ट्रंप ने खुद को बताया था भारत-पाक युद्ध रोकने वाला, भारत ने नकारा
ट्रंप ने दावा किया है कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध को रोकने में अहम भूमिका निभाई, वहीं भारत ने आधिकारिक रूप से इस बात को खारिज कर दिया। भारत सरकार का कहना था कि पाकिस्तान और भारत के बीच कोई भी महत्वपूर्ण शांति प्रयास भारतीय कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय दबावों के कारण हुए थे, न कि यह ट्रंप की पहल से हुए। वहीं पाकिस्तान ने तो ट्रंप को नोबेल पुरस्कार देने का प्रस्ताव तक रख दिया, जो एक राजनीतिक मज़ाक जैसा प्रतीत होता है क्योंकि ट्रंप की भूमिका को लेकर कोई ठोस तथ्य मौजूद नहीं थे।
उनकी शांति के दावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे सवाल
यह सबको पता है कि अमेरिका के प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार लेना चाहते हैं। इसके लिए तरह तरह से माहौल बनाने में लगे हुए हैं। ट्रंप की विदेश नीति में कई अन्य मुद्दे भी थे जिनसे उनकी शांति के दावों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने पहले 2016 व दूसरी बार सन 2024 में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता और 2017 में पद संभाला। उनकी विदेश नीति और उनकी वैश्विक स्थिति को लेकर कई आलोचनाएं की गईं।
ईरान और जर्मनी से बिगाड़े रिश्ते
ट्रंप प्रशासन ने ईरान के साथ हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते को एकतरफा रद्द कर दिया और उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इससे न केवल पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ा, बल्कि अमेरिका के पारंपरिक साझेदारों जैसे जर्मनी के साथ भी रिश्ते खराब हुए।
रूस और उत्तर कोरिया से करीबी, पर शांति नहीं
ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन से दोस्ताना संबंध दिखाए। हालांकि, इन संबंधों का शांति स्थापना पर कोई ठोस प्रभाव नहीं पड़ा। उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण जारी रहे, और रूस के साथ संबंधों पर अमेरिकी राजनीति में भारी विवाद हुआ।
पुतिन और किम जोंग के साथ संबंध
ट्रंप ने अक्सर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के साथ अच्छे संबंधों का दावा किया। हालांकि, इससे यह सवाल उठता है कि क्या ट्रंप वास्तव में वैश्विक शांति के लिए काम कर रहे थे, या उनका ध्यान केवल अमेरिका के हितों पर था।
फिलिस्तीन का मसला उलझाया, नरसंहार पर निष्पक्ष नहीं
ट्रंप ने फिलिस्तीन के मुद्दे पर इज़राइल के पक्ष में कई फैसले लिए, जिसमें यरूशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देना और फिलिस्तीनियों के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लागू करना शामिल था। इससे मध्य पूर्व में और तनाव बढ़ा। जबकि मानवता कहती है कि उन्हें फिलिस्तीनी निर्दोषों के नरसंहार पर बोलना था,वे निष्पक्ष नहीं रहे और फिलिस्तीन को धमकाते रहे।
भारत-पाकिस्तान युद्ध रोकने में भूमिका का दावा हास्यास्पद
ट्रंप का यह दावा कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध रोकने में भूमिका का दावा हास्यास्पद लगता है, क्योंकि पाकिस्तान ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार देने का प्रस्ताव भी रखा था। यह कदम इसलिए हास्यास्पद था क्योंकि ट्रंप की भूमिका को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं था, और उनका रिकॉर्ड अन्य देशों के साथ संघर्षों में शामिल होने का रहा है, जैसे कि ईरान, रूस, और उत्तर कोरिया के साथ।
ट्रंप पर दुनिया में अशांति फैलाने के आरोप
ट्रंप के शासन में कई देशों के साथ संघर्ष हुए, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण ये हैं: चीन के खिलाफ अघोषित जंग
ट्रंप ने चीन के खिलाफ ट्रेड वार शुरू किया, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा।
हाई टैरिफ्स और व्यापार संघर्ष
उन्हीने कई देशों, विशेषकर यूरोपीय देशों, जापान और कनाडा पर उच्च टैरिफ्स लगाए। इस नीति से वैश्विक व्यापार में अस्थिरता बढ़ी। मध्य पूर्व और इज़राइल
ट्रंप की मध्य पूर्व नीति ने कई मुस्लिम देशों के साथ तनाव बढ़ाया, खासकर जब उन्होंने यरूशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता दी। इन देशों के साथ ट्रंप के कड़े और सख्त फैसलों ने वैश्विक स्तर पर अशांति को और बढ़ाया, और इस संदर्भ में उनका नोबेल शांति पुरस्कार के लिए आवेदन हास्यास्पद प्रतीत होता है।
बराक ओबामा और नोबेल शांति पुरस्कार
बराक ओबामा को 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था, जबकि उनका राष्ट्रपति कार्यकाल अभी शुरू ही हुआ था। इस पुरस्कार के चयन के पीछे उनका यह दृष्टिकोण था कि वे संसार में युद्ध और हिंसा को कम करने के लिए काम करेंगे। लेकिन ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद कई मुद्दों पर विवाद उठा, जिनमें प्रमुख थे:
अफगानिस्तान युद्ध: ओबामा के शासनकाल में अफगानिस्तान में युद्ध
लीबिया का सैन्य हस्तक्षेप: 2011 में लीबिया में सैन्य हस्तक्षेप किया गया, जिससे वहां की सरकार गिर गई और देश अस्थिर हो गया। यह कार्रवाई भी उनकी शांति की नीति के खिलाफ मानी जा सकती है। ड्रोन हमले: ओबामा ने ड्रोन हमलों का इस्तेमाल बढ़ाया, जिससे कई निर्दोष नागरिकों की मौतें हुईं। इस पर मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी आलोचना की।
दुनियाभर में ट्रंप की दावेदारी पर तीखी प्रतिक्रियाएं
डोनाल्ड ट्रंप की नोबेल शांति पुरस्कार पाने की इच्छा पर दुनियाभर के राजनयिक हलकों और मानवाधिकार संगठनों में मिश्रित लेकिन अधिकतर नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आई हैं। ब्रिटेन, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों के विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का ट्रैक रिकॉर्ड संघर्ष और टकराव से भरा हुआ है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने ट्रंप की “नोबेल चाहत” को “अंतरराष्ट्रीय शांति के साथ मज़ाक” कहा है। भारत में सोशल मीडिया पर भी इस पर मीम्स और तंज़ की बाढ़ आ गई है, जहां यूजर्स ने ट्रंप के भारत-पाक शांति दावों को ‘राजनीतिक नौटंकी’ करार दिया।
ट्रंप की दावेदारी पर नोबेल कमेटी की चुप्पी
ट्रंप समर्थकों ने नोबेल समिति को ट्रंप के नाम पर विचार करने के लिए याचिकाएं भेजी हैं, लेकिन नोबेल फाउंडेशन की ओर से अब तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस विषय पर विशेषज्ञों का कहना है कि नोबेल कमेटी अपनी प्रक्रिया को लेकर बेहद सतर्क होती है और प्रचारात्मक अभियानों से प्रभावित नहीं होती। इस बीच, अमेरिका में ट्रंप की नोबेल पुरस्कार की मांग को राजनीतिक हथियार के रूप में भी देखा जा रहा है, जिससे उन्हें दक्षिणपंथी वोटबैंक को फिर से साधने में मदद मिल सके।
ट्रंप की ‘नोबेल चाहत’ और अमेरिका की साख पर असर
नोबेल पुरस्कार की मांग और उस पर ज़ोर देने से अमेरिका की वैश्विक छवि पर भी सवाल उठने लगे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि एक पूर्व राष्ट्रपति का सार्वजनिक रूप से पुरस्कार मांगना अमेरिकी गरिमा के खिलाफ है। यह पहलू भी विचारणीय है कि जब अमेरिका खुद को “लोकतंत्र और शांति का प्रहरी” बताता है, तो उसके पूर्व राष्ट्रपति का ऐसा आचरण उस छवि को नुकसान पहुंचाता है। इसके साथ ही सवाल यह भी है कि क्या ट्रंप की यह रणनीति भविष्य में नोबेल प्रक्रिया के राजनीतिकरण की नई मिसाल बन सकती है?
नोबेल शांति पुरस्कार की प्रक्रिया
बहरहाल नोबेल शांति पुरस्कार का इतिहास और चयन प्रक्रिया बहुत गंभीर और विश्लेषणात्मक है। यह पुरस्कार आमतौर पर उन व्यक्तियों या संस्थाओं को दिया जाता है जिन्होंने वैश्विक शांति, संघर्षों के समाधान या मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया हो। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का विदेश नीति रिकॉर्ड भी उनका शांति के लिए कोई ठोस कदम उठाने वाला नहीं बताता।