Saraswati River: जिस ‘मृत’ नदी को ढूंढ़ रहे वैज्ञानिक, सभ्यताओं ने पहले ही बता दिया था रास्ता
पुरातात्विक अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि सरस्वती नदी इन्हीं इलाकों से बहा करती थी। वर्तमान में जिस घग्घर नदी को मृत माना जाता है, वह सरस्वती के ही अवशेषों का प्रवाह है।
हनुमंत ओझा राजस्थान के श्रीगंगानगर में रेत में दबी उस पौराणिक नदी का राज अब जल्द ही उजागर होने वाला है, जिसे वेदों में सरस्वती कहा गया। राज्य सरकार ने हरियाणा की तर्ज पर सरस्वती नदी के अस्तित्व की खोज के लिए वैज्ञानिक स्तर पर बड़ा कदम उठाया है। वैज्ञानिक जिस सरस्वती नदी के प्रवाह मार्ग को खोजने की तैयारी कर रहे हैं, उसके साक्ष्य पहले से हमारे सामने मौजूद हैं।
हनुमानगढ़ जिले का कालीबंगा और सूरतगढ़ का रंगमहल क्षेत्र, हड़प्पा-सिंधुकालीन सभ्यताओं के प्रमुख केंद्र रहे हैं। पुरातात्विक अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि सरस्वती नदी इन्हीं इलाकों से बहा करती थी। वर्तमान में जिस घग्घर नदी को मृत माना जाता है, वह सरस्वती के ही अवशेषों का प्रवाह है। इसरो और डेनमार्क की पैलियो चैनल तकनीक के माध्यम से इस क्षेत्र में गहराई से अध्ययन किया जाएगा।
सिंधु सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानते हैं
हड़प्पाकालीन सभ्यता को सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। यह सभ्यता सिंधु और सरस्वती नदियों के किनारे फली-फूली। हड़प्पा सभ्यता उत्तर-पश्चिमी भारत, पाकिस्तान और उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान में फैली हुई थी। हनुमानगढ़ का कालीबंगा हड़प्पाकालीन सभ्यता का एक प्रमुख केन्द्र है। सूरतगढ़ के रंगमहल से भी सैन्धवकालीन कई अवशेष प्राप्त हो चुके हैं। अनूपगढ़ में भी पुरातात्विक स्थल इन्हीं सभ्यताओं से क्रमिक रूप से जुड़कर पश्चिम की तरफ बढ़ते हैं।
भूमिगत जल भी महत्वपूर्ण प्रमाण
थार मरुस्थल के नीचे पाए जाने वाले भूजल में मीठे-खारे पानी की विविधता वैज्ञानिकों के लिए अहम संकेत हैं। मोहनगढ़ से जैसलमेर के बीच फैली लाठी सीरीज जल पट्टी इस बात की ओर इशारा करती है कि यहां सरस्वती की कोई धारा कभी प्रवाहित हुई होगी।
ऋग्वेद में उल्लेख, थार के नीचे जल का रहस्य
सरस्वती नदी का वर्णन हमारे पौराणिक और विश्व के पहले लिखित ग्रंथ ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक मंत्र (10.75) में सरस्वती नदी को यमुना के पश्चिम और सतलुज के पूर्व में बहना बताया गया है। वहीं उत्तर वैदिक ग्रंथों, जैसे ताण्डय और जैमिनीय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखना बताया गया है। इतिहासकारों के अनुसार ऋग्वेद की रचना आर्यों के ऋषियों ने सरस्वती नदी के मुहाने पर आगे बढ़ते हुए की थी। ऐसे में आर्य और सरस्वती नदी का महत्वपूर्ण संबंध है। श्रीगंगानगर के चक 86 जीबी और तरखानवाला डेरा जैसे स्थलों से मिले आर्यकालीन अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं।