भारत के रवैये को बताया “उकसावे वाला”
संयुक्त राष्ट्र में एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान, अहमद ने भारत के रवैये को “उकसावे वाला” बताया और कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करता है। उन्होंने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के भारत के फैसले को “एकतरफा और अवैध” करार दिया, जो विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता और गारंटी प्राप्त एक ऐतिहासिक और कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है। अहमद ने चेतावनी दी कि यह कदम “पाकिस्तान के लोगों के लिए अस्तित्व का संकट” पैदा करता है और निचले तटवर्ती देशों के अधिकारों का हनन करता है। उन्होंने कहा, “समझौते में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो इसे निलंबित करने की अनुमति दे। भारत के इस कदम से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को गंभीर खतरा है, जिसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।” पाकिस्तान ने कश्मीर पर जताई चिंता
पाकिस्तानी राजदूत ने यह भी आशंका जताई कि यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत के इस कदम पर लगाम नहीं लगाई, तो यह निचले तटवर्ती देशों के कानूनी अधिकारों को कमजोर करने का एक खतरनाक उदाहरण स्थापित कर सकता है, जिससे साझा जल संसाधनों को लेकर वैश्विक स्तर पर नए संघर्ष भड़क सकते हैं। उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघनों पर भी चिंता जताई, जहां पहलगाम हमले के बाद से मनमानी गिरफ्तारियां, घरों को ध्वस्त करना और नागरिकों पर “सामूहिक दंड” की खबरें सामने आई हैं।
फिर दी परमाणु हथियारों की धमकी
अहमद ने दक्षिण एशिया में अस्थिरता का मूल कारण जम्मू-कश्मीर विवाद को बताया और परमाणु हथियारों से लैस इस क्षेत्र में व्यापक संघर्ष के जोखिम की चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “लगभग दो अरब लोगों का घर दक्षिण एशिया में तनाव किसी के हित में नहीं है। यह समय संयम बरतने और कूटनीति के जरिए स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने का है।” पाकिस्तान की यह प्रतिक्रिया न केवल दोनों देशों के बीच गहरे अविश्वास को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि सिंधु जल समझौते जैसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौतों का भविष्य अब अनिश्चितता के दौर में प्रवेश कर चुका है। भारत के इस कदम ने क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर जल संसाधनों के प्रबंधन और सहयोग के लिए नए सवाल खड़े कर दिए हैं।