‘शिविर-पंडाल सिर्फ संत और VIP के लिए नहीं’
मलूक पीठ के पीठाधीश्वर और रेवासा धाम प्रमुख महंत राजेंद्र दास जी महाराज ने इस दुखद घटना पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, “यह हादसा क्यों हुआ? यदि हमारी बात से किसी को कष्ट पहुंचे तो हम पहले से ही क्षमाप्रार्थी हैं। विशाल शिविर और भव्य पंडाल केवल संतों, सेठों और साहूकारों के लिए ही नहीं, बल्कि जनता जनार्दन के लिए भी होते हैं। यदि आम श्रद्धालुओं के प्रति अधिक उदारता दिखाई जाती, तो लोग सुरक्षित रहते और यह त्रासदी टाली जा सकती थी।” उन्होंने आगे कहा, “श्रद्धालु 30 किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे थे, उनकी थकान चरम पर थी। रातभर उन्होंने खुले आसमान के नीचे या सड़कों पर बैठकर समय बिताया। शाम 4 बजे तक लोग इतनी थकान और भूख से बेहाल थे कि वे कहने लगे – ‘अगर अन्न नहीं मिला, तो प्राण निकल जाएंगे।’ दुर्भाग्यवश, कई पंडालों में आयोजकों ने श्रद्धालुओं को अंदर जाने नहीं दिया, यह सोचकर कि भीड़ से व्यवस्था बिगड़ जाएगी।”
क्या है पूरा मामला?
29 जनवरी को मौनी अमावस्या के मौके पर दूसरे अमृत स्नान के दौरान महाकुंभ मेला क्षेत्र में भगदड़ मच गई थी। अप्रत्याशित भीड़ के दबाव के कारण अखाड़ा मार्ग की बैरिकेडिंग टूट गई, जिसके बाद जमीन पर लेटे और बैठे श्रद्धालुओं पर बाकी श्रद्धालुओं की भीड़ चढ़ गई। इसके बाद लोग एक-दूसरे को कुचलते हुए भागने लगे। इस दर्दनाक घटना में 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी, जबकि 50 से अधिक लोग घायल हो गए थे। घायलों का इलाज जारी है। यह जानकारी बुधवार देर शाम एक प्रेस कांफ्रेंस में डीआईजी वैभव कृष्ण और मेलाधिकारी विजय किरन आनंद ने दी।