Women safety campaign: महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा और मारपीट
कई मामलों में आरोपियों को सजा मिलती है तो कई में केस कमजोर हो जाता है। हां, हो सकता है शारीरिक हिंसा-मारपीट के किसी मामले में फरियादी महिला ही आरोपी निकले, लेकिन ऐसे केस नगण्य होंगे। राज्य में
पत्रिका ने पड़ताल की तो ज्यादातर केस में पितृसत्तात्मक सोच ही हावी दिखाई दी। अपराध नियंत्रण के लिए पत्रिका के ‘रक्षा कवच’ अभियान की तीसरी कड़ी में आज हम बात कर रहे हैं। महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा और मारपीट की।
महिलाओं से मारपीट अशिक्षित, निम्न वर्गीय परिवारों में ही नहीं, बल्कि सभ्य और सम्भ्रांत समझे जाने वाले परिवारों की महिलाएं-लड़कियां भी इसका सामना कर रही हैं। इनसे अंदाजा लगाया जा सकता है। इंसान कितना क्रूर हो सकता है। पत्रिका के ‘रक्षा कवच’ अभियान का मकसद इस क्रूरता को किनारे कर लोगों को जागरूक करना, अपराध दर में कमी लाना है।
विशेषज्ञ की बात
Women safety campaign:
शन्नो शगुफ्ता खान, अधिवक्ता इंदौर हाईकोर्ट: शारीरिक प्रताड़ना के मामले में पहले आईपीसी की धारा 498 ए के तहत केस दर्ज होता था। अब बीएनएस की धारा 85 के तहत। शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के मामले में अधिकतम तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। गंभीर चोट की स्थिति में 10 वर्ष तक की सजा हो सकती है। महिलाओं के साथ जघन्य अपराध के मामले में सुनवाई जल्द हो रही है। उसी तरह अब
घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना और छेड़छाड़ के पेडिंग मामलों में भी तेजी लाई जाए, तभी महिलाओं के साथ अपराध करने वालों पर अंकुश लग सकेगा।