अर्श से फर्श तक… दुष्यंत सिंह के पिता अनिल सिंह सतना के जाने-माने ट्रांसपोर्ट कारोबारी थे। उनकी कंपनी, कल्पतरु ट्रांसपोर्ट, के पास लगभग 70 ट्रक थे। हालांकि, कोरोना काल में अनिल सिंह का निधन हो गया, जिसके बाद कारोबार की जिम्मेदारी दुष्यंत पर आ गई। युवा और अनुभवहीन दुष्यंत कारोबार को संभाल नहीं पाए, और कंपनी कर्ज के बोझ तले दब गई। कर्ज चुकाने के लिए दुष्यंत ने अपने भरहुत नगर स्थित ढाई करोड़ रुपये कीमत के मकान को पौने दो करोड़ में बेच दिया। इसके बाद उन्होंने जयपुर में अपनी प्रोफेसर पत्नी और बेटे के साथ नई शुरुआत करने की योजना बनाई। इस बीच, वे सतना के मास्टर प्लान में किराए के फ्लैट में रहने लगे। यहीं उनकी मुलाकात पड़ोस में रहने वाली बैंक कर्मी वैशाली मिश्रा से हुई।
बैंकिंग कामकाज से बढ़ी नजदीकियां वैशाली और दुष्यंत का परिचय बैंकिंग कार्यों के दौरान हुआ। दुष्यंत ने वैशाली की कई खाते खुलवाने में मदद की, जिससे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं। धीरे-धीरे वैशाली ने दुष्यंत पर अपना प्रभाव जमाना शुरू किया। पुलिस जांच में सामने आया कि वैशाली और दुष्यंत के बीच करीब एक साल से घनिष्ठ संबंध थे। वैशाली समय-समय पर दुष्यंत से पैसे लेती थी और बाद में उसने दुष्यंत पर शादी का दबाव बनाना शुरू कर दिया। वह चाहती थी कि दुष्यंत अपनी पत्नी और बेटे को छोड़कर उसके साथ रहे। दुष्यंत इसके लिए तैयार नहीं थे, जिसके बाद वैशाली ने उन्हें ब्लैकमेल करना शुरू किया। उसने धमकी दी कि वह उनके संबंधों को सार्वजनिक कर देगी, जिससे दुष्यंत की सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी। वैशाली की लगातार प्रताड़ना और ब्लैकमेलिंग से तंग आकर दुष्यंत मानसिक रूप से टूट गए।
तब बिगड़ गई स्थिति इस मामले में स्थिति तब और बिगड़ गई, जब दुष्यंत अपने बेटे के जन्मदिन पर जयपुर गए। वहां से लौटने के बाद वैशाली ने फिर से उन पर दबाव बढ़ा दिया। वह दुष्यंत के जयपुर जाने और परिवार के साथ समय बिताने से नाराज थी। उसने धमकियां देना शुरू कर दिया और दुष्यंत के घर पहुंचकर विवाद करने लगी। वैशाली ने दुष्यंत के घर की एक चाबी भी हासिल कर ली थी, जिससे वह बिना अनुमति उनके घर में प्रवेश कर लेती थी। हालांकि इस विवाद से आजिज आकर दुष्यंत अपने ननिहाल बम्हौरी चला गया।
वो आखिरी घंटे 16 जून की घटना ने इस कहानी को दुखद मोड़ दे दिया। उस दिन दुष्यंत अपनी बहन के साथ सतना लौटे। बहन को छोड़ने के बाद वे सुबह 11 बजे अपने घर पहुंचे। वहां वैशाली पहले से मौजूद थी। दोनों के बीच तीखी बहस हुई। सूत्रों के अनुसार, दुष्यंत ने हताशा में वैशाली पर चीखा चिल्लाया भी। कहा, तुम्हारी प्रताड़ना से तंग आ चुका हूं और फांसी लगाकर आत्महत्या करना ही एकमात्र रास्ता बचा है। इसके बाद दुष्यंत ने फांसी का फंदा तैयार किया। वैशाली ने भी वैसा ही रूखा जवाब दिया। जब दुष्यंत फंदा बांधने टेबल पर चढ़ा तो वैशाली ने टेबल पर लात मारकर दुष्यंत को नीचे गिरा दिया। इसके बाद वह बगल के कमरे में चली गई। पूरी तरह टूट चुके दुष्यंत ने फिर से फंदा लगाया और फांसी पर झूल गए। वैशाली उस समय बगल के कमरे में ही थी। कुछ देर बाद जब उसे कोई आवाज नहीं सुनाई दी, तो वह कमरे में गई और दुष्यंत को फंदे पर लटका देख चिल्लाने लगी। पड़ोसियों ने दुष्यंत को फंदे से उतारा और अस्पताल पहुंचाया, लेकिन तब तक वह दम तोड़ चुके थे।
छिपा लिया था दुष्यंत का मोबाइल जांच के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। वैशाली ने दुष्यंत का आईफोन अपने पास रख लिया और उसे फॉर्मेट कर डेटा मिटा दिया। उसने फोन का पासवर्ड भी बदल दिया था। बाद में पीएम के दौरान उसने फोन दुष्यंत की बहन को लौटा दिया। पुलिस को यह भी पता चला कि दुष्यंत के पास चार मोबाइल थे, लेकिन केवल तीन ही बरामद हुए। हैरानी की बात यह थी कि वैशाली और दुष्यंत के बीच कोई फोटो या अन्य डिजिटल साक्ष्य नहीं मिला, जिससे माना जा रहा है कि वैशाली ने सारे सबूत मिटा दिए। सिविल लाइन थाना प्रभारी योगेंद्र सिंह परिहार ने बताया कि जांच में वैशाली के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिले। उसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 के तहत मामला दर्ज किया गया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। न्यायालय में पेश करने के बाद वैशाली को जेल भेज दिया गया।