हाल के वर्षों में कश्मीर में यह सबसे दु:खद घटना थी, लेकिन इसमें एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि पूरी कश्मीर घाटी न केवल इस त्रासदी पर शोक में डूबी, बल्कि पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के खिलाफ एकजुट होकर प्रदर्शन और रैलियों के माध्यम से कार्रवाई की मांग भी की। कश्मीर ने स्पष्ट और जोरदार तरीके से अपना फैसला सुना दिया है कि वह पाकिस्तान के मंसूबों और आतंकवाद के खिलाफ है। आतंकियों का मकसद साफ था; वे कश्मीर की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करना चाहते हैं, क्योंकि राज्य को पर्यटन से हर साल 10,000 करोड़ रुपए से अधिक की आमदनी होती है और इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से 15 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद और कनेक्टिविटी तथा सुविधाओं को बेहतर बनाने के प्रयासों से पर्यटन में जो तेजी आई थी, उसने कश्मीरी मुस्लिमों और देशभर से आने वाले पर्यटकों के बीच एक नया संबंध बना दिया था।
कश्मीरी अपनी मेहमाननवाजी के लिए प्रसिद्ध हैं और वे पर्यटकों के साथ विशेष आत्मीयता दिखा रहे थे। कारण यह था कि उन्होंने आतंकवाद के कारण लंबे समय तक अर्थव्यवस्था का सूखा देखा और पीड़ा झेली थी, जिससे शांति और युवाओं के सपनों पर विराम लग गया था। पाकिस्तान को महसूस हो गया था कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या, जो इस साल के अंत तक तीन करोड़ को पार कर सकती थी, उसकी दुष्प्रचार नीति और कश्मीर को लेकर रचाई गई झूठी कहानी को नकार रही है। पाकिस्तान के लिए यह दोहरी पराजय थी—एक तो यह कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के निर्णय को कश्मीरी लोग धीरे-धीरे स्वीकार कर रहे थे, जबकि पाकिस्तान ने यह सपना संजो रखा था कि वे इस फैसले के खिलाफ विद्रोह करेंगे। पाकिस्तान को इस बात से भी गहरी चोट पहुंची कि चीन और तुर्की को छोड़कर कोई भी देश उसके पक्ष में नहीं आया, यहां तक कि इस्लामी देशों ने भी भारत के निर्णय का समर्थन किया। दूसरे, पाकिस्तान को कश्मीर घाटी में हो रहे बुनियादी ढांचे के विकास और देश के साथ बढ़ती एकजुटता से परेशानी थी।
कश्मीर में पर्यटन केवल आर्थिक गतिविधि नहीं है, यह उसकी छवि का बड़ा सवाल भी है। घाटी के शांतिप्रिय लोग हमेशा यह चाहते थे कि वे एक ऐसे समाज के रूप में पहचाने जाएं जो शांति, सामान्य जीवन और पर्यटकों की मेहमाननवाज़ी को महत्त्व देता है। इससे न केवल पर्यटकों के साथ उनका रिश्ता मजबूत हुआ, बल्कि देश के बाकी हिस्सों के साथ भी एक आत्मीय संबंध स्थापित हुआ। इसी पृष्ठभूमि में, जब पाकिस्तान ने खुद को पूरी तरह से अलग-थलग पाया और देखा कि कश्मीरी अब उसकी तरफ देख भी नहीं रहे, तब उसने फिर से मौत और तबाही के रास्ते को अपनाया। यह कहना गलत नहीं होगा कि 15 अप्रेल को पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल ए. मुनीर का वह भाषण, जिसमें उन्होंने द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की बात की, हिंदुओं को निशाना बनाकर उन्हें अपमानित किया और कश्मीर मुद्दे को भड़काया, वह इस हमले का प्रेरक बन गया। इस नरसंहार की जिम्मेदारी टीआरएफ – द रेजिस्टेंस फ्रंट ने ली, जो लश्कर-ए-तैयबा का ही मुखौटा संगठन है। इमरान खान के पक्ष में जन उभार और बलूचिस्तान में बगावत के बीच फंसे जनरल मुनीर ने कश्मीर की स्थिति को बिगाडऩे की रणनीति बनाई। पर्यटक सॉफ्ट टारगेट होते हैं और पाकिस्तानी आतंकियों ने उन्हें ही निशाना बनाया। इससे पाकिस्तान को कई लाभ हुए। डरे हुए पर्यटक घाटी छोड़कर चले गए, जिससे कश्मीर दोहरी पीड़ा में डूब गया। उसकी छवि और कारोबार दोनों को नुकसान पहुंचा। लेकिन इस बार कश्मीर ने एकजुट होकर पूर्ण बंद और विरोध रैलियों के माध्यम से आतंकियों और उनके सीमा पार बैठे आकाओं के खिलाफ सख्त और त्वरित कार्रवाई की मांग की।
इस बार कश्मीरी किसी भी तरह की पाकिस्तान या आतंकियों की प्रतिक्रिया से नहीं डरे। विरोध रैलियों में लोगों की चीखें थीं। भारत सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम को बहुत गंभीरता से लिया है। प्रधानमंत्री ने सऊदी अरब की अपनी यात्रा बीच में ही छोड़ दी, गृह मंत्री श्रीनगर पहुंचे, हालात की समीक्षा की और पीडि़तों से मुलाकात की। इससे लोगों में भरोसा जगा है। पाकिस्तान के खिलाफ जल्द कोई कार्रवाई हो सकती है। इस बार, बदलाव यह है कि पूरी कश्मीर घाटी आतंकियों के खिलाफ मुखर है। पाकिस्तान की साजिश विफल हो गई है।