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राजस्थान के इस शहर की सरकारी स्कूल ने सभी चौंकाया, बिना संसाधन किया ऐसा काम…पढ़े पूरी खबर

राजसमंद जिले के नाथद्वारा स्थित तेलियों की तालाब क्षेत्र के स्व. रमेशचन्द्र राउमावि स्कूल के विद्यार्थियों ने आधे-अधूरे संसाधानों से बारहवीं कक्षा में शत-प्रतिशत परिणाम दिया। स्कूल के स्टॉफ और बालक-बालिकाओं की मेहनत के कारण यह संभव हो पाया है।

राजसमंदMay 26, 2025 / 11:33 am

himanshu dhawal

राउमावि तेलियों का तालाब में १२वीं कक्षा के सफल छात्र-छात्राएं एवं शिक्षक-शिक्षिका। नाथद्वारा

नाथद्वारा. शहर के तेलियों का तालाब क्षेत्र में स्थित स्व. रमेशचंद्र राउमावि नामक एक सरकारी स्कूल ने इस साल एक ऐसी मिसाल कायम कर दी, जिसने पूरे इलाके को चौंका दिया। जिस स्कूल में न पर्याप्त शिक्षक हैं, न बैठने की ठीक-ठाक जगह, न लाइब्रेरी, न लैब, वहां के विद्यार्थियों ने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में शत-प्रतिशत सफलता हासिल कर ली।

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जब कुर्सियों की जगह ज़मीन थी और छत भी उधार की

इस स्कूल की हालत किसी वीरान भवन से कम नहीं थी। सिर्फ 5 कक्षा-कक्ष और एक हॉल में 12 कक्षाओं का संचालन किसी तंगहाल थिएटर के मंचन जैसा चल रहा था। हर दिन 12वीं के छात्र-छात्राएं यह तय करते कि आज कहां बैठें- कभी हॉल में, कभी किसी जूनियर क्लास की खाली जगह में, तो कभी खुले आंगन में।कुछ विद्यार्थी तो ऐसे भी थे जो घर की आर्थिक मजबूरियों के चलते दिन में नौकरी करते और रात को पढ़ाई। मगर उनके हौसलों में कोई कमी नहीं आई।

दो शिक्षकों ने संभाली कमान, रच दी सफलता की गाथा

सितंबर 2024 तक स्कूल में 12वीं कक्षा की पढ़ाई ढंग से शुरू भी नहीं हो पाई थी। लेकिन 11 सितंबर से कहानी ने मोड़ लिया।इसी दिन दो तीसरे श्रेणी शिक्षक गिरीश व्यास और सुमिता पालीवाल ने कक्षा की बागडोर संभाली। इन दो ही शिक्षकों ने 11वीं और 12वीं के पाँचों विषयों की पढ़ाई करवाई। कोई विषय विशेषज्ञ नहीं, कोई विशेष कोचिंग नहीं, बस समर्पण, मेहनत और एक भरोसा कि हम कर सकते हैं। इन्हीं दो शिक्षकों ने सुबह-शाम, छुट्टी के दिन, और कई बार अपने घर पर विद्यार्थियों को बुलाकर पढ़ाया। कोई टाइम टेबल नहीं, कोई घंटी नहीं पर हर छात्र की घड़ी परीक्षा की दिशा में टिक-टिक करती रही।
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परिणाम: सीमित संसाधनों से अनंत संभावनाओं तक

जब मार्च 2025 में परीक्षा का परिणाम आया तो सब हैरान रह गए। स्कूल का पहला बैच और 100 प्रतिशत रिजल्ट। 10 में से 5 विद्यार्थी प्रथम श्रेणी और शेष 5 द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुए। यह सिर्फ नतीजा नहीं था, यह संघर्ष, समर्पण और संकल्प का प्रमाण पत्र था।

शिकायत नहीं, समाधान चुना

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि स्कूल प्रशासन या किसी शिक्षक ने कभी संसाधनों की कमी की शिकायत नहीं की। न कोई धरना, न ज्ञापन, न सोशल मीडिया पर पोस्ट केवल काम, लगन और परिणाम। संस्था प्रधान शैलेन्द्र गुर्जर, शिक्षक परेश नागर, गिरीश व्यास और शिक्षिका सुमिता पालीवाल ने अभावों को अवसर में बदल दिया। न सिर्फ शैक्षिक मार्गदर्शन, बल्कि विद्यार्थियों के आत्मबल को भी मजबूत किया।

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