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जनता की पहल से ही थमेगी सडक़ हादसों की रफ्तार

आर.के. विजय (लेखक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी हैं)

जयपुरJan 29, 2025 / 10:13 am

Hemant Pandey

यदि प्रत्येक वाहन चालक यह ठान ले कि बिना मानक हेलमेट पहने अथवा बिना सीट-बेल्ट लगाए वाहन का इग्नीशन ही ऑन नहीं करेगा तो मौतों की संख्या में भी कमी आएगी।

यदि प्रत्येक वाहन चालक यह ठान ले कि बिना मानक हेलमेट पहने अथवा बिना सीट-बेल्ट लगाए वाहन का इग्नीशन ही ऑन नहीं करेगा तो मौतों की संख्या में भी कमी आएगी।

आर.के. विजय, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी में पूर्व वरिष्ठ अधिकारी

संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंगीकृत सतत विकास लक्ष्यों के तहत सडक़-सुरक्षा के संदर्भ में वर्ष 2030 तक सडक़ दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों तथा गंभीर रूप से घायलों की संख्या में 50 फीसदी की कमी का लक्ष्य निर्धारित है। असल में यूएन के कार्यक्रम ‘सडक़ सुरक्षा के लिए कार्रवाई’ के पहले दशक (वर्ष 2011 से 2020) के लिए भी यही लक्ष्य था, लेकिन संभवत: इस अवधि में वास्तविक नतीजे लक्ष्य के आस-पास नहीं पहुंचने के कारण इसे अगले दशक के लिए नवीनीकृत किया गया। भारत सहित कुछ देशों में तो इस लक्ष्य के तहत ऋणात्मक नतीजे रहे हैं, जो अत्यंत चिंताजनक है। भारत में जहां वर्ष 2010 में सडक़ दुर्घटनाओं में 1,34,513 लोगों की मृत्यु हुई थी, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़ कर 1,72,000 से भी अधिक हो गई है। सवाल है कि क्या सरकारी तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रयासों तथा प्रतिवर्ष आयोजित तथा फिलहाल जारी ‘राष्ट्रीय सडक़ सुरक्षा माह’ जैसे आयोजनों के बावजूद भारत में इस लक्ष्य प्राप्ति की कोई संभावना नहीं है?

चर्चा को आगे बढ़ाने से पूर्व नुकसान की दृष्टि से एक छोटी सडक़ दुर्घटना का जिक्र करना उचित होगा। एक बड़ी रिहायशी कॉलोनी में मुख्य सडक़ पर दोपहिया वाहन पर तेजी से गुजरते हुए एक 18 वर्षीय युवक तथा एक साइड लेन से मुख्य सडक़ पर दोपहिया वाहन पर ही आते हुए एक 70 वर्षीय बुजुर्ग के वाहनों के आपस में टकराने से हाल ही यह दुर्घटना घटित हुई। दोनों ही लोग वाहनों सहित सडक़ पर गिर पड़े तथा चोटिल हुए। दोनों ही व्यक्तियों ने हेलमेट नहीं पहना हुआ था। अलसुबह न्यूनतम ट्रैफिक में घटित इस दुर्घटना में दोनों ही लोगों की लापरवाही का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है, किसी की कम तो किसी की ज्यादा। सवाल उठता है कि क्या इन दोनों व्यक्तियों की दो-दो लापरवाहियों (हेलमेट नहीं पहनना तथा लापरवाही पूर्वक वाहन चलाना) के लिए स्वयं इनके अलावा कोई अन्य जिम्मेदार है? क्या ये इन लापरवाहियों से बच नहीं सकते थे? सडक़ दुर्घटनाओं की रोकथाम में जनसतर्कता के बिना सरकारी तथा अन्य प्रयास हमेशा ही नाकाफी साबित होंगे।
आमजन सडक़ पर छोटी-छोटी गलतियों को नहीं करने का स्वयं प्रण लें तथा दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित कर सकें तो सडक़ दुर्घटनाओं में कमी अवश्य आएगी। यदि प्रत्येक वाहन चालक यह ठान ले कि बिना मानक हेलमेट पहने अथवा बिना सीट-बेल्ट लगाए वाहन का इग्नीशन ही ऑन नहीं करेगा तो मौतों की संख्या में भी कमी आएगी। सडक़ परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय (मोर्थ) के आंकड़ों के अनुसार सडक़ दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण ‘मानवीय त्रुटियां’ ही है जिनमें मुख्यतया ओवर-स्पीडिंग है। हेलमेट व सीट-बेल्ट जैसे सुरक्षा उपकरणों की अनदेखी भी मौतों की संख्या बढ़ाती है।

मोर्थ की रिपोर्ट ‘भारत में सडक़ दुर्घटनाएं-2022’ के अनुसार इस वर्ष 72.3% दुर्घटनाओं तथा 71.2% मौतों का कारण ओवर-स्पीडिंग ही था। इस वर्ष हेलमेट तथा सीट-बेल्ट नहीं लगाए क्रमश: 50,029 तथा 16,715 लोगों की दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई थी जो कुल मौतों का 39.6त्न थी। वाहन की गति नियंत्रित रखना तथा सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग करना वाहन चालक/सवारों की प्रथम जिम्मेदारी है। जाहिर है, सडक़ सुरक्षा केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं हो सकती है। सडक़ सुरक्षा के सतत विकास लक्ष्य की प्राप्ति इसे जन आंदोलन का स्वरूप दिए बिना संभव नहीं होगी। इस आंदोलन का स्वरूप अवश्य अलग होगा। सर्वप्रथम हमें अपने आप से लड़ाई लडऩी होगी, सडक़ सुरक्षा तथा यातायात के नियमों की पालना हेतु उच्च स्तर की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करनी होगी। प्रत्येक नागरिक को इस आंदोलन का नायक बनना होगा। सडक़ दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए सडक़ के उपयोगकर्ताओं के अलावा यातायात नियमों की अनुपालना सुनिश्चित करवाने के लिए जिम्मेदार प्रवर्तन तंत्र की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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