चर्चा को आगे बढ़ाने से पूर्व नुकसान की दृष्टि से एक छोटी सडक़ दुर्घटना का जिक्र करना उचित होगा। एक बड़ी रिहायशी कॉलोनी में मुख्य सडक़ पर दोपहिया वाहन पर तेजी से गुजरते हुए एक 18 वर्षीय युवक तथा एक साइड लेन से मुख्य सडक़ पर दोपहिया वाहन पर ही आते हुए एक 70 वर्षीय बुजुर्ग के वाहनों के आपस में टकराने से हाल ही यह दुर्घटना घटित हुई। दोनों ही लोग वाहनों सहित सडक़ पर गिर पड़े तथा चोटिल हुए। दोनों ही व्यक्तियों ने हेलमेट नहीं पहना हुआ था। अलसुबह न्यूनतम ट्रैफिक में घटित इस दुर्घटना में दोनों ही लोगों की लापरवाही का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है, किसी की कम तो किसी की ज्यादा। सवाल उठता है कि क्या इन दोनों व्यक्तियों की दो-दो लापरवाहियों (हेलमेट नहीं पहनना तथा लापरवाही पूर्वक वाहन चलाना) के लिए स्वयं इनके अलावा कोई अन्य जिम्मेदार है? क्या ये इन लापरवाहियों से बच नहीं सकते थे? सडक़ दुर्घटनाओं की रोकथाम में जनसतर्कता के बिना सरकारी तथा अन्य प्रयास हमेशा ही नाकाफी साबित होंगे।
मोर्थ की रिपोर्ट ‘भारत में सडक़ दुर्घटनाएं-2022’ के अनुसार इस वर्ष 72.3% दुर्घटनाओं तथा 71.2% मौतों का कारण ओवर-स्पीडिंग ही था। इस वर्ष हेलमेट तथा सीट-बेल्ट नहीं लगाए क्रमश: 50,029 तथा 16,715 लोगों की दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई थी जो कुल मौतों का 39.6त्न थी। वाहन की गति नियंत्रित रखना तथा सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग करना वाहन चालक/सवारों की प्रथम जिम्मेदारी है। जाहिर है, सडक़ सुरक्षा केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं हो सकती है। सडक़ सुरक्षा के सतत विकास लक्ष्य की प्राप्ति इसे जन आंदोलन का स्वरूप दिए बिना संभव नहीं होगी। इस आंदोलन का स्वरूप अवश्य अलग होगा। सर्वप्रथम हमें अपने आप से लड़ाई लडऩी होगी, सडक़ सुरक्षा तथा यातायात के नियमों की पालना हेतु उच्च स्तर की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करनी होगी। प्रत्येक नागरिक को इस आंदोलन का नायक बनना होगा। सडक़ दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए सडक़ के उपयोगकर्ताओं के अलावा यातायात नियमों की अनुपालना सुनिश्चित करवाने के लिए जिम्मेदार प्रवर्तन तंत्र की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।