती है, विषाक्त नहीं होती। दिल्ली के आंकड़ों पर भरोसा किसको? शिक्षा और सत्ता ने इस देश को झूठ बोलने में पारंगत कर दिया।
दूसरा कारण है वाहनों का धुंआ। दिल्ली में आधे वाहन तो सरकारी होंगे। इन पर कोई कानून लागू ही नहीं होता। सेना और पुलिस के वाहन, सप्लाई के वाहन, पर्यटकों के वाहन, विशिष्ट अतिथियों के लवाजमे। और भी न जाने कितने प्रकार के यातायात के आसुरी प्रभाव दिल्ली को उपहार में मिलते हैं। कोई नेता अपनी गाड़ी में जाने को तैयार नहीं होता। आगे-पीछे कारवां चाहिए। धिक्कार! ये जनता के रक्षक हुए या भक्षक? आज एक्यूआई का अंक 500 पार कर गया। चारों ओर हा-हाकार मच गया। बच्चों में अस्थमा और निमोनिया जैसे रोग नजर आने लगे। सारे प्रयास चोर को पकड़ने के लिए हो रहे हैं। चोर की मां को खुली छूट है।
उद्योगों के अपशिष्ट जल-स्रोतों तक न पहुंचे, यह गारण्टी कोई नहीं देता। हजारों-हजार करोड़ खा गए नदियों के शुद्धिकरण के नाम पर-अपशिष्ट बन्द नहीं हुए। भ्रष्टाचार बड़ा कारण है। अपशिष्ट कुछ जलाए भी जाते हैं। कुछ शहरों का कूड़ा जलाया जाता है। ये क्या खिलवाड़ नहीं है? इनके निस्तारण के आधुनिक और पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं होते? आज जयपुर शहर की सीवरेज जलमहल में जा रही है। किसको शर्म आ रही है? कितने बजट बने होंगे 20-25 सालों में। क्या हुआ? जयपुर भी आज दिल्ली के पदचिन्हों पर चल रहा है।
वाहन भी जीवन के कैंसर होते जा रहे हैं। घर हो या न हो, वाहन चाहिएं। पार्किंग बाहर सड़क पर। दिल्ली में बड़े परिवार के हर सदस्य के पास वाहन। वाहन कर इसी हिसाब से तय करें कि हर दूसरी गाड़ी पर, सड़क पार्किंग सहित अतिरिक्त कर लगे। दिल्ली में पैसा बहता है, कौन रुकेगा ! इसका एक उपाय तो है- पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाना। अत्यन्त भीड़भाड़ के क्षेत्रों में प्रवेश शुल्क लागू करना। मूलत: कृषि पर अंकुश आवश्यक है। जल-रसायन-कीटनाशक के उपयोग पर नियंत्रण। कीटनाशकयुक्त पराली नहीं जलाई जाएगी। सरकारी काफिलों पर लगाम कसी जाए। इनमें घूमने वाले नेता प्रदूषण पर मगरमच्छ के आंसू तो टपकाते हैं, पर वे अपनी तरफ से ऐसी कोई शपथ लेने को तैयार नहीं कि मैं अपने जीवन में, व्यवहार में सुधार लाउंगा।
यह भी पढ़ें

पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख-शिक्षा में फर्जीवाड़ा

आज दिल्ली- एनसीआर में उद्योग बंद हैं, नए निर्माण बंद हैं, सरकारी/निजी सभी स्कूल बंद हैं। कर्मचारियों को घर से कार्य करने की सलाह, कृत्रिम वर्षा कराने की मांग! वाह रे विकास!! इसमें मानवीय संवेदना दिखाई नहीं देती। सर्दी के बिना भी तो प्रदूषण इतना ही रहता है। क्या वाहनों की, निर्माण की धूल साल भर नहीं उड़ती? गर्मी की फसलों में भी कृषक का व्यवहार वैसा ही रहता है। लगभग सभी परिवार रोगग्रस्त मिलेंगे। क्या खोया, क्या पाया का हिसाब तो करके देखें। विकास ने प्रकृति को नष्ट ही किया है। रोग और मृत्यु की गति के आगे जीवन हारने लगा है।
राजस्थान में भी ग्रैप-4 लागू करने के निर्देश जारी हो चुके। यहां खनन-क्रैशर का बोझ अतिरिक्त है। धूल भी दिल्ली से कई गुणा अधिक है। शिक्षा, कमाने की होड़ पैदा करती है। सुख बांटने की कोई नहीं सोचता। भ्रष्टाचार ने सरकार को जनता का शत्रु बना दिया। स्वयं जनप्रतिनिधि भी अपने स्वार्थ के आगे जनहित को गौण मानने लगे। इनमें भी अपराधी-अज्ञानी बढ़ गए। देश की सोचने की न तो इनमें क्षमता होती है, न ही इनकी आवश्यकता। कानून से सदा ही ऊपर होते हैं। जब तक इस व्यवस्था पर अंकुश नहीं लगेगा, देश में कानून का राज प्रभावी ही नहीं होगा। जन मरता है तो मरने दे। आंसू न बहा फरियाद न कर! पैसे दे, कानून तोड़ता रह!
gulabkothari@epatrika.com

Hindi News / Prime / Opinion / पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख-हम तो स्वतंत्र हैं!

ट्रेंडिंग वीडियो