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पौधे लगाना ही काफी नहीं, उन्हें बचाना भी है जरूरी

– ज्ञानेन्द्र रावत, वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद

जयपुरJul 03, 2025 / 08:00 pm

Sanjeev Mathur

देश में हर साल जुलाई माह की शुरुआत से वृहद स्तर पर पौधरोपण किया जाता है। हरेक राज्य इस अभियान में करोड़ों पौधे लगाने का कीर्तिमान स्थापित करने का प्रयास करता है। प्रकृति संरक्षण की दिशा में सरकार द्वारा किया जाने वाला पौधरोपण अभियान प्रशंसनीय है, लेकिन इसकी सफलता तभी संभव है जब रोपित पौधों का उचित रख-रखाव और संरक्षण हो। इस संदर्भ में देश की सर्वोच्च अदालत का भी कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत पेड़ों की सुरक्षा करना हर नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है। इस बारे में जहां तक सरकारी अधिकारियों का सवाल है, अदालत ने आगे कहा है कि सभी सरकारी अधिकारियों का संवैधानिक कर्तव्य है कि वे अधिक से अधिक पेड़ों को बचाएं और उनकी सुरक्षा करें। दरअसल इस अभियान में लगी एजेंसियों की जिम्मेदारी काफी महत्त्वपूर्ण है। जरूरत है कि इस अभियान को जनांदोलन बनाया जाए, जिसके लिए जनभागीदारी की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है। देखा जाए तो पौधरोपण के लक्ष्य का निर्धारण सराहनीय ही नहीं, स्तुतियोग्य प्रयास है, प्रशंसनीय है। लेकिन रोपित पौधों की रक्षा बेहद जरूरी है जैसा कि देश की शीर्ष अदालत का मानना है। क्योंकि अक्सर होता यह है कि पौधरोपण के बाद उनकी उचित देखभाल नहीं होती और वे कुछ समय बाद ही मर जाते हैं। इसलिए इस काम में लगी एजेंसियां रोपित पौधों के रख-रखाव की जिम्मेदारी समाज के उन लोगों को सौंपें जो इस अभियान में सहभागिता कर रहे हैं, तभी अभियान की सफलता संभव है।
गौरतलब है कि असलियत में दुनिया में जिस तेजी से पेड़ों की तादाद कम होती जा रही है, उससे पर्यावरण तो प्रभावित हो ही रहा है, पारिस्थितिकी, जैव विविधता, कृषि और मानवीय जीवन ही नहीं, भूमि की दीर्घकालिक स्थिरता पर भी भीषण खतरा पैदा हो गया है। जैव विविधता का संकट पर्यावरण ही नहीं, हमारी संस्कृति और भाषा का संकट भी बढ़ा रहा है। जबकि यह सर्वविदित है कि पृथ्वी के पारिस्थितिकीय तंत्र में वृक्षों की महत्ता और विविधता की बहुत बडी भूमिका है। देखा जाए तो पेड़ों का होना हमारे जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण ही नहीं, बेहद जरूरी है। यह न केवल हमें गर्मी से राहत प्रदान करते हैं बल्कि जैव विविधता को बनाए रखने, कृषि की स्थिरता सुदृढ़ करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने, जलवायु को स्थिरता प्रदान करने और वैश्विक अर्थतंत्र में सालाना लगभग 1300 अरब डॉलर का भी अहम योगदान देते हैं। फिर भी हम हर साल उनमें से अरबों को नष्ट कर रहे हैं। बीते कई बरसों से दुनिया के वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और वनस्पति व जीव विज्ञानी चेता रहे हैं कि अब हमारे पास पुरानी परिस्थिति को वापस लाने के लिए समय बहुत ही कम बचा है। यह भी कि हम जहां पहुंच चुके हैं वहां से वापस आना आसान काम नहीं है। कारण वहां से हमारी वापसी की उम्मीद केवल और केवल पांच फीसदी से भी कम ही बची है। दरअसल जैव विविधता न सिर्फ हमारे प्राकृतिक वातावरण के स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण है, बल्कि ऐसे वातावरण में रहने वाले लोगों के मानसिक कल्याण के लिए भी जरूरी है। इस पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है कि जैव विविधता धरती और मानव स्वास्थ्य के लिए सह-लाभ के तत्व हैं और इसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी मान सरकार द्वारा बीते कुछ सालों से देश में बड़े पैमाने पर पौधरोपण अभियान चलाया जा रहा है। यहां सबसे दुखदायी और चिंता की बात यह है कि हर साल जितना जंगल खत्म हो रहा है, वह एक लाख तीन हजार वर्ग किलोमीटर में फैले देश जर्मनी, नार्डिक देश आइसलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैंड जैसे देशों के क्षेत्रफल के बराबर है। लेकिन सबसे बड़े दुख की बात भी यह है कि इसके अनुपात में नए जंगल लगाने की गति बहुत धीमी है।
समूची दुनिया में हर मिनट औसतन दस फुटबाल मैदान के बराबर यानी 17.60 एकड़ जंगल खत्म किए जा रहे हैं। एक बार यदि हम खतरे के दायरे में पहुंच गए तो हमारे पास करने को कुछ नहीं रहेगा। आज जंगल बचाने की लाख कोशिशों के बावजूद दुनिया में वनों की कटाई में और तेजी आई है और उसकी दर चार फीसदी से भी बढ़ गई है। हम यह क्यों नहीं समझते कि यदि अब भी हम नहीं चेते तो हमारा यह मौन हमें कहां ले जाएगा और क्या मानव सभ्यता बची रह पाएगी? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का यह स्पष्ट मानना है कि पेड़ों को काटना इंसानों की हत्या से भी ज्यादा गंभीर मामला है। पर्यावरण के मामले में कोई दया नहीं होनी चाहिए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी गत वर्ष भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की याचिका पर और इस वर्ष ताजमहल संरक्षित परिक्षेत्र में 454 पेड़ काटने के संदर्भ में सुनवाई के दौरान की गई थी। जीवनदायी पेड़ों के संरक्षण से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने यह साबित कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट पेड़ों के प्रति कितना संवेदनशील है। उसने अपने आदेश में कहा है कि सरकारें पेड़ों की संरक्षक हैं। पेड़ों को कटने से बचाने का दायित्व राज्य का है। हमें पेड़ों के महत्त्व को समझते हुए हर पेड़ को बचाना होगा।
इस बारे में 2004 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली केन्या की पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्री रहीं बंगारी मथाई का उस समय दिया यह बयान महत्त्वपूर्ण है- ‘जल, जंगल और जमीन के मुद्दे आपस में गहरे तक जुड़े हुए हैं। प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रबंधन आज की सबसे बड़ी जरूरत है। ऐसे सामुदायिक प्रयासों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है जिससे धरती को बचाया जा सके। खासकर ऐसे समय में जब हम पेड़ों और पानी के साथ साथ जैव विविधता की वजह से पारिस्थितिकी के संकट से जूझ रहे हैं। संसाधनों के उचित प्रबंधन के बगैर शांति कायम नहीं हो सकती। फिर हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं, यदि उसे नहीं बदला तो पुरानी झड़पें बढ़ेंगीं और संसाधनों को लेकर नई लड़ाइयां सामने खड़ी होंगी। मैं इस पुरस्कार का जश्न महात्मा गांधी के इन शब्दों के साथ मनाना चाहती हूं कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। एक पेड़ जरूर लगाएं।’
वर्तमान में बढ़ता प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। असंतुलित जीवन शैली, वाहनों का बढ़ता प्रयोग, औद्योगिक प्रतिष्ठान, बढ़ता कचरा, अधिक अन्न उत्पादन की चाहत के चलते उर्वरकों का बढ़ता उपयोग, सुख-सुविधाओं की अंधी चाहत के चलते भौतिक सुख-संसाधनों की बेतहाशा बढ़ती मांग आदि तो इसके सबसे बड़े कारण हैं ही, लेकिन इसका एक अहम कारण पर्यावरण हितैषी पेड़ न लगाया जाना भी रहा है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। देश में पौधरोपण के नाम पर सरकारों का एकमात्र उद्देश्य हरियाली बढ़ाना रहता है, न कि पर्यावरण हितैषी और ऑक्सीजन छोडऩे वाले पेड़-पौधे लगाने को प्रोत्साहन देना। अक्सर होता यह है कि सभी विभाग अपनी इच्छानुसार कम कीमत और आसानी से बढऩे वाले पेड़-पौधे लगाने को प्राथमिकता देते हैं। जबकि जरूरत है देश में पर्यावरण हितैषी यानी पर्यावरण को बढा़वा देने वाले लाभकारी नीम, पीपल, बरगद, जामुन, शीशम, रीठा, आम, देवदार, कैल, चीड़, अमलतास, कदम्ब, अशोक, पीला गुलमोहर, बुरांस, चिनार, सावनी, कैथी सहित खैर, कैंथ, कचनार, हिमालय केदार, बेऊल, खरसू ओक, निर्गल, कौरकी कोरल, सिल्क कौटन ट्री, पाल्श, सिल्क ट्री मिमोसा, पाजा, ब्लू पाइन, ब्रेओक, बन ओक, चिलगोजा, पेन्सिल केदार, चीर पाईन, शुकपा, लूनी, डेरेक, खिडक व दादू आदि पेड़-पौधे लगाए जाने की। ऐसा करके जहां हम पर्यावरण में बढ़ रहे प्रदूषण पर किसी हद तक अंकुश लगा सकते हैं, वहीं प्राणी मात्र के जीवन बचाने में भी कामयाब हो सकते हैं।

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