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रायपुर

CG News: हर जिले में एम्स की तर्ज पर सिम्स शुरू करने की थी योजना, लेकिन एक कदम भी नहीं बढ़ा शासन

CG News: बिलासपुर व जगदलपुर में दो सुपर स्पेशलिटी अस्पताल चलाने में दिक्कत हो रही है। बिलासपुर में केवल कुछ विभागों की ओपीडी चल रही है। जबकि जगदलपुर में अस्पताल शुरू भी नहीं हुआ है।

रायपुरMay 26, 2025 / 08:20 am

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CG News: हर जिले में एम्स की तर्ज पर सिम्स शुरू करने की थी योजना, लेकिन एक कदम भी नहीं बढ़ा शासन

एम्स की तर्ज पर हर जिले में सिम्स खोलने की घोषणा (Photo AI)

CG News: @पीलूराम साहू एम्स की तर्ज पर हर जिले में सिम्स खोलने की घोषणा केवल कागजों में रह गई है। राज्य सरकार के गठन के डेढ़ साल में भी इस योजना पर कोई काम शुरू नहीं हुआ है। स्थिति ये है कि शासन को बिलासपुर व जगदलपुर में दो सुपर स्पेशलिटी अस्पताल चलाने में दिक्कत हो रही है। बिलासपुर में केवल कुछ विभागों की ओपीडी चल रही है। जबकि जगदलपुर में अस्पताल शुरू भी नहीं हुआ है। इसे ठेके पर दिया जा रहा है, लेकिन टेंडर फाइनल नहीं हो पा रहा है।

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एम्स की तर्ज पर सिम्स खोलने की घोषणा प्रदेश भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में की थी। सिम्स यानी छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस। संकल्प पत्र में इसे शामिल करने का उद्देश्य सभी जिलों के मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना था। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि इस दिशा में एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा जा सका है।
10 सरकारी मेडिकल कॉलेजों की स्थिति, ज्यादातर रेफरल सेंटर

  1. पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर- प्रदेश का सबसे बड़ा व पुराना कॉलेज है। प्राय: हर मर्ज का इलाज यहां हो रहा है। आंबेडकर व डीकेएस अस्पताल कॉलेज से संबद्ध है। आंबेडकर में स्पेशलिटी विभागों में तो डीकेएस में सुपर स्पेशलिटी विभागों से जुड़ी बीमारियों का इलाज हो रहा है। किडनी व लिवर ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं है। ज्यादातर सुविधा वही है, जो निजी अस्पतालों में है।
  2. मेडिकल कॉलेज जगदलपुर- बस्तर संभाग का प्रमुख मेडिकल कॉलेज है। यहां ट्रामा सेंटर नहीं होने के कारण मरीजों को रायपुर रेफर करना पड़ता है। मेडिकल कॉलेज में कोई भी सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं है।
  3. मेडिकल कॉलेज कांकेर- बस्तर संभाग का दूसरा मेडिकल कॉलेज है, जो चार साल पहले शुरू हुआ है। जिला अस्पताल ही मेडिकल कॉलेज संबद्ध अस्पताल है। इसलिए यहां इलाज की सुविधा बेहतर नहीं कही जा सकती। विशेषज्ञ डॉक्टरों व फैकल्टी की भारी कमी है।
  4. मेडिकल कॉलेज राजनांदगांव- यहां नया मेडिकल कॉलेज संबद्ध अस्पताल तो खुल गया है, लेकिन जरूरी विभागों में डॉक्टरों की कमी से मरीजों का इलाज प्रभावित हो रहा है। ट्रामा सेंटर में एक भी न्यूरो सर्जन नहीं है।
  5. मेडिकल कॉलेज महासमुंद- ये कॉलेज कांकेर से एक साल बाद शुरू हुआ है। ये जिला अस्पताल ही मेडिकल कॉलेज संबद्ध अस्पताल है। सुविधा के नाम पर ज्यादा कुछ खास नहीं है। ऑर्थोपीडिक व पीडियाट्रिक के डॉक्टर हैं, लेकिन हेड इंजुरी के मरीजों के लिए न्यूरो सर्जन नहीं है।
  6. मेडिकल कॉलेज बिलासपुर- सिम्स बिलासपुर प्रदेश का दूसरा बड़ा मेडिकल कॉलेज है, लेकिन यह कई समस्यायों से जूझ रहा है। पिछले साल सुपर स्पेशलिटी अस्पताल शुरू हुआ है, लेकिन यह बस नाम का है। यहां से भी ज्यादातर मरीज रायपुर रेफर किया जाता है।
  7. मेडिकल कॉलेज कोरबा- यह भी महासमुंद मेडिकल कॉलेज के साथ शुरू हुआ है। फैकल्टी की कमी है। गंभीर मरीजों के इलाज की सुविधा तो है लेकिन ये भी बाकी कॉलेजों की तरह ही है। सुविधाएं बढ़ाए जाने की जरूरत है। ट्रामा सेंटर एक तरह से कामचलाऊ है।
  8. मेडिकल कॉलेज रायगढ़- ये 12 साल पुराना कॉलेज है, लेकिन सुविधा के नाम खास कुछ नहीं है। यहां से भी ज्यादातर मरीज रेफरल किए जाते हैं। कॉलेज व अस्पताल की नई बिल्डिंग बन गई है। बस बिल्डिंग नई है, नई सुविधा के नाम पर खास नहीं है।
  9. मेडिकल कॉलेज दुर्ग- तीन साल हुआ है कॉलेज को शुरू हुए। 200 सीटों वाले कॉलेज की बिल्डिंग ऑलीशान है, लेकिन सुविधा नहीं के बराबर। बिल्डिंग इसलिए आलीशान है, क्योंकि यह पहले यह प्राइवेट कॉलेज था। कांग्रेस सरकार ने कॉलेज का अधिग्रहण किया था।
  10. मेडिकल कॉलेज अंबिकापुर- सरगुजा संभाग का एकमात्र मेडिकल कॉलेज। नए कॉलेजों की तुलना में सुविधा ठीक है, लेकिन हेड इंजुरी व दूसरे बड़े केस को रायपुर रेफर किया जाता है। कॉलेज की नई बिल्डिंग है, लेकिन कई विभाग अभी पूरा नहीं बना है।
एम्स की तर्ज पर हर जिले में सिम्स बनाने की घोषणा अच्छा कदम है। इससे मरीजों को रायपुर की दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी। बेहतर इलाज होगा। इलाज की सभी सुविधाएं मिलेंगी। हालांकि देखने वाली बात ये भी होगी कि सभी अस्पतालों के लिए डॉक्टर कहां से आएंगे? दरअसल न केवल प्रदेश, बल्कि पूरे देश् में डॉक्टरों की कमी है। इसे दूर करने में कुछ समय लगेगा। यूजी व पीजी की सीटें बढ़ रही हैं। इसमें क्वालिटी एजुकेशन पर भी जोर देना होगा।
डॉ. विष्णु दत्त, रिटायर्ड डीएमई

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