इसकी शुरुआत अपने घर से ही करने की जरूरत है। बच्चों को संवेदनशील, संस्कारवान और अच्छा इंसान बनाने के लिए मूल्यों का पाठ पढ़ाने जैसे काम आपसी सामंजस्य से मोहल्लावार करने जैसे विचार उभर कर आए। कोठारी ने परिवारों में बिखराव, युवाओं में संस्कारों के अभाव और शिक्षा के बदलते स्वरूप पर चिंता जताई। उन्होंने प्रकृति, संस्कृति और परिवार बचाने पर चर्चा की।
कोठारी के आलेख प्रेरणादायी, समाज में लाएंगे बदलाव
परिचर्चा में प्रबुद्धजनों ने कहा कि पत्रिका हमेशा से ही मूल्यों का संरक्षक रहा है। प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के आलेख परिवार और समाज को सही राह दिखाते हैं। पत्रिका को आगे भी समाज का नेतृत्व करते हुए एक और अभियान चलाने की आवश्यकता है। जिसमें युवा पीढ़ी को संवेदनशील, संस्कारवान और बेहतर इंसान बनाने की शिक्षा और समझ विकसित की जाए।
ये भी हुए शामिल
जेएसजी मेवाड़ रीजन चेयरमैन अनिल नाहर, तेरापंथ सभा उपाध्यक्ष आलोक पगारिया, विनोद लोढ़ा, बार एसोसिएशन अध्यक्ष चन्द्रभानसिंह शक्तावत, अशोक कुमार शामिल हुए। प्रबुद्धजन बोले: संस्कारों की शुरुआत घर से करें, तभी आएगा बदलाव
चिंताजनक बात यह है कि संस्कार और नैतिकता की बातें बच्चों पर कोई असर नहीं डाल रही। हमने एक प्रयास किया है। 30 परिवारों का चयन किया और बच्चों को जोड़ा है। भविष्य में इस तरह के नवाचारों से युवा पीढ़ी में संस्कारों का बीजारोपण करते रहेंगे।
–प्रदीप कुमावत, निदेशक, आलोक संस्थान शिक्षा और तकनीक से घरों का माहौल खराब हो रहा है। लड़कियां नादानी में ऐसे कदम उठा रही है, जो माता-पिता के लिए असहनीय है। इसके कारण तलाश कर समाधान की दिशा में बढ़ना होगा। अन्यथा परिणाम समाज के लिए घातक होंगे। शिक्षा पूरी होने के बाद शादियां 25 साल की उम्र तक कर देनी चाहिए।
–प्रकाश कोठारी, अध्यक्ष, ओसवाल सभा
महिलाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। बच्चों को संस्कार सिखाने के लिए महिलाओं को आगे आना होगा। यदि सही उम्र में बच्चों को संस्कार दिए जाए तो अपराध स्वत: ही खत्म हो जाएंगे। नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाने के लिए महिलाओं को अपनी भूमिका समझने की आवश्यकता है।
–शिल्पा पामेचा, निवर्तमान पार्षद
नई पीढ़ी को संस्कारित बनाने की शुरुआत घर से करनी है। परिवारों को तोड़ने में मोबाइल की बड़ी भूमिका है। हर कोई फोन में व्यस्त है। अत्यधिक शिक्षा और उम्र के कारण लड़कियों के लिए योग्य जीवन साथी मिलना भी चुनौती बन गया है।
–हरीश राजानी, अध्यक्ष, उदयपुर प्राइवेट नर्सिंग कॉलेज एसो.
हम संस्कारों की बात करते हैं, वहीं महिला अपराध की घटनाएं बढ़ रही है। महिलाओं के साथ किस तरह बर्ताव किया जाए, उन्हें कैसे सम्मान दे, इस बारे में पॉश कमेटियों को पहल करनी चाहिए। ऑफिसों में इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
–आनंद गुप्ता, अध्यक्ष, आईएमए
उच्च शिक्षा से समाज की स्थिति खराब हो रही है। हमारी शिक्षा व्यवस्था समाज पर बुरा असर डाल रही है। बच्चे रातभर जागते हैं और सुबह देरी से उठ रहे हैं। इससे उनकी दिनचर्या खराब हो गई है। इसका प्रभाव उनके जीवन पर गहरा पड़ रहा है।
–राजकुमार फत्तावत, अध्यक्ष, सकल जैन समाज
युवाओं में संस्कारों की कमी हो रही है। इसे पूरा करने के लिए हम नियमित रूप से संस्कार शिविरों का आयोजन करेंगे। हमारा प्रयास रहेगा कि बच्चों को ज्यादा से ज्यादा संस्कारी बनाएं, ताकि वे समाज के अच्छे नागरिक बन सकें।
-इंदरसिंह मेहता, संरक्षक, राजस्थान सर्राफा संघ
युवाओं की आमदनी तो कई गुना बढ़ गई है, लेकिन वे बच्चे पैदा करने में रुचि नही दिखा रहे। इससे समाज के सामने एक नई चुनौतियां खड़ी हो गई है। युवाओं को परिवार का महत्व समझाने की महत्ती आवश्यकता है।
-पंकज शर्मा, प्रदेश महामंत्री व प्रवक्ता, कांग्रेस
उच्च शिक्षा के माहौल और संस्कार विहीन वातावरण से समाज को क्षति पहुंच रही है। कानूनी तौर पर प्रावधानों में मजबूती की जरुरत है। युवा पीढ़ी को कॅरियर निर्माण के साथ ही संस्कारवान होने की सख्त जरुरत है।
–राव रतनसिंह, बीसीआर चेयरमैन