इस किसान दंपती की मेहनत प्रदेश के किसानों के लिए एक आदर्श तो बनी है, साथ ही सरकार ने भी उनके इस प्रयास की सराहना की। उन्हें राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार के अलावा अन्य सम्मान भी दिए। शुरू में हमने 150 पौधे मंगवाए, जिसमें से 110 पौधे आज जीवित हैं और 2 साल से खेती कर रहे हैं, जिसमें बीते साल ही 60 किलो सेब बाजार में बेचे भी हैं।
Sunday Guest Editor: एक बार आती है लागत
यदुनंदन कहते हैं कि सेब के पौधे में एक बार ही लागत लगती है और पौधों को सही देखभाल मिलती रहे तो उन्हें 50 साल तक देखना नहीं पड़ता है। पहले साल एक पौधे में 800 से 900 का खर्चा आता है उसके बाद 300 से 400 खर्चा बैठता है। सेब की क्वालिटी भी बहुत अच्छी होती है। बीते साल तो कई लोग हमारे खेतों को देखने आए।
जदुनंदन वर्मा ने बताया कि वे बचपन से ही
वैज्ञानिक बनना चाहते थे, लेकिन गरीबी के कारण वे आठवीं के बाद पढ़ नहीं पाए। किसान परिवार से जुड़े होने के कारण वे शुरू से ही किसानी में कुछ नया करना चाहते थे। इस कारण ही पांच रंगों की फूलगोभी की पैदावार लेने वाले वे प्रदेश के पहले किसान बने।
उसके बाद उन्होंने देखा कि धान की खेती के इतर उन्हें खेती-किसानी में कुछ नया प्रयोग करना होगा, तब उन्होंने सेब की खेती करने के बारे में इंटरनेट पर खोजना शुरू किया। दंपती ने बताया कि एक एकड़ जमीन पर करीब 300 सेब के पेड़ उगाए जा सकते हैं और वे कई फसल देेते हैं। हमने हरिमन वर्मा जो खुद एक
किसान वैज्ञानिक हैं, उनसे पौधे मंगवाए और सेब की खेती शुरू की।
सोच: किसी भी कार्य को करने के लिए रिस्क लेनी पड़ती है, तभी आप की हिम्मत बढ़ती है। sunday@in.patrika.com जदुनंदन वर्मा किसान, मल्हार गांव