चिंता की बात यह है कि बच्चों व महिलाओं से जुड़े अपराधों को लेकर सजगता कई मामलों में बिल्कुल ही नजर नहीं आ रही। बलात्कार और पॉक्सो के कई मामलों में न्याय मिलने में देरी का मुख्य कारण डीएनए जांच में हो रहा विलम्ब है। कहने को तो राजस्थान में पीडि़तों के सैंपल्स के लिए विधि विज्ञान विभाग की सात प्रयोगशालाओं में जांच की व्यवस्था है, लेकिन इनमें से तीन में ही डीएनए सैम्पल की जांच हो रही है जबकि सर्वविदित तथ्य है कि कई बार अपराधी डीएनए सैम्पल की वजह से ही जेल पहुंच पाते हैं। पिछले पांच साल में केवल चार हजार सैंपल्स की ही जांच की जा सकी है, जबकि करीब 15 हजार सैंपल्स की जांच होना बाकी है।
न्यायिक प्रक्रिया में इस तरह के सैम्पल की जांच रिपोर्ट के बिना केस की सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकती। हैरत की बात यह है कि व्यवस्थाओं में सुधार के नाम पर पिछले पांच साल में 40 करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद न तो सैम्पल जांच के लिए पर्याप्त स्टाफ लग पाया है और न ही जांच की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सकती है। हालत यह है कि हर माह प्रदेश में बलात्कार और पॉक्सो के करीब 700 मामले दर्ज हो रहे हैं, लेकिन जहां सैम्पल की जांच होनी होती है वहां परेशानियां कम नहीं।
जब तक डीएनए जांच की प्रक्रिया को रफ्तार नहीं दी जाती तब तक ऐसे मामलों के त्वरित निस्तारण की उम्मीद करना कठिन है। जरूरत इस बात की है कि राजस्थान में डीएनए जांच के लिए बंद पड़ी प्रयोगशालाओं को तो शुरू किया ही जाए, नई प्रयोगशालाएं भी कायम की जानी चाहिए। जांच में आधुनिक तकनीक का उपयोग कर समूची प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाए जाने की भी जरूरत है।
-शरद शर्मा
sharad.sharma@in.patrika.com