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कश्मीर के मुद्दे को देशभर में गुंजाना होगा

पत्रिका समूह के संस्थापक कर्पूर चंद्र कुलिश जी के जन्मशती वर्ष के मौके पर उनके रचना संसार से जुड़ी साप्ताहिक कड़ियों की शुरुआत की गई है। इनमें उनके अग्रलेख, यात्रा वृत्तांत, वेद विज्ञान से जुड़ी जानकारी और काव्य रचनाओं के चुने हुए अंश हर सप्ताह पाठकों तक पहुंचाए जा रहे हैं।

जयपुरApr 23, 2025 / 09:05 pm

harish Parashar

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों की कायराना हरकत के बाद समूचा देश उद्वेलित है। पर्यटकों पर हुए इस आतंकी हमले की देश-दुनिया में निंदा हो रही है। आज केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की कन्याकुमारी से कश्मीर की यात्रा की शुरुआत से पहले श्रद्धेय कुलिश जी ने ३४ वर्ष पहले लिखा था कि कश्मीर, पंजाब और असम की समस्याएं केवल राजनीतिक नहीं हैं। उनके पीछे विदेशी ताकतें लगी हुई हैं जो भारत में अलगाव और बिखराव पैदा करना चाहते हैं। उन्हें राष्ट्रीय भावना के साथ ही निपटाया जा सकता है। आलेख के प्रमुख अंश:
कश्मीर का मामला सबसे ज्यादा पेचीदा बना हुआ है। कश्मीर के एक हिस्से पर तो जवाहरलाल नेहरू के हाथ से ही पाकिस्तान ने छीन कर कब्जा कर लिया था। घाटी में हमारी गलत नीतियों के कारण धीरे-धीरे हालात बिगड़ते गए और नौबत अब यह आ गई कि वहां स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराना भी अपने आप में एक उपलब्धि मानी जाएगी। मात्र इस प्रयोजन को पूरा करने के लिए भाजपा को कन्याकुमारी से कश्मीर तक की एकता-यात्रा का बिगुल बजाना पड़ा है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होते हुए भी भिन्न है। कश्मीरी पंडितों को वहां से चुन-चुुनकर निकाल दिया गया है और वे अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैं। आतंककारियों ने कश्मीर को इस्लाम का मुद्दा बना दिया है। इधर हमारे तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी भी इस तरह पेश आते हैं जैसे सम्प्रदायवादी आते हैं। वे भी कश्मीर को हिन्दू-मुस्लिम समस्या की तरह देखते हैं।
सरकार कोई भी कारगर कदम उठाती है तो ये धर्मनिरपेक्षतावादी चिल्लपों मचाने लगते हैं। हथियारों की तलाशी तक को मानवाधिकारों का हनन बता देते हैं। भारतीय सेना को दस्युदल की तरह बदनाम करने लगते हैं। पाकिस्तान के एजेंट भी इस तरह पेश नहीं आते जिस तरह हमारे धर्मनिरपेक्षी बुद्धिजीवी पेश आते हैं। कश्मीरी जनता का कोई प्रतिनिधित्व करने वाला नहीं है। जो लोग जन्म से कश्मीरी होने के कारण कश्मीरी नेता बने हुए हैं वे कश्मीर में घुसने की हिम्मत नहीं करते। वे कश्मीर के बाहर दहाड़ते रहते हैं। वे स्वयं भारत सरकार के लिए भार बने हुए हैं और बड़े बन्दोबस्त में रहते हैं। वे अपने बाल-बच्चों की खातिर देशद्रोहियों से सौदे करते हैं। उधर, पाकिस्तान की कोशिश है कि हर कीमत पर कश्मीर को भारत से अलग करवा दिया जाए। न केवल आतंककारियों को शस्त्र शिक्षा और आर्थिक सहायता दी जाती है बल्कि अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर विवाद को उछाला जाता है। कश्मीर आज हमारे सामने एक राष्ट्रीय संकट है। इस पर विचार करते समय दलगत हितों से ऊपर उठना होगा सरकार को भी और अन्य राजनीतिक दलों को भी।
दलगत स्वार्थों को भूलना होगा
भाजपा ने एकता यात्रा का बिगुल बजाया है। यह उसकी जिम्मेदारी है कि कश्मीर, एकता का प्रमाण बने। यह दलगत हितों या राजनेताओं के अहं की तुष्टि का प्रश्न नहीं है। यह पीएम नरसिंह राव की सहायता का प्रश्न भी नहीं है। प्रश्न है समय के तकाजे को समझने का और राष्ट्र के हितों के अनुरूप सिद्ध करने का। कहीं ऐसा न हो कि आडवाणी की रथयात्रा की तरह समाचार पत्रों में जोशी की यात्रा का विवरण छपकर रह जाए और कल को अटल बिहारी वाजपेयी भी एक रथयात्रा का आयोजन कर डालें। कश्मीर के रास्ते पर पैर दलगत स्वार्थों को भूलकर प्रखर देश भक्ति की भावना से भर कर रखना होगा। सरकार भी कश्मीर की उपेक्षा नहीं कर सकती। नरसिंह राव कभी नहीं चाहेंगे कि उनके कार्यकाल में कश्मीर हाथ से चला जाए। भाजपा के सामने जो परिस्थितियां हैं उससे मुक्त होने का एक ही मार्ग है कि वह कश्मीर के मुद्दे को देशभर में गुंजा दे और सरकार को खुला समर्थन देकर कार्रवाई को मजबूर कर दे।
तब भाजपा को भी दी थी नसीहत
भाजपा ने एकता यात्रा का बिगुल बजाया है। यह उसकी जिम्मेदारी है कि कश्मीर, एकता का प्रमाण बने। यह दलगत हितों या राजनेताओं के अहं की तुष्टि का प्रश्न नहीं है। यह पीएम नरसिंह राव की सहायता का प्रश्न भी नहीं है। प्रश्न है समय के तकाजे को समझने का और राष्ट्र के हितों के अनुरूप सिद्ध करने का। कहीं ऐसा न हो कि आडवाणी की रथयात्रा की तरह समाचार पत्रों में जोशी की यात्रा का विवरण छपकर रह जाए और कल को अटल बिहारी वाजपेयी भी एक रथयात्रा का आयोजन कर डालें। कश्मीर के रास्ते पर पैर दलगत स्वार्थों को भूलकर प्रखर देश भक्ति की भावना से भर कर रखना होगा। सरकार भी कश्मीर की उपेक्षा नहीं कर सकती। नरसिंह राव कभी नहीं चाहेंगे कि उनके कार्यकाल में कश्मीर हाथ से चला जाए। भाजपा के सामने जो परिस्थितियां हैंउससे मुक्त होने का एक ही मार्ग है कि वह कश्मीर के मुद्दे को देशभर में गुंजा दे और सरकार को खुला समर्थन देकर कार्रवाई
23 नवम्बर 1971 के अंक में ‘कश्मीर मुद्दे को देश भर में गुंजाना होगा’ आलेख से
…तो संकोच नहीं होगा

भारत की यह महत्वाकांक्षा कदापि नहीं है कि वह पाकिस्तान की भूमि पर अधिकार करे। बांग्लादेश के स्वतंत्र होने और शरणार्थियों के वापस चले जाने के बाद हमारा सिरदर्द समाप्त हो जाता है। यह दूसरी बात है कि दुर्मति के शिकार निक्सन और याहृया खां कुछ ऐसा कर बैठें कि पाक अधिकृत कश्मीर को इस बीच हमारी झोली में डाल दे। वह भारत का अपना अंग है। उसे वापस लेने में हमें कोई संकोच नहीं होगा। इसके लिए कुछ बलिदान भी करने पड़ें तो किया जाएगा।
कुलिश जी के अग्रलेखों पर आधारित पुस्तक ‘हस्ताक्षर’से 8 दिसम्बर 1971 के अग्रलेख के अंश

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