डाटा का नहीं कर रहे हैं एनालिसिस
परीक्षा के समय पहले छात्र-छात्राएं घंटों तक साइबर कैफे में बैठकर डाटा का एनालिसिस करके प्रोजेक्ट तैयार करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। अब कई तरह के टूल्स व सॉफ्टवेयर की सहायता से कुछ ही देर में प्रोजेक्ट तैयार हो रहे हैं। बदलते समय के साथ विद्यार्थियों को एआई की मदद से प्रोजेक्ट बनाना आसान लग रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि विद्यार्थियों के लिए यह खतरनाक साबित हो सकता है। मैकेनिज्म को रोकने के लिए कोई कानून भी नहीं है। शिक्षक ही विद्यार्थियों को नकल करने से रोक सकते हैं।इन एप का हो रहा ज्यादा इस्तेमाल
हेमिंग्वे एडिटर – लेखन को सरल एवं स्पष्ट बनाने के लिए।एडोब स्कैन – डॉक्यूमेंट्स को स्कैन करने व डिजिटल बनाने के लिए।
कैनवा – प्रजेंटेशन और ग्राफिक्स बनाने के लिए।
फोटो मैथ्स – गणित के कठिन सवालों को हल करने के लिए।
कैलकुलस – गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए।
डेस्मोस – ग्राफ और गणितीय समीकरणों को हल करने के लिए।
माइंड मिस्टर – माइंड मैपिंग और विचारों को व्यवस्थित करने के लिए।
टाइनियर – नोट्स और अध्ययन सामग्री को व्यवस्थित करने के लिए।
एवरगनोट – नोट्स और अध्ययन सामग्री को व्यवस्थित करने के लिए ।
गंभीर मसला है
एआई की मदद से नकल करके बच्चे प्रोजेक्ट बना रहे हैं, यह आने वाले समय में ज्यादा खतरनाक साबित होगा। मप्र के कई विश्वविद्यालय में ऐसे मामले आ चुके हैं कि प्रोजेक्ट बनाने के बाद छात्र-छात्राएं वायवा नहीं दे पा रहे हैं। किसी भी वैज्ञानिक की थिसिस को भी एआई वैसा ही टेस्ट कर देता है। टॉपिक देने ही पूरी थिसिस लिखी लिखाई मिल जाती है। आने वाले समय में ज्यादा खतरनाक साबित होगा। बच्चे दिमाग से काम नहीं करेंगे और तकनीकी पर निर्भर हो जाएंगे, जो गंभीर मसला है।डॉ. के कृष्ण राव, आईटी विशेषज्ञ, डॉ. हरिसिंह गौर विवि