कश्मीरी पंडित के DNA से खुलासा
इस संबंध में एक रिसर्च पेपर स्प्रिंजर नेचर में प्रकाशित हो चुका है। ये नतीजा 85 कश्मीरी पंडितों के 6 लाख 50 हजार मार्कर्स के डेटा पर अध्ययन के बाद सामने आया। इस डेटा का ईस्ट यूरेशिया और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के 1800 अन्य लोगों के साथ तुलना कर इस निष्कर्ष निकाला गया। कश्मीरी पंडितों के माइटोकॉन्ड्रिया डीएनए के आधार पर अध्ययन किया गया है। अध्यन में सामने आया कि उनका उत्तर भारतीय ब्राह्मणों के साथ बहुत नजदीकी आनुवांशिक संबंध है।
35 हजार साल पहले हुआ था पलायन
अभी तक कश्मीरी पंडितों को ईस्ट यूरेशिया में तिब्बत और लद्दाखी आबादी के साथ जोड़कर देखा जाता था, लेकिन वैज्ञानिक अध्ययनों में साबित हो गया कि वहां के जीन का कोई साक्ष्य नहीं मिला। आज से करीब 35 हजार साल पहले उन्होंने कश्मीर घाटी की ओर रुख किया था। बायेसियन स्काई लाइन और मॉलीक्यूलर क्लॉक विश्लेषणों के मुताबिक, कश्मीर में बसने वालों का तीन काल खंड रहा है।
प्राचीन काल से आधुनिक युग तक
कश्मीर का नाम ऋषि कश्यप से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने इस क्षेत्र को बसाने की मान्यता प्राप्त की है। यहां सदियों तक हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा लेकिन 14वीं सदी में मुस्लिम शासन के आने के बाद स्थिति बदलने लगी। कई हिंदू जबरन इस्लाम में धर्मांतरित किए गए, लेकिन कश्मीरी पंडितों ने अपनी पहचान बचाए रखी।
डोगरा शासन मिला अवसर अवसर
डोगरा शासन (1846-1947) के दौरान, कश्मीरी पंडितों को नौकरियों और शिक्षा के अवसर मिले। हालांकि, 1950 के बाद हुए भूमि सुधारों से उनका प्रभाव कम होने लगा। 1980 के दशक तक, घाटी में उनकी संख्या लगभग तीन से चार लाख थी, लेकिन फिर एक बड़ा संकट आया।
1990 का पलायन एक दर्दनाक घटना
1990 में, जब आतंकवाद ने कश्मीर में पैर पसारने शुरू किए, तब कश्मीरी पंडितों के लिए मुश्किलें बढ़ गईं। 19 जनवरी 1990 को मस्जिदों से घोषणाएं होने लगीं कि कश्मीरी पंडितों को या तो इस्लाम स्वीकार करना होगा, मरना होगा या कश्मीर छोड़ना होगा। यह समय उनके लिए बेहद कठिन था। हजारों परिवार रातोंरात अपने घर छोड़कर जम्मू, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में शरण लेने को मजबूर हो गए।
कश्मीरी पंडित की आज की स्थिति
आज कश्मीर घाटी में सिर्फ कुछ हजार कश्मीरी पंडित रह गए हैं। 2022 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, करीब 6,500 पंडित घाटी में रह रहे हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा और पुनर्वास एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। सरकार ने उनके पुनर्वास के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन अभी भी स्थिति पूरी तरह से सामान्य नहीं हो पाई है। कई पंडित चाहते हैं कि उन्हें फिर से कश्मीर में सम्मानपूर्वक बसने का अवसर मिले, लेकिन सुरक्षा को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं।