इन गांवों में लगाया गया प्रतिबंध
डीजे पर प्रतिबंध की शुरुआत हबीपुरा गांव से हुई। डीजे के कानफाड़ू शोर से परेशान होकर गांव के लोगों ने पंचायत बिठाई, जिसमें पटेल, सरपंच सहित गांव के अन्य लोग शामिल हुए। सभी ने एकमत होकर निर्णय लिया कि गांव में न डीजे लाने दिया जाएगा न ही कोई यहां बरात या किसी भी आयोजन में डीजे लेकर जाएगा। यदि फिर भी यदि कोई नहीं मानता है तो उनके यहां के कार्यक्रम में कोई नहीं जाएगा। ग्रामीणों ने ऐसे सख्त नियम बनाए कि गांव के कांकड़ (सीमारेखा) के अंदर डीजे को आने ही नहीं दिया जाएगा। इसी से प्रेरित होकर मोर्चाखेड़ी और मोई गांव में भी प्रतिबंध लगाया गया। निवासियों का कहना है कि गांव में शांति, पर्यावरण और वातावरण को बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया। अब ये गांव डीजे के शोरगुल से दूर है। यहां पिछले दिनों जो शादियां हुईं, उनमें ढोल और साधारण बैंड-बाजों का ही उपयोग किया गया।
डॉक्टर बोले- हृदय रोगियों के लिए नुकसानप्रद
हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. कोमल दांगी बताते हैं कि अत्यधिक तेज आवाज या कंपन करने वाले साउंडसे हृदय रोगियों को परेशानी हो सकती है। इसके चलते घबराहट बढ़ सकती है और ब्लड प्रेशर के मरीजों पर भी प्रतिकूल असर डाल सकती है। डीजे के शोरगुल से कान को भी नुकसान होता है। श्रवण-शक्ति कमजोर हो सकती है।
पूरे गांव को राहत मिली
हबीपुरा निवासी बापूलाल दांगी ने बताया कि ‘डीजे की गूंजती आवाज से लोग बीमार पड़ रहे थे। गांव में अशांति की स्थिति रही। सभी ने सामूहिक निर्णय लिया और आज तक वे इसी पर कायम है। जिससे काफी राहत पूरे गांव को मिली है। यह निर्णय अब स्थायी हो चुका है, जिसे आने वाली पीढ़ी भी मानेगी।’
समाज हित में लिया निर्णय
दांगी समाज के जिला अध्यक्ष रामबगस दांगी ने बताया कि ‘यह निर्णय समाज हित में है। हमारे समाज के तीनों गांव हैं, जिनमें डीजे पर प्रतिबंध लगाया गया है। डीजे की अत्यधिक शोरगुल के बीच होने वाले विवाद और विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित लोगों को होने वाली तकलीफों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है।’