सोशल मीडिया में विचारों का आदान-प्रदान त्वरित, वैश्विक और सरल हो गया है। लोगों को अपनी राय रखने, मुद्दों पर चर्चा करने और सामाजिक चेतना जगाने का सशक्त मंच मिला है। परंतु, इसके साथ ही अफवाहें फैलने, मतभेद बढ़ने और सतही संवाद का खतरा भी बढ़ा है। यह माध्यम जितना सशक्त है, उतनी ही जिम्मेदारी की अपेक्षा रखता है।
— संजय माकोड़े, बैतूल
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सोशल मीडिया ने संवाद की प्रकृति को काफी बदल दिया है। सूचनाएं, समाचार और विश्ललेषण का तेजी से प्रसार हो जाता है। उदाहरण के लिए, #MeToo (#मीटू) आंदोलन ने सोशल मीडिया के माध्यम से लाखों लोगों को अपनी कहानियाँ साझा करने और सामाजिक बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया। यह भी सच है कि इससे गलत सूचनाएं, साइबरबुलिंग, निजता के हनन और गोपनीयता जैसे मुद्दों का भी प्रचार हो गया है। सूचना के सही या गलत होने का पता नहीं लगता। सोशल मीडिया ने संवाद को लोकतांत्रिक बनाया, लेकिन जिम्मेदार उपयोग और सूचना की प्रामाणिकता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
— डॉ. विदुषी शर्मा, कोटा
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-नरेश कानूनगो ‘शोभना’ देवास म.प्र.
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सोशल मीडिया से संवाद की पहुंच हर जगह हो गई है। व्यक्ति न केवल अपने परिचितों से बल्कि विभिन्न पृष्ठभूमि और विचारों वाले अनगिनत लोगों से जुड़ सकता है। इसने भौगोलिक सीमाओं को तोड़ दिया है। सोशल मीडिया ने सार्वजनिक विमर्श के स्वरूप को बदल दिया है। अब राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर चर्चाएं ऑनलाइन मंचों पर होती हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग अपनी राय रखते हैं और बहस में भाग लेते हैं। इसने सामाजिक आंदोलनों को संगठित करने और जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
— डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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सोशल मीडिया ने संवाद को एक नया रूप प्रदान कर आधुनिक युग में क्रांति ला दी है। लेकिन इसने परिवार और अपनों के बीच होने वाले संवाद को कम कर दिया है। लोग सोशल मीडिया में बधाई संदेश से लेकर मैसेज के माध्यम से हालचाल पूछते हैं, लेकिन लोग सोशल मीडिया तक ही सोशल होकर रह गए हैं, जिसके कारण हमारी पारंपरिक संवाद शैली भी ख़त्म होती जा रही है। लोग एक—दूसरे के साथ जुड़े अवश्य हैं लेकिन अधिकांश केवल औपचारिक रूप से।
—तरुणा साहू, रायपुर छत्तीसगढ़
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सोशल मीडिया ने संवाद के तरीकों को भी बदल दिया है, और कुछ मामलों में, यह पारंपरिक संवाद के तरीकों को कम महत्वपूर्ण बना दिया है। उदाहरण के लिए, लोग अब ऑनलाइन संवाद पर अधिक निर्भर हो गए हैं। यह आमने-सामने के संवाद और सामाजिक संबंध के तरीकों को कम महत्वपूर्ण बना सकता है
— अजीतसिंह सिसोदिया- खारा बीकानेर