scriptPahalgam Mamal Temple: अमरनाथ के रास्ते पहलगाम में 1625 साल पुराना मंदिर, मां पार्वती ने यहीं की थी गणेशजी की रचना | Pahalgam Mamal Temple 1625 year old jammu kashmir temple on way to Amarnath Lidder River bank Ma Parvati Story created Ganeshji here | Patrika News
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Pahalgam Mamal Temple: अमरनाथ के रास्ते पहलगाम में 1625 साल पुराना मंदिर, मां पार्वती ने यहीं की थी गणेशजी की रचना

Pahalgam Mamal Temple: अमरनाथ यात्रा के रास्ते में लिद्दर नदी के तट पर पहलगाम से करीब 1 मील दूरी पर 1625 साल पुराना मंदिर है। मान्यता है यहीं पर मां पार्वती ने गणेशजी की रचना की थी। आइये जानते हैं पहलगाम के ममलेश्वर मंदिर के विषय में विस्तार से (Amarnath) …

भारतApr 23, 2025 / 12:26 pm

Pravin Pandey

Pahalgam Mamal Temple

Pahalgam Mamal Temple: पहलगाम ममल टेंपल

Jammu Kashmir Temple: जम्मू कश्मीर हिंदू धर्म मानने वालों के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। यहां शिव परिवार से जुड़े कई प्रमुख मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है कश्मीर घाटी के पहलगाम में 1 मील दूरी पर लिद्दर नदी के तट पर स्थित ममलेश्वर मंदिर। 2200 मीटर (7200 फीट) ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव की पूजा की जाती है।
Pahalgam Mamal Temple
कश्मीर में पहलगाम की खूबसूरत वादी में जहां मां पार्वती ने हल्दी से गणेशजी की रचना की बाद में 400 ईं. में मंदिर बनवाया गया।


ममलेश्वर मंदिर की विशेषता (Pahalgam Mamal Temple)

मम मल का मतलब है मत जाओ, इसलिए इसे स्तनपायी मंदिर के रूप में जाना जाता है। द्विस्तरीय पिरामिडनुमा छत के साथ कश्मीरी स्थापत्य शैली में बना यह मंदिर हिमालय से घिरा हुआ है, राजतरंगिणी में इसका उल्लेख मिलता है। ममलेश्वर मंदिर का निर्माण 400 ईं में हुआ था यानी यह मंदिर 1625 साल पुराना है।
इस मंदिर में 2 मूर्तियां हैं, मंदिर के केंद्र में शिवलिंग है और दाएं कोने पर नंदी की एक छोटी दो चेहरे वाली मूर्ति है। मंदिर के सामने ही तालाब है। इसमें एक पुराना आसन और शिवलिंग है। 12वीं शती में राजा जयसिंह ने इसके शीर्ष पर स्वर्ण कलश रखवाकर सजाया था।
sheshnag jhil pahalgam
पहलगाम में ही अमरनाथ के रास्ते में पड़ती है यह शेषनाग झील है, जो खूबसूरत आध्यात्मिक अमरनाथ यात्रा का एक पड़ाव है।
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ममलेश्वर की कहानी (Pahalgam Mamal Mandir Ki Kahani)

ममल मंदिर या ममलेश्वर मंदिर की कहानी के अनुसार इसी स्थान पर मां पार्वती ने हल्दी से गणेशजी की रचना की थी। बाद में पार्वतीजी ने गणेश को द्वारपाल के रूप में यहां तैनात कर दिया, ताकि बिना अनुमति के कोई व्यक्ति परिसर में प्रवेश न कर सके।
बाद में जब गणेशजी ने शिवजी को गुफा में जाने से रोका तो शिवजी ने गणेशजी का सिर काट दिया। इसके बाद गुस्साई शक्ति के क्रोध को शांत करने के लिए शिवजी ने गणेशजी के सिर पर हाथी का सिर लगाकर जीवन दान दिया। इसके बाद गणेशजी गजानन कहलाने लगे।

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