केस 1: शांतिलाल बुम्बरिया, डूंगरिया थला
शांतिलाल ने बताया कि उनका गांव फुलवारी की नाल अभयारण्य क्षेत्र में आता है, जहां बिजली के पोल लगाने की अनुमति वन विभाग से नहीं मिल पाई। ऐसे में सामाजिक कार्यकर्ता भैरूलाल पारगी की पहल पर उन्हें छह वर्ष पूर्व उद्यान विभाग से पांच हॉर्स पावर का सौर ऊर्जा संयंत्र निशुल्क मिला। अब वे चार से पांच बीघा भूमि में मक्का, गेहूं और मूंग की खेती कर रहे है। पहले वे डीजल इंजन से सिंचाई करते थे, जिस पर प्रतिदिन करीब 1000 रुपए का खर्च आता था। सोलर सिस्टम लगने के बाद पिछले छह वर्षों से सिंचाई पर कोई खर्च नहीं हुआ है।
केस 2: मसरू पारगी, डूंगरिया थला
मसरू ने बताया कि उनकी कृषि भूमि पहाड़ी क्षेत्र में है। पहले नहर की अनुपलब्धता के कारण केवल वर्षा आधारित खेती होती थी, जिसमें सिर्फ मक्का और उड़द बोई जाती थी। लेकिन सौर ऊर्जा संयंत्र लगने के बाद अब वे गेहूं, हरी सब्जियां और गर्मियों में भी मक्का जैसी फसलें उगा पा रहे है। इससे उनके परिवार की खाद्यान्न आवश्यकता भी पूरी हो रही है।
केस 3: मीठिया खैर, ठेप (खजुरिया पंचायत)
मीठिया ने बताया कि सोलर संयंत्र लगने के बाद उन्होंने पारंपरिक नहर सिंचाई के स्थान पर ड्रिप इरिगेशन प्रणाली अपनाई है, जिससे जल की बचत हो रही है। पहले उन्हें डीजल इंजन से सिंचाई करनी पड़ती थी और अनाज बेचकर डीजल खरीदना पड़ता था। अब वे साल भर में मक्का, सरसों, मूंगफली, कपास जैसी नकदी फसलें उगाकर 1.25 लाख से 1.5 लाख रुपए तक की आमदनी कर रहे है, जबकि पहले उनकी कमाई महज 20,000 से 30,000 तक ही सीमित थी।