संघर्ष के साए में बीता बचपन, वॉकर-ट्राइसाइकिल देख छलके आंसू
कलेक्टर ने साथ बैठाकर सुनी समस्या, आर्थिक मदद भी की
शहडोल. बचपन से ही कठिनाइयों के पहाड़ तले दबे 19 वर्षीय गोलू बैगा की जिंदगी में उम्मीद की किरण तब जगी, जब पत्रिका की खबरों के बाद उसकी तकलीफों की आवाज प्रशासन तक पहुंची। जन्म से ही पिता का साया उठने और मां के साथ छोडऩे के बाद गोलू की दुनिया सिर्फ उसकी बुजुर्ग दादी रामरति बैगा तक सिमट गई थी। न इलाज, न पेंशन, न सहारा—गोलू का संघर्ष उसकी हिम्मत पर भारी पडऩे लगा था, लेकिन अब जिला प्रशासन ने उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। शासन की योजनाओं से अब तक वंचित गोलू पर जब प्रशासन की नजर मिली तो मदद के हाथ उठने लगे हैं। कलेक्टर ने न केवल गोलू का आयुष्मान कार्ड और विकलांग प्रमाण पत्र बनवाया, बल्कि उसे चलने के लिए वॉकर और ट्राइसाइकिल भी उपलब्ध कराई। साथ ही, उसके इलाज के लिए सीएमएचओ से चर्चा कर जरूरी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। इधर, जनजातीय कार्य विभाग से सहायक आयुक्त आनंद राय सिन्हा ने संकटापन्न योजना के तहत 5 हजार रुपए की आर्थिक मदद भी की है।
दादी की आंखों में उम्मीद
गोलू की देखभाल में जुटी उसकी दादी रामरति बैगा, जो खुद सहारे की मोहताज हैं, अब राहत महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा, अब कम से कम उम्मीद तो दिख रही है कि मेरा पोता चल-फिर सकेगा। इतने सालों से हमने जो तकलीफ सही, अब शायद उससे राहत मिलेगी।
इनका कहना है
गोलू को अब शासन की स्वास्थ्य और दिव्यांग सहायता योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा। उसकी नियमित चिकित्सा जांच और आगे के इलाज की व्यवस्था की जा रही है।
डॉ. केदार सिंह, कलेक्टर शहडोल
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