पटना के जाने-माने व्यापारी गोपाल खेमका की हत्या के बाद बिहार में सुरक्षा व्यवस्था का मुद्दा फिर गरमा गया है। पूरे राज्य में कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी जिस पुलिस बल पर है, उसकी संख्या महज सवा लाख के आसपास है, यानी आबादी के अनुपात में एक पुलिसवाले पर करीब 1,000 लोग। उस पर शराब तस्करी नाम में दम किए हुए है।
इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि जब बिहार जैसे 13 करोड़ की बड़ी आबादी वाले राज्य में पुलिस के आधे से ज्यादा पद खाली हैं और फील्ड में तैनात कर्मियों को शराबबंदी के क्रियान्वयन में झोंक दिया गया हो तब बड़ा सवाल उठता है…आखिर अपराधों पर कैसे लगाम लगेगी? बिहार के पुलिस महानिदेशक (DGP) विनय कुमार खुद मानते हैं कि राज्य में पुलिस बल की भारी कमी है। उनके मुताबिक 2.47 लाख स्वीकृत पदों में लगभग 50% खाली हैं।
पहले की तुलना में 50% ज्यादा केस रफा-दफा हो रहे
इंडियन एक्सप्रेस के साथ इंटरव्यू में विनय कुमार ने कहा कि उन्होंने पदभार ग्रहण करने के बाद सबसे पहले मामलों की त्वरित जांच और निपटारा सुनिश्चित किया है। हर जिले में पहले की तुलना में 50% ज्यादा केस रफा-दफा हो रहे हैं। उन्होंने भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत तय समयसीमा में जांच और ट्रायल को प्राथमिकता दी है। लेकिन पुलिस की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसे पारंपरिक अपराधों के साथ-साथ साइबर अपराधों और शराबबंदी जैसे सामाजिक कानूनों से भी जूझना पड़ रहा है और वह भी सीमित संसाधनों के साथ।
शराब तस्करी बड़ी चुनौती
नीतीश कुमार सरकार ने 2016 में बिहार में शराबबंदी लागू की। उसके बाद पुलिस के लिए उसकी तस्करी रोकना एक बड़ी चुनौती बन गया है। हर साल औसतन 70,000 से अधिक केस सिर्फ शराब से जुड़े होते हैं और यह काम पुलिस के नियमित कामों के साथ चलता रहता है।
तेल टैंकर में लाई जा रही शराब
प्रोफेशनल अपराधियों ने कई नए तरीके अपनाए हैं जैसे प्रेस, पुलिस या एम्बुलेंस के स्टिकर लगे वाहनों से शराब की तस्करी करना। यही नहीं अब तो तेल टैंकर तक मॉडिफाई किए जा रहे हैं। बिहार की सीमाएं उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल और नेपाल से लगती हैं, जहां से अवैध शराब की आपूर्ति होती है। पुलिस को इन सीमावर्ती क्षेत्रों में चौकसी बढ़ानी पड़ी है, लेकिन ये लड़ाई आसान नहीं है।
अपराधों का बदलता स्वरूप
DGP विनय कुमार ने यह भी बताया कि बीते 3 दशक में अपराध का चेहरा पूरी तरह बदल गया है। एक समय था जब ट्रेनें जैसे South Bihar Express और Palamu Express डकैती के लिए बदनाम थीं। 90 के दशक में अपहरण उद्योग चरम पर था। लेकिन अब साइबर अपराध ने नई चुनौती खड़ी की है। जामताड़ा मॉडल से प्रेरित साइबर गैंग रिटायर सरकारी कर्मचारियों और आम लोगों को Digital Arrest के नाम पर ठग रहे हैं। इसकी रोकथाम के लिए हर जिले में अब साइबर थाना स्थापित किया गया है और आर्थिक अपराध इकाई के तहत अलग साइबर विंग बनाया जा रहा है।